संजय दत्त को रील से रीयल लाइफ हीरो बनाने की कहानी
'संजू' फिल्म के बारे में कुछ भी लिखने से पहले यह बता दूं कि यह फिल्म संजय दत्त की बायोपिक नहीं है। यह फिल्म संजय दत्त के जीवन के केवल दो पहलुओं पर बात करती है। एक- उनकी ड्रग्स में डूबी जिंदगी और उससे बाहर आने की लड़ाई। दूसरी- उन पर लगे आतंकवादियों से संबंध होने के इल्जाम, जेल, सजा और रिहाई की जंग। इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे संजय दत्त हालात के शिकार बने और एक के बाद एक गलतियां करके भी अपने पिता स्व. सुनील दत्त की वजह से सब मुसीबतों से लड़ते रहे।
'संजू' देखने के बाद सबसे पहले जिसकी तारीफ करने को मन चाह रहा है वो है संजय दत्त के दोस्त कमलेश कन्हैयालाल कपासी का रोल निभाने वाले विक्की कौशल। संजय दत्त के जीवन के इस अछूते हिस्से के बारे में बहुत कम लोग जानते थे और इस फिल्म के बाद कमलेश उर्फ कमली के किरदार से आपको प्यार हो जाएगा। संजय दत्त के जीवन में आए सबसे महत्वपूर्ण लोगों में से एक है कमलेश और इस रोल को विक्की ने दिल से निभाया है। बल्कि कई सीन में तो उन्होंने परेश रावल व रणबीर कपूर को भी पानी पिला दिया है।
रणबीर कपूर की क्या तारीफ करें। वे तो देश की वर्तमान पीढ़ी के सबसे आला दर्जे के कलाकारों में पहले से गिने जाते हैं। इस फिल्म ने उनके स्थान को और भी ऊंचा कर दिया है। कई बार तो यह लगता ही नहीं कि हम रणबीर कपूर को देख रहे हैं। ऐसा लगता है कि जैसे हम संजय दत्त को ही देख रहे हैं या संजय दत्त खुद ही अपने किरदार को निभा रहे हैं।
Video Blog- Harh Kumar Singh, Deep Review - watch in two minutes:
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इस तरह की फिल्मों में हमेशा ही सही कास्टिंग करना चुनौतीपूर्ण काम होता है और यह काम कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़िया और उनकी टीम ने शानदार तरीके से किया है। संजय दत्त के जीवन के लगभग 35-40 साल के दौर को दिखाने के लिए कई तरह के छोटे-छोटे किरदारों को दिखाया जाना था और इसे मुकेश की टीम ने बहुत ही बढिया तरीके से किया है।
किसी भी फिल्म का रीव्यू लिखने के लिए उसकी कहानी को बताना भी जरूरी होता है। कहानी के नाम पर कुछ ज्यादा नहीं है लेकिन कहानी में कुछ अनछुए पहलुओं को छूकर और कुछ मार्मिक लम्हों को जोड़कर राजकुमार हिरानी ने फिल्म को इतना बेहतर बना दिया है कि आपको कहानी की कमी महसूस नहीं होती। कई बार आपकी आंखों में आंसू भी आते हैं। फिल्म की शुरूआत वहां से होती है जब संजय दत्त आखिरी बार साढ़े तीन साल के लिए जेल गए थे। वे चाहते थे कि उनके जीवन की कहानी कोई अच्छा लेखक लिखे। लंदन की प्रसिद्ध बायोग्राफर विन्नी डियाज (अनुष्का शर्मा) से संजय (रणबीर) व उनकी पत्नी मान्यता (दिया मिर्जा) निवेदन करते हैं कि वे यह जिम्मा लें। विन्नी उनके बारे में जानना शुरू करती है। इस तरह एक के बाद एक किरदार सामने आते हैं और शुरूआती दौर में इंकार करने के बाद विन्नी उनकी बायोग्राफी (कुछ तो लोग कहेंगे) लिखने को राजी हो जाती हैं। विन्नी के जरिए ही कहानी आगे बढ़ती है और जब संजय 2015 में जेल से बाहर आते हैं तो वे किताब उन्हें सौंपती हैं।
फिल्म के क्लाइमैक्स में आने वाले इस गीत में रणबीर व संजय दत्त साथ नजर आते हैं। देखिए आपको पसंद आएगा ये गीत-
