Friday 29 June 2018

DEEP REVIEW : Sanju

संजय दत्त को रील से रीयल लाइफ हीरो बनाने की कहानी 
'संजू' फिल्म के बारे में कुछ भी लिखने से पहले यह बता दूं कि यह फिल्म संजय दत्त की बायोपिक नहीं है। यह फिल्म संजय दत्त के जीवन के केवल दो पहलुओं पर बात करती है। एक- उनकी ड्रग्स में डूबी जिंदगी और उससे बाहर आने की लड़ाई। दूसरी- उन पर लगे आतंकवादियों से संबंध होने के इल्जाम, जेल, सजा और रिहाई की जंग। इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे संजय दत्त हालात के शिकार बने और एक के बाद एक गलतियां करके भी अपने पिता स्व. सुनील दत्त की वजह से सब मुसीबतों से लड़ते रहे।

'संजू' देखने के बाद सबसे पहले जिसकी तारीफ करने को मन चाह रहा है वो है संजय दत्त के दोस्त कमलेश कन्हैयालाल कपासी का रोल निभाने वाले विक्की कौशल। संजय दत्त के जीवन के इस अछूते हिस्से के बारे में बहुत कम लोग जानते थे और इस फिल्म के बाद कमलेश उर्फ कमली के किरदार से आपको प्यार हो जाएगा। संजय दत्त के जीवन में आए सबसे महत्वपूर्ण लोगों में से एक है कमलेश और इस रोल को विक्की ने दिल से निभाया है। बल्कि कई सीन में तो उन्होंने परेश रावल व रणबीर कपूर को भी पानी पिला दिया है।

रणबीर कपूर की क्या तारीफ करें। वे तो देश की वर्तमान पीढ़ी के सबसे आला दर्जे के कलाकारों में पहले से गिने जाते हैं। इस फिल्म ने उनके स्थान को और भी ऊंचा कर दिया है। कई बार तो यह लगता ही नहीं कि हम रणबीर कपूर को देख रहे हैं। ऐसा लगता है कि जैसे हम संजय दत्त को ही देख रहे हैं या संजय दत्त खुद ही अपने किरदार को निभा रहे हैं।

Video Blog- Harh Kumar Singh, Deep Review - watch in two minutes: 

इस तरह की फिल्मों में हमेशा ही सही कास्टिंग करना चुनौतीपूर्ण काम होता है और यह काम कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़िया और उनकी टीम ने शानदार तरीके से किया है। संजय दत्त के जीवन के लगभग 35-40 साल के दौर को दिखाने के लिए कई तरह के छोटे-छोटे किरदारों को दिखाया जाना था और इसे मुकेश की टीम ने बहुत ही बढिया तरीके से किया है। 

किसी भी फिल्म का रीव्यू लिखने के लिए उसकी कहानी को बताना भी जरूरी होता है। कहानी के नाम पर कुछ ज्यादा नहीं है लेकिन कहानी में कुछ अनछुए पहलुओं को छूकर और कुछ मार्मिक लम्हों को जोड़कर राजकुमार हिरानी ने फिल्म को इतना बेहतर बना दिया है कि आपको कहानी की कमी महसूस नहीं होती। कई बार आपकी आंखों में आंसू भी आते हैं। फिल्म की शुरूआत वहां से होती है जब संजय दत्त आखिरी बार साढ़े तीन साल के लिए जेल गए थे। वे चाहते थे कि उनके जीवन की कहानी कोई अच्छा लेखक लिखे। लंदन की प्रसिद्ध बायोग्राफर विन्नी डियाज (अनुष्का शर्मा) से संजय (रणबीर) व उनकी पत्नी मान्यता (दिया मिर्जा) निवेदन करते हैं कि वे यह जिम्मा लें। विन्नी उनके बारे में जानना शुरू करती है। इस तरह एक के बाद एक किरदार सामने आते हैं और शुरूआती दौर में इंकार करने के बाद विन्नी उनकी बायोग्राफी (कुछ तो लोग कहेंगे) लिखने को राजी हो जाती हैं। विन्नी के जरिए ही कहानी आगे बढ़ती है और जब संजय 2015 में जेल से बाहर आते हैं तो वे किताब उन्हें सौंपती हैं।

