Tuesday 29 December 2015

A day with Sanjay Leela Bhansali at his office

'बाजीराव मस्तानी' के महान फिल्मकार संजय लीला भंसाली के मुंबई आफिस में बिताया एक यादगार दिन 
मुंबई में 20 नवंबर को “बाजीराव मस्तानी” के ट्रेलर लांच इवेंट में भाग लिया तो रणवीर सिंह व दीपिका पादुकोण का इंटरव्यू फन सिनेमा में ही हो गया लेकिन जब मैं और बाहर से कवर करने के लिए आए कुछ और पत्रकारों ने संजय लीला भंसाली से इंटरव्यू के लिए आयोजकों से कहा तो हमें बताया गया कि संजय जी इस तरह से सार्वजनिक कार्यक्रमों में बात करना पसंद नहीं करते हैं। इसलिए हमें अगले दिन उनके आफिस जाना होगा। अगले दिन होटल सन एंड सैंड से लगभग डेढ़ घंटे की ड्राइव के बाद हम जूहू के जिस इलाके में भंसाली से मिलने पहुंचे वह काफी प्रसिद्ध जगह थी। रास्ते में ड्राइवर चंद्रमा ने बताया कि वहीं पास में एकता कपूर का घर भी है। रास्ते में जब चंद्रमा ने लोगों से भंसाली का आफिस पूछा तो बार-बार ये भी हिंट दिया कि एकता कपूर के घर के पास है। इस से ये भी लग रहा था कि संजय लीला भंसाली के आफिस के बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते थे।
स्वाति मित्रा नाम की सात मंजिला बिल्डिंग के सामने हम पहुंचे तो वहां काफी शांति थी। कोई ट्रैफिक नहीं था। बस एक बड़ी सी मर्सिडीज गाड़ी बैक करके इमारत की छोटी सी पार्किंग में लगाई जा रही थी। हम अपनी गाड़ी से उतरकर लिफ्ट की ओर बढ़ने लगे तो देखा की सामने ही संजय लीला भंसाली कान पर मोबाइल लगाए वहीं टहल रहे हैं। गाड़ी उन्हीं की थी। तभी लिफ्ट ( जो पुराने चैनल सिस्टम की थी) नीचे आई और भंसाली उसमें सवार होकर ऊपर चले गए। मैं और मेरे एक साथी पत्रकार, जो हैदराबाद से आए थे, भंसाली के साथ ऊपर नहीं गए। हमने बाद में जाना ही उचित समझा। हमारे साथ लिफ्ट में थे संजय के ड्राइवर। उन्होंने ही बताया कि हमें छठी मंजिल पर जाना है।
इसी बिल्डिंग की 7वीं मंजिल पर भंसाली का आफिस है।
छठी मंजिल पर संजय लीला भंसाली का सामान्य आफिस था जबकि सातवें फ्लोर पर उनका निजी कार्यालय व अपार्टमेंट। इंटरव्यू सातवें फ्लोर पर ही होना था। हम से पहले भी कुछ पत्रकार ऊपर गए हुए थे इसलिए हमें नीचे ही रुकने के लिए कहा गया। हम वहीं सोफे पर बैठ गए। ये आफिस का मुख्य हिस्सा नहीं था। आफिस के बाहर बनी एक लॉबी थी जिसे दो हिस्सों में बांटा गया था। एक और भंसाली का कुत्ता बंधा हुआ था और दूसरी ओर के हिस्से में बैठने की व्यवस्था की गई थी।यहां लगभग डेढ़ घंटा इंतजार करना अच्छा ही रहा। इस दौरान काफी कुछ जानने का समय मिल गया। इस दौरान वहीं कुछ ऐसी चीजें भी देखने के लिए मिली जो आम आदमी के लिए कभी संभव नहीं हैं। मैंने उनके आफिस का आकलन किया और पाया कि वे सादगी पसंद हैं।

उनका ये कुत्ता खूब ड्रामा करता है। एसी में सोता है और तब
तक खाना नहीं खाता जब तक सब लोग उससे दूर न हट जाएं। 

रामलीला के कास्ट्यूम व अन्य जरूरी कागजातों से भरे बक्से। 

ये ढेर लगा है बाजीराव मस्तानी की कास्ट्यूम्स का। देख कर भी
आश्चर्य हो रहा था कि क्या इतने कपड़े इस्तेमाल हुए हैं? 