फिल्म के क्लाइमैक्स में आने वाले इस गीत में रणबीर व संजय दत्त साथ नजर आते हैं। देखिए आपको पसंद आएगा ये गीत-
जाहिर है संजय दत्त की लाइफ पर फिल्म बन रही थी तो सब कुछ संजय दत्त के हिसाब से ही दिखाया जाना था। डायरेक्टर राजकुमार हिरानी ठहरे संजू बाबा के मुरीद। उन्होंने फिल्म को इस तरीके से रचा है कि देखने वाले को संजय दत्त बेदाग हीरो के रूप में नजर आते हैं। हो सकता है कि संजू में जो भी दिखाया गया है वो सब कुछ सही हो। हो सकता है कि संजय दत्त के खिलाफ मीडिया ने कुछ ज्यादा ही लिखा हो और हो सकता है कि वे हालात के शिकार भी हुए हों लेकिन इतना तय है कि उनका जीवन बहुत ही उतार चढ़ाव भरा रहा। इसी वजह से दर्शक फिल्म को देख भी रहे हैं।
फिल्म में दिखाया गया है कि संजय दत्त को नशे के दलदल में धकेलने वाला उनका दोस्त जुबिन मिस्त्री किस तरह उनसे पैसा ऐंठकर बड़ा बिजनेसमैन बन गया। जुबिन संजय को नशे की दवाएं देता था और खुद मीठा ग्लुकोज खाता था। अब इतने साल तक संजय दत्त कैसे उसकी इस बात को नहीं पकड़ पाए यह भी सोच में डालने वाली बात है ? खैर राजकुमार हिरानी ने जैसा संजय दत्त ने बताया वैसे ही फिल्म बनाई है और कहानी को सस्पेंस, इमोशन व हास्य के तानेबाने में पिरोया है। गंभीर सीन भी हल्के में दिखा गए हैं वे। इस कला के तो वे मास्टर माने जाते हैं।
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फिल्म में कुछ चौंकाने वाली बातें भी बताई गई हैं। दिखाया गया है कि कैसे संजय दत्त ने अपने पहली प्रेमिका (शायद टीना मुनीम) रूबि (सोनम कपूर) के परिवार के साथ बुरा व्यवहार किया। मंगलसूत्र की जगह उसके गले में कमोड का सीट कवर पहना दिया। इसके अलावा अंडरवर्ल्ड के साथ उनके संबंधों को लेकर सामने आई खबरों आदि को किस तरह से उन्होंने हैंडल किया आदि-आदि तमाम ऐसी बाते हैं जिन्हें इस फिल्म के माध्यम से दिखाया गया है।
अभिनय के मामले में विक्की कौशल और रणबीर कपूर का कोई तोड़ नहीं है। सुनील दत्त के रोल को परेश रावल ने बहुत ही शिद्दत से निभाया है। नरगिस दत्त के रोल में मनीषा कोईराला को कुछ ज्यादा ही बूढ़ी दिखा दिया गया। कुछ मेकअप की कमी रही शायद लेकिन वे बहुत अच्छी लगी हैं। अनुष्का भी लेखिका के रोल में जमी हैं। फिल्म में संजय दत्त की पहली (स्व.रिचा शर्मा) व दूसरी पत्नी (रिया पिल्लै), पहली बेटी (त्रिशाला दत्त), उनके बहनोई (कुमार गौरव) आदि के बारे में कोई जिक्र नहीं किया गया है। इसलिए मैंने कहा भी कि यह फिल्म उनकी बायोपिक नहीं है। हां यह फिल्म संजय दत्त को रील लाइफ की तरह रीयल लाइफ में भी हीरो बना देती है।
फिल्म के सभी तकनीकी पहलू बहुत ही सशक्त हैं। 80, 90 के दशक के माहौल को एकदम सही दिखाने की कोशिश इसमें की गई है। कास्ट्यूम डायरेक्टरों की भी मेहनत साफ नजर आती है। संगीत के लिहाज से यह फिल्म ज्यादा कुछ स्कोप नहीं रखती थी लेकिन हिरानी ने इसमें कुछ अच्छे गीत डाले हैं। कई संगीतकार जुटाए हैं। पर सब गानों पर भारी पड़ता है- सुखविंदर व श्रेया घोषाल का गाया 'कर हर मैदान फतेह'। इसे संगीतबद्ध किया है विक्रम मोंत्रोश ने। बाकी गीत फिल्म में अच्छे लगे हैं लेकिन बाहर आने पर याद नहीं रहते। वैसे भी हिरानी कभी म्यूजिकल फिल्में बनाने वालों में नहीं रहे हैं। उनकी फिल्मों की ताकत कहानी और उसका प्रस्तुतिकरण रहा है और संजू में भी यही हिस्सा सबसे मजबूत है।
Rating 4*
- हर्ष कुमार सिंह