Friday 13 July 2018

DEEP REVIEW : Soorma

बच्चों के साथ देखें ये फिल्म, आपको गर्व महसूस होगा

  • दिलजीत दोसांझ संदीप के रोल में एकदम परफेक्ट लगे हैं। अंगद बेदी तो कमाल ही कर देते हैं। अंगद लंबी रेस का घोड़ा हैं बस उन्हें रोल अच्छे नहीं मिल रहे। तापसी पन्नू तो जैसे ऐसे किरदारों के लिए ही बनी हैं। वे जो भी करती हैं वही अच्छा लगता है। खूबसूरत तो वे हैं ही साथ ही जिस तरह से वे रोल में घुसती हैं वो कमाल है

Rating 3*
खेल-खिलाडिय़ों पर जब भी कोई फिल्म बनती है तो बहुत अच्छा लगता है। लगता है कि कोई नया करने का प्रयास कर रहा है। नहीं तो हमारे देश में भेड़चाल में फार्मूला फिल्में बनाने का चलन तो बरसों बरस चलता रहा है। अब तो फिल्मकार नए नाम ढूंढने का भी कष्ट नहीं करते। पार्ट 1, 2 व 3 आदि बनाए जा रहे हैं। इनमें स्टारकास्ट पहले तय की जाती है और कहानी बाद में गढ़ी जाती है। खिलाडिय़ों के जीवन पर फिल्में बनाने का काम चुनौतीपूर्ण भी है और आसान भी है। इनमें सबसे बड़ी चुनौती होती है यथार्थ के ज्यादा से ज्यादा करीब जाने की और आसानी है जनता का दल जीतने की। क्योंकि खिलाडिय़ों के जीवन में सबसे बड़ी बात होती है एक हीरोइज्म, जो आम दर्शकों से बड़ी आसानी से कनेक्ट हो जाता है। यही कारण है कि हाल के सालों में 'मैरीकॉम', 'एमएस धोनी', 'दंगल' जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्में बनी हैं। और शायद जल्द ही कुछ और बनें भी। इससे पहले लगभग एक दशक पूर्व शाहरुख खान की 'चक दे इंडिया' व श्रेयस तलपड़े की 'इकबाल' आई थी, जो भले ही सच्ची कहानियों पर नहीं थी लेकिन खेलों की दुनिया को ग्लोरीफाई करती थी और सुपर हिट रही थी।
'सूरमा' की कहानी इन सबसे अलग है। यह संदीप सिंह नामक पंजाब के एक ऐसे हॉकी खिलाड़ी पर आधारित है जो दस साल पहले ही भारतीय हॉकी टीम का कप्तान होने के बाद भी गुमनामी के अंधेरे में खोकर रह गया। अर्जुन अवार्डी संदीप सिंह को जब हॉकी टीम की कप्तानी सौंपी गई थी तो मुझे खूब याद है कि भारी बवाल हुआ था। वे कई साल टर्फ पर वापसी कर रहे थे और उन्हें सीधे ही कप्तान बना दिया गया था। इसकी आलोचना भी हुई थी। बाद में संदीप ने सबको गलत साबित किया और भारत को न केवल कई टूर्नामेंट जिताए बल्कि उनके नाम पर सबसे ज्यादा गोल करने का रिकॉर्ड भी है। उन्हें फ्लिकर किंग भी कहा जाता है।
सूरमा का ट्रेलर देखें-


इस कहानी को सोनी पिक्चर्स व चित्रांगदा सिंह ने फिल्म बनाने के लिए चुना यह बहुत बड़ी बात है और दोनों ही निर्माताओं को इसके लिए दिल से बधाई। चित्रांगदा तो पहली फिल्म बना रही थी और उनका इस विषय को चुनना दिखाता है कि वे खूबसूरत व प्रतिभाशाली कलाकार ही नहीं है बल्कि एक जहीन दिमाग की भी मालिक हैं। उनके दौर की कई हिरोईन के पास इसकी कमी है। फिल्म बढिय़ा बनी है, और बढिय़ा बनाई जा सकती थी लेकिन जैसी भी बनी है परिवार के साथ देखने लायक है। कम से कम हाल ही के हफ्तों में आई 'रेस 3' व 'धड़क' जैसी फिल्मों से तो कई गुना बेहतर है। मुझे खुद अफसोस है कि एक सप्ताह देरी से इसे देख पाया और देरी से ही रिव्यू कर रहा हूं। पर आप देरी न करें और तुरंत देखकर आएं।
 संदीप सिंह की कहानी जानें-
संदीप सिंह (दिलजीत दोसांझ) बचपन में स्कूल कोच की पिटाई के डर से हॉकी खेलना बंद कर देता है। उसका बड़ा भाई बिक्रमजीत सिंह (अंगद बेदी) अच्छा खिलाड़ी होने के बाद भी भारतीय टीम के लिए नहीं चुना जाता। संदीप को अपने कस्बे की एक हॉकी खिलाड़ी प्रीति (तापसी पन्नू) से प्यार हो जाता है। प्रीति कहती है कि अगर वह हॉकी खेलेगा तो ही उनकी बात बनेगी। प्रीति का दिल जीतने के लिए संदीप फिर से हॉकी खेलने लगता है। खेतों में चिडिय़ों को उड़ाने के लिए वह हॉकी से पत्थर उड़ाया करता था। उसका यह कारनामा देख बिक्रम दंग रह जाता है। बिक्रम कहता है कि इसे हॉकी की भाषा में ड्रैग फ्लिक कहा जाता है और बरसों लग जाते हैं इसे सीखने में। बिक्रम संदीप का अपने कोच हैरी (विजय राज) से मिलवाता है और उसकी किस्मत चमक उठती है। संदीप जल्द ही भारतीय टीम का स्टार खिलाड़ी बन जाता है। प्रीति और संदीप का प्यार परवान चढऩे ही लगता है कि अचानक एक हादसा दोनों के जीवन को झकझोर कर रख जाता है।