आफिस में बड़े-बडे लोहे के बक्से रखे हुए थे जिन पर लिखा था कि उनमें “रामलीला” व “बाजीराव मस्तानी” की कास्ट्यूम भरी हुई हैं। इसके अलावा दीवार में बने एक शो केस के ऊपर खुले में ही कुछ ट्राफियां रखी हुई थी जो धूल फांक रही थी। इनमें फिल्मफेयर पुरस्कार के अलावा बाकी सभी ट्राफियां थीं जो समय-समय पर भंसाली को मिली होंगी। इनमें स्क्रीन, जी व स्टारडस्ट जैसे तमाम अवार्ड थे जो साल भर होते रहते हैं। देखने से लग रहा था कि भंसाली के लिए पुरस्कार के लिए कितने मायने हैं।
बाहरी हिस्से में ही रखे गए ये सभी पुरस्कार धूल ही फांक रहे हैं। 
भंसाली के निजी कक्ष में रखा गुजारिश का फ्रेम किया हुआ पोस्टर। 

यहीं बैठकर भंसाली ने बाजीराव मस्तानी की कहानी व संगीत रचा। 

मैं उनके निजी कक्ष में हूं और बाहर भंसाली अपनी टीम से
मीटिंग करते हुए साफ नजर आ रहे हैं। इसी दरवाजे से हम
उनके कक्ष में आए थे। 

इसी काउच पर बैठकर भंसाली ने हमसे बात की। 

दीवार पर लगे भंसाली के कुछ पुराने फोटो। 

उनकी कुछ अन्य फिल्मों के पोस्टर इस तरह से उनके कमरे की शोभा बढ़ा रहे हैं। 

उनके कामकाज में प्रयोग आने वाली एक और टेबल। 


उनकी मुख्य टेबल, जिस के साथ एक शानदार म्यूजिक सिस्टम भी रखा है। भंसाली
संगीत के बहुत बडे़ शौकीन हैं। 

भंसाली के स्टाफ के लोगों के बीच केवल एक ही चर्चा थी। ट्रेलर की। सभी ट्रेलर की अपनी-अपनी ओर से समीक्षा कर रहे थे। सभी के मोबाइल में ट्रेलर ही चल रहा था। वहां रखे कंप्यूटर पर भी स्क्रीन सेवर “बाजीराव मस्तानी” का ही सेट था।  इंतजार के बाद हमें सातवीं मंजिल से बुलावा आया तो वहां पहले से ही भंसाली व उनके असिस्टेंट किसी मीटिंग में बिजी थे। एक खुली छत पर शीशे से कवर करके उनका आफिस बनाया गया था। रोशनी काफी थी। सब कुछ साफ दिख रहा था। हम घुसे तो एक और खतरनाक नस्ल के कुत्ते ने हमारा स्वागत किया। हमने भंसाली का अभिवादन किया और उन्होंने मुस्कुरा कर जवाब दिया। हमें जिस कमरे में बैठाया गया उसे देखकर लगता था कि वहीं बैठकर भंसाली अपनी फिल्मों पर काम करते हैं।
भंसाली के निजी कक्ष में ये यादगार सैल्फी। 
कमरे में उनकी फिल्मों के फ्रेम किए हुए फोटो लगे हुए थे। संजय बाहर बरामदेनुमा आफिस में मीटिंग कर रहे थे और मुझे मौका मिल गया उनके निजी रूम में कुछ फोटो क्लिक करने का। मन में बार-बार ख्याल आ रहा था कि एक-एक लम्हे को कैमरे में कैद कर लूं। हालांकि साथ आई पीआर कंपनी की स्टाफर ने फोटो न लेने का आग्रह किया लेकिन उसके टोकने से पहले ही मैं कई फोटो ले चुका था और डिलीट करने का कोई इरादा नहीं था। भंसाली मीटिंग करने के बाद कुछ समय फोन पर बात करते हुए बाहर ही टहलते रहे और फिर अंदर आकर हमारे सामने आ बैठे। उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी और बैठते ही बोले- जी जनाब फरमाइये। मेरे मुंह से अचानक ही निकल गया- सर किसी को फिल्मकार को कुर्ते-पायजामे में देखता हूं तो बहुत अच्छा लगता है। संजय मुस्कुरा दिए। इसके बाद इंटरव्यू हुआ (जो आप पहले ही मेरे ब्लाग में दो भागों में पढ़ चुके हैं। यू ट्यूब पर भी आप सर्च करेंगे तो ये मिल जाएगा)।
सैल्फी नंबर 1