फिल्म के क्लाइमैक्स में आने वाले इस गीत में रणबीर व संजय दत्त साथ नजर आते हैं। देखिए आपको पसंद आएगा ये गीत- 

जाहिर है संजय दत्त की लाइफ पर फिल्म बन रही थी तो सब कुछ संजय दत्त के हिसाब से ही दिखाया जाना था। डायरेक्टर राजकुमार हिरानी ठहरे संजू बाबा के मुरीद। उन्होंने फिल्म को इस तरीके से रचा है कि देखने वाले को संजय दत्त बेदाग हीरो के रूप में नजर आते हैं। हो सकता है कि संजू में जो भी दिखाया गया है वो सब कुछ सही हो। हो सकता है कि संजय दत्त के खिलाफ मीडिया ने कुछ ज्यादा ही लिखा हो और हो सकता है कि वे हालात के शिकार भी हुए हों लेकिन इतना तय है कि उनका जीवन बहुत ही उतार चढ़ाव भरा रहा। इसी वजह से दर्शक फिल्म को देख भी रहे हैं। 

फिल्म में दिखाया गया है कि संजय दत्त को नशे के दलदल में धकेलने वाला उनका दोस्त जुबिन मिस्त्री किस तरह उनसे पैसा ऐंठकर बड़ा बिजनेसमैन बन गया। जुबिन संजय को नशे की दवाएं देता था और खुद मीठा ग्लुकोज खाता था। अब इतने साल तक संजय दत्त कैसे उसकी इस बात को नहीं पकड़ पाए यह भी सोच में डालने वाली बात है ? खैर राजकुमार हिरानी ने जैसा संजय दत्त ने बताया वैसे ही फिल्म बनाई है और कहानी को सस्पेंस, इमोशन व हास्य के तानेबाने में पिरोया है। गंभीर सीन भी हल्के में दिखा गए हैं वे। इस कला के तो वे मास्टर माने जाते हैं। 
संजू के लुक में कैसे आए रणबीर सिंह, ये वीडियो जरूर देखें- 

फिल्म में कुछ चौंकाने वाली बातें भी बताई गई हैं। दिखाया गया है कि कैसे संजय दत्त ने अपने पहली प्रेमिका (शायद टीना मुनीम) रूबि (सोनम कपूर) के परिवार के साथ बुरा व्यवहार किया। मंगलसूत्र की जगह उसके गले में कमोड का सीट कवर पहना दिया। इसके अलावा अंडरवर्ल्ड के साथ उनके संबंधों को लेकर सामने आई खबरों आदि को किस तरह से उन्होंने हैंडल किया आदि-आदि तमाम ऐसी बाते हैं जिन्हें इस फिल्म के माध्यम से दिखाया गया है। 

अभिनय के मामले में विक्की कौशल और रणबीर कपूर का कोई तोड़ नहीं है। सुनील दत्त के रोल को परेश रावल ने बहुत ही शिद्दत से निभाया है। नरगिस दत्त के रोल में मनीषा कोईराला को कुछ ज्यादा ही बूढ़ी दिखा दिया गया। कुछ मेकअप की कमी रही शायद लेकिन वे बहुत अच्छी लगी हैं। अनुष्का भी लेखिका के रोल में जमी हैं। फिल्म में संजय दत्त की पहली (स्व.रिचा शर्मा) व दूसरी पत्नी (रिया पिल्लै), पहली बेटी (त्रिशाला दत्त), उनके बहनोई (कुमार गौरव) आदि के बारे में कोई जिक्र नहीं किया गया है। इसलिए मैंने कहा भी कि यह फिल्म उनकी बायोपिक नहीं है। हां यह फिल्म संजय दत्त को रील लाइफ की तरह रीयल लाइफ में भी हीरो बना देती है। 