सूरमा के गीत देखें- 
 


ट्रेन में सफर के दौरान एक पुलिसवाले की गोली गलती से संदीप की पीठ में जा घुसती है। संदीप को कई महीने अस्पताल में गुजारने पड़ते हैं। उसके शरीर का निचली हिस्सा लकवाग्रस्त हो जाता है। प्रीति, जो अब भारत के लिए खेल रही थी, संदीप से मिलने अस्पताल आती है तो देखती है कि अब उसके मन में हॉकी में वापस आने की तमन्ना ही खत्म हो चुकी है। बस प्रीति उसके पास है वो यही सोचकर खुश है। प्रीति को लगता है कि अगर वह उसके जीवन में आ गई तो फिर वह कभी खड़ा नहीं हो पाएगा। प्रीति उसे छोड़कर लंदन चली जाती है। उससे फोन पर भी बात नहीं करती। संदीप हिल जाता है और नई जिंदगी जीने की ठान लेता है। हॉकी फेडरेशन के चेयरमैन (कुलभूषण खरबंदा) की वजह से उसे 35 लाख रुपये मंजूर किए जाते हैं, जिससे वह इलाज के लिए हॉलैंड जा सके । संदीप छह महीने में पूरी तरह से फिट होकर वापसी करता है और इस बार प्रीति के लिए नहीं भारत के लिए हॉकी खेलता है और कामनवेल्थ गेम्स में टीम को गोल्ड दिलाता है।
सूरमा के गीत देखें-  

मुझे नहीं मालूम की प्रीति और संदीप का लव एंगल कितना सही और कितना काल्पनिक है लेकिन फिल्म बेहतरीन बनी है। फिल्म को सत्यता के नजदीक रखने के लिए ज्यादातर शूटिंग पंजाब की ओरिजनल लोकेशंस पर की गई है और इसलिए फिल्म दिल को छू जाती है। कभी 'साथिया' व 'बंटी और बबली' जैसी फिल्में दे चुके शाद अली का निर्देशन अच्छा है लेकिन उतना अच्छा नहीं जितना उन दो फिल्मों में था। पता नहीं शाद को क्या हो गया है? कुछ सीन कच्चे लगते हैं। थोड़ा जल्दी में शूट किए गए लगते हैं। अगर और तफ्सील में जाते तो फिल्म और मजबूत बन सकती थी। संगीत ठीक-ठाक है। गीत फिल्म में बहुत शानदार लगते हैं लेकिन बाद में याद नहीं रहते। गुलजार ने लिखे हैं तो शब्द तो बेहतरीन होने ही थे।
 क्या है ड्रैग फ्लिक, जानें संदीप सिंह से 


दिलजीत दोसांझ संदीप के रोल में एकदम फिट हैं। हालांकि उनकी उम्र थोड़ी ज्यादा लगती है लेकिन फिर भी सिख होने के कारण वे इस रोल में एकदम परफेक्ट लगे हैं। अंगद बेदी तो कमाल ही कर देते हैं। अंगद लंबी रेस का घोड़ा हैं बस उन्हें रोल अच्छे नहीं मिल रहे। तापसी पन्नू तो जैसे ऐसे किरदारों के लिए ही बनी हैं। वे जो भी करती हैं वही अच्छा लगता है। खूबसूरत तो वे हैं ही साथ ही जिस तरह से वे रोल में घुसती हैं वो कमाल है। बाकी कलाकारों में विजय राज, सतीश कौशिक भी प्रभाव छोडऩे में सफल रहे हैं। विजय राज तो जब भी आते हैं छा जाते हैं।
 भाइयों की कहानी जानें-


'सूरमा' उस श्रेणी की फिल्म है जो न केवल आपको रूलाती है, हंसाती है या फिर मनोरंजन देती है बल्कि आपको जीवन जीने की प्रेरणा देती है। खासतौर से युवा पीढ़ी और बच्चों के लिए तो ऐसी फिल्में पथप्रदर्शक बन सकती हैं। आप भी देखिए और हां बच्चों को साथ लेकर जाईये। आपको बहुत कुछ हासिल होगा। आप महसूस करेंगे कि आपने अपने बच्चों के लिए कुछ अच्छा किया।

- हर्ष कुमार सिंह 

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