इंटरव्यू के बाद सैल्फी क्लिक कराई तो भंसाली बहुत ही विनम्र पेश आए। बातों ही बातों में मैंने अपने मन की बात भी कह दी। मैंने कहा- सर मेरी भी तमन्ना डायरेक्टर बनने की थी लेकिन संभव नहीं हो पाया। इस पर भंसाली ने कहा- तो अब कौन सी देर हो गई है। आ जाओ मैदान में अगर जूझने की क्षमता है तो। मैंने कहा- देख लीजिए सर मैं आ भी जाऊंगा। भंसाली बोले- आ जाओ यार जब मर्जी।
इंटरव्यू के बाद भंसाली संग सैल्फी नंबर 2 

इंटरव्यू इतने शानदार माहौल में हुआ कि मन बाग-बाग हो गया। भंसाली का व्यवहार तो कमाल का है। वे बहुत ही मंझे हुए व्यक्ति हैं और कोई भी उनसे प्रभावित हुए बिना रह ही नहीं सकता।

ट्रेलर लांच के समय हमारे साथ बातचीत करते रणवीर-दीपिका। 
बाजीराव मस्तानीः इंटरव्यू में दीपिका ही बोले जा रही थी। एक बार तो रणवीर नाराज होकर चुप हो गए और
दीपिका से बोले- आप ही बोलो मेरा हो गया। बाद में वे नार्मल भी हो गए। आप मेरी पुरानी पोस्ट में
दोनों से बातचीत के अंश पढ़ सकते हैं। 





Sunday 20 December 2015

Exclusive Report : How ‘Dilwale’ took initial lead over ‘Bajirao Mastani’ at BOX OFFICE

जानिएः ‘बाजीराव मस्तानी’ अच्छी पर पैसा ‘दिलवाले’ ज्यादा कमा रही है, कैसे?

एक ही दिन बाक्स आफिस पर रिलीज हुई रोहित शेट्टी की फिल्म ‘दिलवाले’ और संजय लीला भंसाली की ‘बाजीराव मस्तानी’ भले ही एक दूसरे से काफी अलग तरह की फिल्में हों लेकिन बाक्स आफिस पर दोनों ही दर्शकों को खींचने में सफल रही हैं। ‘दिलवाले’ ने बड़ी स्टार कास्ट व आक्रामक मार्किटिंग से पैसा कमाने का सिलसिला शुरू किया है लेकिन फिल्म लोगों को पंसद नहीं आ रही है। मीडिया ने भी ‘बाजीराव मस्तानी’ की दिल खोलकर तारीफ की है और देखने वाले भी अपने पैसे वसूल पा रहे हैं।
‘दिलवाले’ : ज्यादा स्क्रीन, ज्यादा बिजनेस
‘दिलवाले’ ने पहले दो दिन में 21-21 करोड़ का बिजनेस किया है जबकि ‘बाजीराव मस्तानी’ ने पहले दिन 12 व दूसरे दिन 14.5 करोड़ का। साफ है शाहरुख खान व काजोल की टीम पहले झटके में ही दर्शकों को अपनी ओर खींचने में सफल रही है, लेकिन बाक्स आफिस की नब्ज जानने वालों का कहना है कि ‘बाजीराव मस्तानी’ ने दूसरे दिन 15 से 2 0 प्रतिशत की जो उछाल पाई है वो शुभं संकेत है कि फिल्म लोगों को पसंद आ रही है। जिन लोगों को स्टार्स के नाम पर फिल्में देखना पसंद है वे ‘दिलवाले’ को जरूर देखेंगे लेकिन धीरे-धीरे ‘बाजीराव मस्तानी’ पकड़ बना रही है। मीडिया के माध्यम से मिले शानदार रिव्यू भी भंसाली की फिल्म को बूस्ट कर रहे हैं।