फिल्म के सभी तकनीकी पहलू बहुत ही सशक्त हैं। 80, 90 के दशक के माहौल को एकदम सही दिखाने की कोशिश इसमें की गई है। कास्ट्यूम डायरेक्टरों की भी मेहनत साफ नजर आती है। संगीत के लिहाज से यह फिल्म ज्यादा कुछ स्कोप नहीं रखती थी लेकिन हिरानी ने इसमें कुछ अच्छे गीत डाले हैं। कई संगीतकार जुटाए हैं। पर सब गानों पर भारी पड़ता है- सुखविंदर व श्रेया घोषाल का गाया 'कर हर मैदान फतेह'। इसे संगीतबद्ध किया है विक्रम मोंत्रोश ने। बाकी गीत फिल्म में अच्छे लगे हैं लेकिन बाहर आने पर याद नहीं रहते। वैसे भी हिरानी कभी म्यूजिकल फिल्में बनाने वालों में नहीं रहे हैं। उनकी फिल्मों की ताकत कहानी और उसका प्रस्तुतिकरण रहा है और संजू में भी यही हिस्सा सबसे मजबूत है। 

Rating 4*

- हर्ष कुमार सिंह

Friday 15 June 2018

DEEP REVIEW : Race 3

सलमान खान के जबर्दस्त फैन हैं तो देख लीजिए, वर्ना जाने दीजिए 

फ्रेंचाइजी फिल्मों को बनाने वालों को न जाने किसने कह दिया है कि ये फिल्में अपने नामों की वजह से हिट हो रही हैं। यही कारण है कि 'हाउसफुल' और 'हेट स्टोरी' के नाम से 4-4, 'धूम', 'दबंग' और 'रेस' के नाम से 3-3 फिल्में बन चुकी हैं। और भी बहुत सी फिल्में इस तरह बनाई जा रही हैं। हकीकत यह है कि फिल्में कहानी से चलती हैं और जिसकी कहानी अच्छी होगी उसे देखने के लिए लोग किसी भी नाम से आएंगे। हालीवुड में यह चलन था जहां एक ही नाम से सीरीज चलती हैं और 20-20 फिल्में तक बन चुकी हैं।


'रेस 3' का दुर्भाग्य यह है कि इसकी कहानी 80 के दशक में आने वाले वेदप्रकाश शर्मा व सुरेंद्र मोहन पाठक के जासूसी उपन्यासों की तरह है। यानी कभी भी कहीं भी कहानी में कोई नया पेंच ला दीजिए और फिर एक फ्लैशबैक दिखाकर उसे साबित कर दीजिए। इस फिल्म में भी ऐसा कई बार किया गया है। बल्कि मैं तो यह कहूंगा कि इतनी बार किया गया है कि दर्शक कंफ्यूज हो जाता है कि जैकलीन फर्नांडीज किसकी तरफ है और बॉबी देयोल किसका बेटा है।
ईद पर हर साल आने वाली सलमान खान की फिल्में बिजनेस तो बढिय़ा कर ही लेती हैं लेकिन कुछ ऐसी होती हैं जो यादगार बन जाती हैं। उनकी 'बजरंगी भाईजान', 'सुल्तान' जैसी फिल्मों को आप कितनी बार देख लीजिए मजा आएगा लेकिन 'ट्यूबलाइट', 'जय हो', 'दबंग 2' आदि एक बार भी नहीं झेली जाती। 'रेस 3' भी दूसरी श्रेणी की फिल्मों में है। यानी वन टाइम मूूवी। 'रेस 2' भी खराब थी लेकिन 'रेस 3' तो सबसे ज्यादा खराब है। पूरी फिल्म में या तो पार्टी चलती रहती है या फिर एक्शन होता रहता है। एक्शन सीन इतने लंबे-लंबे हैं कि अगर इन्हें फिल्म से हटा दें तो फिल्म 40 मिनट की ही रह जाएगी।