दिल्लीः 'दिलवाले' बन रही दूसरी पसंद
रविवार को दोनों ही फिल्मों के दिल्ली में ज्यादातर शो फुल रहे। नई दिल्ली के प्रमुख इलाके कनाट प्लेस में मौजूद पीवीआर प्लाजा में दोपहर के दोनों शो में ‘बाजीराव मस्तानी’ हाउस फुल थी जबकि ‘दिलवाले’ के टिकट मिल रहे थे। इसके बावजूद भी ‘दिलवाले’ के टिकट लोग ठुकरा रहे थे। कुछ संडे मनाने निकले थे तो ‘दिलवाले’ ही देख रहे थे। ये संकेत हैं कि ‘दिलवाले’ सेकेंड च्वाइस बन रही है। यानी ‘बाजीराव मस्तानी’ के टिकट नहीं मिले तो चलो ‘दिलवाले’ ही देख लेते हैं। फिल्म तो देखनी ही है। संभवतः ये दोनों ही फिल्में अलग-अलग रिलीज हुई होती तो बिजनेस के आंकड़े कुछ और ही होते। बहरहाल प्रतिस्पर्धा बिजनेस व मार्किटिंग की नहीं बल्कि कभी-कभी अच्छी व बुरी फिल्म की भी होनी चाहिए। वैसे एक बात बहुत सही है। दोनों ही फिल्मों के प्रोड्यूसर जो बिजनेस के आंकड़े दे रहे हैं वो बिल्कुल सही हैं। कुछ भी बढ़ा चढ़ाकर नहीं बताया जा रहा है।

मार्किटिंगः पीवीआर में ‘बाजीराव मस्तानी’ का शो, पॉपकार्न आफर कर रहे शाहरुख-काजोल
‘दिलवाले’ और ‘बाजीराव मस्तानी’ के बिजनेस में जो फर्क महसूस हो रहा है वो कुछ इस तरह से भी समझा जाना चाहिए। ‘दिलवाले’ के पास पूरे देश में 3200 से ज्यादा स्क्रीन है और ‘बाजीराव मस्तानी’ के पास 3050 स्क्रीन। इसके अलावा नंबर आफ शो भी ‘दिलवाले’ के ज्यादा हैं। नई दिल्ली की बात करें तो दोपहर में 12 से 3 के प्राइम टाइम में ‘दिलवाले’ के शो ‘बाजीराव मस्तानी’ से तीन गुने हैं। यानी इस टाइम में अगर आप को ये फिल्म देखनी है तो आपके लिए एक या दो शो हैं जबकि ‘दिलवाले’ के पास 3 से 5 शो हैं। इसके अलावा दिल्ली रीजन में सबसे ज्यादा स्क्रीन रखने वाली पीवीआर सिनेमाज की सीरीज दिलवाले को पूरी तरह से प्रमोट कर रही है। यदि आप दिल्ली के किसी पीवीआर में ‘बाजीराव मस्तानी’ देख रहे हैं तो आपको फिल्म शुरू होने से पहले शाहरुख व काजोल ये कहते नजर आएंगे कि आप ‘दिलवाले’ जरूर देखें। इंटरवल में भी शाहरुख व काजोल आपको ये याद दिलाने आएंगे कि बाहर जाकर आप पॉपकार्न तो खा लें। साफ है कि ‘दिलवाले’ की मार्किटिंग बहुत ही स्ट्रांग है।


रिलीज के बाद भी मार्किटिंग के लिए किंग खान खुद मैदान में
शाहरुख खान फिल्म के रिलीज हो जाने के बाद भी खुद प्रमोशन में लगे हुए हैं जबकि ‘बाजीराव मस्तानी’ की फिल्म प्रमोशन बंद कर चुकी है। शाहरुख ‘बिग बास’ जैसे शो में शनिवार व रविवार, दोनों दिन नजर आए। हालांकि कई बार महंगी प्रमोशन नुकसान भी दे जाती है लेकिन शाहरुख फिल्मों के भारी प्रमोशन के लिए माने जाते हैं। उन्होंने पिछली बार ‘हैप्पी न्यू ईयर’ के लिए दो-दो दिन कपिल के कॉमेडी शो में दिए थे जो किसी फिल्मकार ने आज तक नहीं किया। खुद सलमान खान ने एक बार शाहरुख से कहा था कि फिल्मों के प्रमोशन पर इतना पैसा खर्च मत करो लेकिन शाहरुख नहीं माने और यही वजह है कि उनकी ‘हैप्पी न्यू ईयर’ तमाम आलोचनाओं के बावजूद 200 करोड़ क्लब में पहुंचने में सफल रही थी।


मुंबई के प्रेस शो में दिखा दोनों के बीच कंपीटिशन, एक ही समय थे दोनों के शो
हालांकि ‘दिलवाले’ और ‘बाजीराव मस्तानी’, दोनों ही फिल्मों के निर्माता किसी भी प्रकार के कंपीटिशन से इंकार कर रहे हैं लेकिन फिर भी दोनों के बीच होड़ पहले दिन से ही लगी है। कभी ‘देवदास’ में साथ-साथ काम कर चुके भंसाली व शाहरुख के बीच ये टकराव कितना दिलचस्प है इसका अनुमान दोनों के ही वीरवार को मुंबई में हुए प्रेस शो पर नजर आया। मुंबई के मेरे एक पत्रकार दोस्त ने ये दोनों ही शो अटेंड किए और बताया कि ‘बाजीराव मस्तानी’ का शो अंधेरी के फन सिनेमाज में रखा गया था और समय दिया गया था शाम के 6 बजे का। जबकि ‘दिलवाले’ ने भी तुरंत इसके बाद का शो रख दिया। हालांकि ‘दिलवाले’ का शो पास में ही मौजूद इनफिनिटी मॉल के पीवीआर सिनेमाज में था लेकिन मीडिया वालों के पास वहां पहुंचने का समय बहुत कम था। ‘बाजीराव मस्तानी’ देरी से शुरू हुई और देरी से ही खत्म हुई। फिल्म 9.30 खत्म हुई और इसके बाद मीडिया के लोग ‘दिलवाले’ पहुंचे। मेरे साथी पत्रकार ने बताया कि ये सही नहीं था। ‘दिलवाले’ की टीम ने जानबूझकर ऐसा किया जबकि वे जानते थे कि ‘बाजीराव मस्तानी’ ढाई घंटे से भी लंबी फिल्म है। इसके बाद भी मीडियाकर्मियों ने ‘बाजीराव मस्तानी’ का पूरा आनंद उठाया और उसके बाद ही ‘दिलवाले’ के लिए उठे। इस वजह से ‘दिलवाले’ का शो भी देरी से 10 बजे के बाद ही शुरू हुआ। ये साबित करता है कि दोनों फिल्में किस तरह कंपीटिशन के मूड में हैं।

पते की बातः
बहरहाल दोनों ही फिल्मों के पास लंबा समय है क्योंकि अगले हफ्ते भी कोई बड़ी फिल्म नहीं है इसलिए पैसा रिकवर करने के लिए दोनों ही भरपूर जोर आजमाइश कर सकते हैं। दर्शक तो वही फिल्म देखेंगे जो उन्हें अच्छी लगेगी।
- हर्ष कुमार


Friday 18 December 2015

DEEP REVIEW- "Bajirao Mastani" : A must watch, but not a 'Mughal E Azam'

"बाजीराव मस्तानी":  एक शानदार फिल्म लेकिन नहीं बन पाई भंसाली की 'मुगल ए आजम'  

REVIEW RATING: 4*
देश में सबसे प्रतिभाशाली फिल्मकार के रूप में खुद को स्थापित कर चुके संजय लीला भंसाली अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण फिल्म को आखिर लोगों के सामने लाने में सफल रहे। ‘बाजीराव मस्तानी’ को हर ओर से शानदार रिव्यू मिल रहे हैं। इस बात से सभी समीक्षक सहमत हैं कि ये फिल्म भारतीय सिनेमा की सबसे चर्चित व विशिष्ट फिल्मों की श्रेणी में स्थान बनाने में सफल रहेगी, लेकिन संजय लीला भंसाली और उनकी प्रतिभाशाली टीम के पूरे प्रयास के बाद भी ये फिल्म उनके जीवन की ‘मुगल-ए-आजम’ बन पाएगी इसमें संदेह है।
के आसिफ, व्ही शांताराम जैसे निर्देशकों की फिल्मों को देखकर बडे हुए संजय लीला भंसाली का कहना है कि वे इस फिल्म को 12 साल से बनाना चाह रहे थे लेकिन बार-बार कुछ न कुछ अड़चन आ जाती थी। अब फिल्म बनकर सबके सामने आ चुकी है और सिनेमाहाल्स में चल रही है। फिल्म देखने के बाद संजय लीला भंसाली के स्किल्स आपको चौंका देते हैं। जिस स्केल पर उन्होंने फिल्म को बनाया है वो कमाल का है। ये सही है कि केवल संजय जैसे फिल्मकार ही ऐसी फिल्म बनाने के बारे में सोच सकते हैं और जज्बा दिखा सकते हैं।