कहानी आधा दर्जन किरदारों के ईर्द गिर्द घूमती है। शमशेर सिंह (अनिल कपूर) भारत का भगौड़ा है और अल शिफा नाम के एक काल्पनिक देश में रहता है। सूरज (शाकिब सलीम) व संजना (डेजी शाह) शमशेर के जुड़वां बच्चे हैं और सिकंदर (सलमान खान) उनका सौतेला भाई है। यश (बॉबी देयोल) भी शमशेर की टीम का हिस्सा है। जेसिका (जैकलीन) एक जासूस है और राना (फ्रेडी दारूवाला) व शमशेर के पीछे लगी है। सूरज व संजना को सिकंदर नहीं जरा नहीं भाता जबकि शमशेर उस पर भरोसा करता है। सब मिलकर साजिश करते हैं सिकंदर को रास्ते से हटाने की क्योंकि वह उनकी आधी जायदाद का वारिस है। कई रहस्यों से परदा उठने के बाद कहानी अंत तक पहुंचती है। अंत में शमशेर व यश जेल में पहुंच जाते हैं और सिकंदर, सूरज व संजना मिल जाते हैं। इससे ज्यादा बताऊंगा तो आप फिल्म को एक बार भी नहीं झेल पाएंगे।
फिल्म से सलमान खान को अगर हटा दें तो आप इसे एक बार देखने लायक भी नहीं पाएंगे। सलमान आते हैं तो फिल्म में कुछ करंट आता है नहीं तो फिल्म बहुत सुस्त बनी रहती है। असली बात यह है कि कहानी कुछ इस तरह से अनफोल्ड की गई है कि सब कुछ इंटरवल के बाद ही घटता है। जैसे ही रहस्य पर से परदा उठता है वैसे ही फिल्म का दि एंड हो जाता है।

एक और बहुत खराब चीज है इस फिल्म में। इसका संगीत किसी काम का नहीं है। 'रेस' व 'रेस 2' का संगीत अच्छा था लेकिन इसमें एक भी गीत ऐसा नहीं है जिसे आप याद रख सकें या गुनगुना सकें। जबकि सलमान की फिल्मों के गीत बहुत हिट होते हैं। जग घुमेया, बेबी को बेस पसंद है, मुन्नी बदनाम हुई, तेरी-मेरी प्रेम कहानी, स्वैग से करेंगे सबका स्वागत, को कौन भूल सकता है? पर 'रेस 3' में कोई गीत थियेटर से बाहर निकलने के बाद याद नहीं रहा। विशाल मिश्रा, मीत ब्रदर्स व सलीम-सुलेमान ने मिलकर गीत गढ़े हैं और सब कबाड़ा हो गया है। गीतकारों की लिस्ट में सलमान खान का नाम देखकर ही लग गया था कि संगीत को लेकर निर्माता कितने गंभीर थे।

 'रेस' व 'रेस 2' का निर्देशन अब्बास-मस्तान की जोड़ी ने किया था और सस्पेंस थ्रिलर बनाने में उनका कोई सानी नहीं। रेमो डिसूजा नृत्य निर्देशक अच्छे होंगे लेकिन मजेदार व जीवंत फिल्म बनाने की कला उन्हें नहीं आती। गीतों का फिल्मांकन वे अच्छा कर लेते हैं पर उनके भीतर का डांस डायरेक्टर बार-बार बाहर आ जाता है। तभी तो लद्दाख में रोमांटिक गीत के दौरान डेजी शाह हवा में झूल-झूलकर डांस करने लगती हैं। यही नहीं जब डेजी व जैकलीन में फाइट होती है तो लगता है कि डांस कंपीटिशन चल रहा है। रेमो के निर्देशन में दम नहीं है। वे 'एबीसीडी' जैसी फिल्में ही बना सकते हैं।


अभिनय में किसी को कुछ करने का मौका ही नहीं था। अनिल कपूर ने साधारण काम किया है। सलमान पर कुछ ज्यााद फोकस किया गया तो वे सही लगे हैं। बॉबी देयोल इसमें अच्छे लगे हैं लेकिन अंत में उन्हें विलेन दिखा दिया गया। उन्हें इस फिल्म से कुछ फायदा नहीं होने वाला है। शाकिब ठीक-ठाक हैं। डेजी शाह की कद काठी ऐसी है कि कभी कभी तो वे सलमान पर भी भारी पड़ती हैं। जैकलीन का काम ग्लैमर परोसना था और यही उन्होंने किया है। वे सुंदर लगती हैं और जब भी स्क्रीन पर आती हैं तो अच्छी लगती हैं। अभिनय करने के लिए तो उनसे कभी कहा ही नहीं जाता है शायद।

फिल्म देखने के बाद दर्शकों की प्रतिक्रिया बहुत खराब थी। उन्हें लग रहा था कि शायद वे ठगे गए। मुझे भी ऐसा लगा। इसलिए मैं गुस्से में थ्री डी चश्मा ही लेता आया। कुछ तो भरपाई होगी। वैसे आप वीकेंड पर इसे देखने की योजना बना रहे हैं तो मत देखिए। पछताएंगे और चश्मा लेकर आने का मौका भी सबको नहीं मिलता है।