यूं बनी देखने लायक फिल्मः

जहां फिल्म में ऐसी खामियां हैं जो इस फिल्म को संजय लीला भंसाली की सबसे बड़ी हिट व हिंदी सिनेमा की सबसे ऐतिहासिक फिल्म बनने से रोकती हैं तो दूसरी ओर फिल्म में तमाम ऐसी विशेषताएं भी हैं जो इसे समकालीन सिनेमा की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक बना देती हैं। कुछ खूबियाः-

1. फिल्म जिस तरह से शूट की गई है उस तरह का स्केल हिंदी सिनेमा में बहुत कम देखने को मिलता है। इससे पहले आशुतोष गोवारिकर ने ‘जोधा अकबर’ में ऐसा प्रयास किया था लेकिन भंसाली की फिल्म भव्यता व प्रोडक्शन वैल्यूज के मामले में बहुत आगे निकल जाती है। भले ही रणवीर-दीपिका की जोड़ी हृतिक-ऐश्वर्या जैसी ग्लैमरस व अद्वितीय नहीं है लेकिन भंसाली के प्रस्तुतिकरण ने दोनों को उसी श्रेणी में ला खड़ा किया है। दीपिका खूबसूरत लगती हैं। उनके कपड़े बेहद शानदार डिजाइन किए गए हैं। कपड़ों में मुस्लिम टच दिखता है और दीपिका उनमें बेहद सुंदर लगती हैं। रणवीर सिंह के साथ जो उनकी रीयल लाइफ कैमिस्ट्री फिल्म में भी नजर आती है। संवाद बोलते समय दीपिका के चेहरे के हाव-भाव बहुत ही प्रभाव छोड़ते हैं। खासतौर से जिस सीन में वे पेशवा के बेटे की बधाई देने के लिए उनके यहां पहुंचती हैं उसमें उन्होंने कमाल ही कर दिया है। संवादों के प्रेषण में वे जोरदार साबित हुई हैं।

2. रणवीर सिंह को बाजीराव के रोल में जब फाइनल किया गया था तो सवाल उठे थे कि कहीं भंसाली गलती तो नहीं कर रहे, लेकिन रणवीर ने जिस तरह से किरदार को निभाय़ा है उन्होंने साबित कर दिया है कि वे मेहनत के बल पर कैरेक्टर में घुस जाने का साहस भी रखते हैं। उन्होंने मराठी स्टाइल में जिस तरह डायलाग बोले हैं वो उनके कैरेक्टर को स्थापित करने में सफल साबित होता है। अलबत्ता तेजी से बोलने के चक्कर में कुछ जगह उनके डायलाग समझ में नहीं आते। योद्धा के रूप में रणवीर जमे हैं और युद्ध के सीन उन्होंने जोरदार तरीके से निभाए हैं। उनकी एनर्जी एक-एक सीन में नजर आती है और फिल्म की सबसे बड़ी ताकत बनती है।

3. प्रियंका चोपड़ा ने फिल्म को केवल संजय लीला भंसाली की वजह से साइन किया था। ये बात उन्होंने अपने इंटरव्यू में भी कही है। फिल्म के टाइटल व कहानी को देखते हुए भी ऐसा लग रहा था कि संभवतः उनका पात्र कम महत्व वाला होगा और फिल्म में उनके सीन भी कम ही होंगे लेकिन ऐसा है नहीं। इंटरवल के बाद फिल्म में प्रियंका छा जाती हैं। कुछ सीन में तो प्रियंका रणवीर को भी पानी पिला देती हैं। जिस दृश्य में प्रियंका रणवीर को राधा-कृष्ण का किस्सा सुनाती है वो फिल्म का सबसे बेहतरीन सीन है। इसमें इमोशन उभरकर आते हैं और प्रियंका ये साबित कर देती हैं कि रोल भले ही कुछ भी हो लेकिन वे अपने दम पर उसमें जान डाल देने की क्षमता भरपूर रखती हैं।