Rating 1*

- हर्ष कुमार सिंह 

Monday 11 June 2018

DEEP PreVIEW : Dhadak

जहानवी कपूर के रूप में एक बड़ी स्टार की दस्तक

श्रीदेवी की बेटी जहानवी कपूर के रूप में बालीवुड को एक और बेहद चार्मिंग फेस मिलने जा रहा है। वे स्क्रीन पर आती हैं तो छा जाती हैं। उनके चेहरे में एक ग्लैमर है जो आप कैटरीना कैफ, प्रियंका चोपड़ा या फिर दीपिका पादुकोण में देखते हैं। एक मासूमियत है जो आलिया भट्ट या श्रद्धा कपूर में नजर आती है। उनकी पहली फिल्म 'धड़क' के ट्रेलर को देखने के बाद तो यही लगा कि बालीवुड को एक और बड़ी स्टार मिल गई है।
11 जून को 'धड़क' का ट्रेलर रिलीज कर दिया गया और सबने महान श्रीदेवी की बेटी को पहली बार स्क्रीन पर देखा। इस फिल्म में उनके नायक ईशान खट्टर (शाहिद कपूर के सौतेले भाई) हैं। ईशान को हम कुछ महीने पहले 'बियांड द क्लाउड्स' में देख चुके हैं। ईशान प्रतिभाशाली हैं लेकिन उनमें स्टारडम नहीं नजर आता। वे बालक लगते हैं। 'धड़क' के तीन मिनट का ट्रेलर देखने के बाद यह तो लगा कि ईशान ने मजेदार काम किया है या उनका किरदार लोगों को भाएगा लेकिन वे जहानवी की खूबसूरती या उनकी दमदार उपस्थिति के सामने टिक पाएंगे इसमें शक है।



मराठी फिल्म 'सैराट' के इस रीमेक को करण जौहर ने निर्मित किया है और इसके निर्देशक शशांक खेतान हैं। 'सैराट' की सफलता में उसके संगीत का बहुत बड़ा योगदान था। बिना किसी बड़े बैनर या स्टारकास्ट की वह फिल्म पहली मराठी फिल्म बन गई थी जिसने 100 करोड़ का कारोबार कर डाला। फिल्म मुख्य रूप से ऑनर किलिंग के मुद्दे पर बनी थी। इसी कहानी को शशांक खेतान ने राजस्थानी परिवेश में बदल डाला है। जबकि 'सैराट' महाराष्ट्र की बैकग्राउंड पर ही आधारित थी।


राजस्थान की बैकग्राउंड आ जाने से फिल्म में भव्यता के रंग भर देना आसान हो गया। यही कारण है कि 'धड़क' का ट्रेलर एक बड़ी कमर्शियल फिल्म होने का इशारा करता है। वैसे भी करण जौहर जैसा नाम जुड़ गया तो फिल्म का स्केल तो बढऩा तय है ही।


संगीत भी लगता है कि 'सैराट' की तरह बनाया गया है। 'सैराट' का सबसे हिट गीत 'झिंग झिंग झिंग झिंगा' तो हू ब हू ले लिया गया है। यानी इस पर कोई समझौता नहीं किया गया। कमर्शियल लिहाज से यह सही कदम है। जब संगीत हिट था तो उससे छेड़छाड़ करने की क्या जरूरत है?


ट्रेलर में मुझे जो चीज सबसे ज्यादा खटकी वो है लीड कलाकारों का राजस्थानी अंदाज में डायलॉग बोलना। जहानवी बेहद ग्लैमरस नजर आती हैं। उन्हें डिजाइनर कपड़े पहनाए गए हैं पर वे थारे-म्हारे अंदाज में डायलाग बोलती हुई उतनी सहज नहीं लगी। 'सैराट' की हिरोईन बहुत ही साधारण और एक अनजान चेहरा थी। जबकि जहानवी के साथ श्रीदेवी व बोनी कपूर का नाम जुड़ा है।

हो सकता है कि लोग 'धड़क' में जहानवी को एकदम से स्वीकार न करें लेकिन उनकी स्क्रीन पर उपस्थिति जादुई है और उनमें बड़ी स्टार बनने की सारी खूबियां मौजूद हैं। वे पूरी तैयारी के साथ आई हैं और पारी लंबी खेलेंगी।
सैराट का ट्रेलर भी देखें


- हर्ष कुमार सिंह 
(फिल्म 20 जुलाई 2018 को रिलीज हो रही है।)

Friday 1 June 2018

Deep Review : Veere Di Wedding

Rating- 2*
‘वीरे दि वेडिंग’ के रिलीज होने से पहले ही इसकी तारीफों का सिलसिला शुरू हो गया था। बालीवुड की नामचीन हस्तियों ने इस फिल्म को देखने के बाद सोशल मीडिया के माध्यम से इसकी तारीफ करनी शुरू कर दी थी। फिर सोनम कपूर की ही शादी हो गई। फिल्म को रिलीज से पहले ही इतना हाइप मिल गया था कि इसकी बंपर ओपनिंग लगनी तय थी। इस फिल्म को बिंदास महिलाओं की फिल्म के रूप में प्रचारित किया जा रहा था, तो जाहिर है आज के जमाने की महिलाएं तो इसे देखेंगी। यही हो भी रहा है।

जिस शो में मैंने यह फिल्म देखी उसमें 90 प्रतिशत महिलाएं थी। मैट्रो शहरों की आधुनिक महिलाएं अपनी दोस्तों के साथ फिल्म देखने आई हुई थी। कुछ के साथ उनके पति थे कुछ के साथ उनके पुरुष दोस्त। गौर से देखा तो बहुत कम महिलाएं ऐसी थी जो अपने व्यस्क बच्चों के साथ थी। चूंकि फिल्म को ए सर्टिफिकेट मिला है तो छोटे बच्चे तो जा ही नहीं सकते। फिल्म में बीच-बीच में महिलाओं के ठहाके भी चल रहे थे क्योंकि फिल्म की चार मुख्य पात्रों को खुलकर बोल्ड डायलाग दिए गए है। जिन गालियों को हम गलियों, बस या ट्रेन की भीड़ में किसी के मुंह से सुनकर शर्मिंदा या नाराज हो जाया करते हैं उन्हें यहां लीड कलाकारों के मुंह से बोलते हुए सुनकर हंसी छूट रही थी। यही तो आधुनिकता है। सार्वजनिक स्थान पर आप सुसंस्कृत व सभ्य हो जाते हैं लेकिन जैसे ही निजी मनोरंजन की बात आती है तो हम यह आवरण उतार फेंकते हैं।
सुमित व्यास आपको पसंद आएंगे
इस फिल्म में कई अनूठे प्रयोग किए गए हैं। हिंदी सिनेमा के इतिहास में शायद यह पहला मौका होगा जब female masturbation को खुलेआम स्क्रीन पर दिखाया गया है। स्वरा भास्कर को अपने बिस्तर पर पति के सामने ऐसा करते हुए दिखाया गया है। भले ही सीन उतनी गंभीरता से नहीं फिल्माया गया है लेकिन दिखाया तो masturbation ही है। शायद निर्देशक की यह सोच रही होगी कि अगर वे महिलाओं को लेकर एक बोल्ड फिल्म बना रहे हैं तो यह भी दिखा सकते हैं। वे जानते थे कि फिल्म को ए सर्टीफिकेट मिलना तय है। इसलिए जितनी भी गालियां दिलवानी हैं, जितने भी कपड़े उतरवाने हैं उतरवा लो लड़कियों से। चारों ही हिरोइनों ने इसमें कोई कसर नहीं छोड़ी है। बेड से लेकर बिकिनी, सिगरेट से लेकर दारू तक सब कुछ दिखा दिया गया है। किस भी हद तक चले गए हों लेकिन निर्देशक शशांक घोष फिल्म स्वरा भास्कर के masturbation सीन के अलावा कुछ भी ऐसा नहीं दिखा सके हैं जो पहले आपने नहीं देखा हो। सब कुछ देखा हुआ लगता है।

अबू जानी-संदीप खोसला की एक खूबसूरत ड्रैस में करीना।

कहानी में कुछ भी ऐसा नहीं है जो लिखा जा सके। या यूं कहूं कि कहानी जीरो है तो गलत नहीं होगा। कुछ साल पहले आई जोया अख्तर की फिल्म ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबरा’ को देखने के बाद ही शायद शशांक को इस फिल्म को बनाने की प्रेरणा मिली होगी। कालिंदी (करीना कपूर), अवनी (सोनम कपूर), साक्षी (स्वरा भास्कर) व मीरा (शिखा तलसानिया) स्कूल से ही पक्की दोस्त हैं। पहले सीन में वे स्कूल की घंटी बजाकर छुट्टी कर शरारती होने की सबूत देती हैं और फिर फिल्म दस साल आगे चली जाती है। दिखाया जाता है कि सबकी जिंदगी में कुछ न कुछ समस्या है। साक्षी का तलाक होने वाला है, मीरा ने घरवालों से छिपकर विदेश में शादी कर ली है बच्चा भी है, अवनी की शादी नहीं हो रही और कालिंदी की होने वाली है। कालिंदी की शादी के लिए ही चारों फिर से मिलती हैं और फिर वही धमाल मचाती हैं।

निर्देशक ने फिल्म को बोल्ड बनाने के लिए चारों को खूब दारू व सिगरेट पिलाई हैं। पर कोई भी हिरोइन उन सींस में सहज नहीं लगती। करीना कपूर शानदार काम करती रही हैं और यहां भी वे अपना रोल बखूबी निभा ले गई हैं। स्वरा को तो किरदार ही ऐसा मिला है जो सबको पसंद आएगा। अगर ये कह दूं कि इस फिल्म से सबसे ज्यादा फायदा स्वरा को ही होगा तो गलत नहीं होगा। सोनम कपूर पता नहीं क्यों इस फिल्म में बहुत ही खराब लगी हैं। कई बार तो कैमरा इतने गंदे तरीके से उनके चेहरे पर फोकस किया गया है कि वे बेहद कमजोर व बीमार नजर आती हैं। सोनम की तो होम प्रोडक्शन है। पिता अनिल कपूर के नाम पर उनकी बहन रिया कपूर ने फिल्म का निर्माण किया है। एकता कपूर तो को-प्रोड्यूसर हैं। उन पर तो विशेष फोकस किया जाना चाहिए था। नीना गुप्ता, विवेक मुश्रान आदि साथी कलाकार छोटे-छोटे रोल में ठीक हैं। प्रमुख कलाकारों में सबसे ज्यादा प्रभावित किया सुमित व्यास ने। वे थोड़े मैच्योर लगते हैं और हल्के फुल्के किरदारों की भीड़ में बहुत ही सहज नजर आते हैं।

यह भी पढ़ें- 
स्वरा भास्कर ने भंसाली को लिखा खुला पत्र तो मिला यह जवाब

फिल्म का संगीत अच्छा है। बादशाह का गाया गीत ‘तारीफें’ अंत में आता है लेकिन लोग उसे देखने के लिए सिनेमा में बैठे रहते हैं। इसके अलावा ‘लाज शरम’, ‘वीरे’, ‘आ जाओ ना’ भी अच्छे हैं। संगीत के लिए शाश्वत सचदेव व विशाल मिश्रा की तारीफ की जानी चाहिए। अबु जानी- संदीप खोसला ने लंबे समय बाद किसी फिल्म के लिए कास्ट्यूम डिजाइन किए हैं और शानदार तरीके से किए हैं। यह फिल्म की सबसे बड़ी खासियतों में से एक है। लोकेशन अच्छी हैं और दिल्ली वालों को पसंद आएंगी। बाराखंबा रोड का बंगला, ग्रेटर कैलाश की कोठियां, सरोजिनी नगर की मार्किट आपको जाने पहचाने लगेंगे।

अगर आप फिल्में मनोरंजन के लिए देखते हैं तो यह आपको अच्छी लग सकती है लेकिन अगर आप कुछ गंभीर व अच्छा काम देखने के शौकीन हैं तो यह फिल्म आपके लिए नहीं है। फैमिली एंटरटेनमेंट तो यह नहीं है। मां-बहन की गालियां, एफ शब्द का हर बात में इस्तेमाल आपको कोफ्त पैदा कर देगा।

- हर्ष कुमार सिंह