4. फिल्म के बारे में सब कुछ कह दिया जाए और संजय लीला भंसाली के बारे में कुछ न कहा जाए तो ये नाइंसाफी होगा। आज के दौर में निर्देशकों से ज्यादा काम तकनीकी टीम का होता है। गाने कोरियोग्राफर पिक्चराइज कर देते हैं। इसी तरह एक्शन डायेरक्टर व दूसरे तकनीकी सहायक अपना काम बखूबी कर देते हैं तो अच्छी फिल्म बन जाती है लेकिन यहां ऐसा नहीं है। भंसाली की छाप हर जगह नजर आती है। फिल्म में कई बार ये भी नजर आता है कि भंसाली किस तरह ‘मुगल ए आजम’ व दूसरी ऐसी ही फिल्मों से प्रभावित रहे हैं। फिर भी उन्होंने एक ईमानदार, साहसिक, ऐतिहासिक फिल्म बनाई है। इस दौर में ऐसा साहस केवल वे ही कर सकते हैं और उनकी सराहना की जानी चाहिए।

खामियांः रिपीट वैल्यू की कमी:-

किसी भी फिल्म को सुपर-डुपर हिट तभी बनाया जा सकता है जब दर्शक बार-बार किसी फिल्म को देखें, लेकिन इस फिल्म को एक बार देख लेने के बाद आप दोबारा देखने की नहीं सोचेंगे। इसकी एक नहीं कई-कई वजहें हैः-

1. ‘बाजीराव मस्तानी’ एक शानदार फिल्म है। इसका सबसे प्लस प्वाइंट ये है कि इसकी कहानी सबको नई लगती है। पेशवा बाजीराव की कहानी से हम-आप ज्यादा वाकिफ नहीं हैं। विवाहित हिंदू नायक व सुंदर मुस्लिम प्रेमिका की कहानी में नयापन महसूस होता है लेकिन फिल्म का क्लाइमेक्स अधूरा प्रतीत होता है। जब भंसाली ने फिल्म के शुरू में ही ये स्पष्ट कर दिया कि ये फिल्म वास्तविक कहानी में कुछ बदलाव करके बनाए गई है और ऐतिहासिक प्रमाणिकता का दावा नहीं करती है तो फिर इसका अंत कुछ भी बनाया जा सकता था। जो अंत भंसाली ने रचा है वो सिनेमेटिक नजरिये से बहुत दर्शनीय है लेकिन दर्शकों को आसानी से हजम नहीं होता। बाजीराव लंबे समय से बीमार है और अपना मानसिक संतुलन खो बैठ जाने के कारण मौत के मुंह में चला जाता है लेकिन मस्तानी का जेल में यूं ही दम तोड़ देना समझ से परे है।


2. किसी भी फिल्म को बार-बार देखने के लिए मजबूर करने में सबसे बड़ा योगदान संगीत का होता है। भंसाली की ‘देवदास’ व ‘हम दिल चुके सनम’ जैसी फिल्में आज भी अमर हैं तो केवल उनके संगीत की वजह से। ‘देवदास’ का संगीत कुछ कमजोर था इसलिए आज भी भंसाली की सबसे बड़ी हिट फिल्म ‘हम दिल चुके सनम’ ही मानी जाती है। खुद भंसाली ने ‘बाजीराव मस्तानी’ में ‘हम दिल चुके सनम’ के गीत ‘अलबेला सजन आयो रे’ को री-क्रिएट किया है। ये साबित करता है कि उसका संगीत कितना मजबूत था। ‘रामलीला’ के बाद से संजय लीला भंसाली खुद ही संगीत भी देने लगे हैं, ये उनकी बड़ी गलती है। स्वतंत्र संगीतकार अपनी रचनात्मकता की फ्रेशनेस लेकर आता है तो बात कुछ और होती है। अगर आपके दिमाग में कोई सीन चल रहा है और आप उसके हिसाब से संगीत गढ़ते हैं तो वो बात आ ही नहीं सकती। इसलिए जरूरी है कि संगीत तैयार किया जाए और वो भी सिचुएशन के हिसाब से और फिर उसे फिल्माया जाए। ‘बाजीराव मस्तानी’ में गीत-संगीत तो तैयार कर लिया गया लेकिन उनके लिए फिल्म में स्थान ही नहीं था। ये एक योद्धा की कहानी है और उसमें गानों की ज्यादा गुंजाइश नहीं थी। भंसाली का संगीत के प्रति जरूरत से ज्यादा लगाव इस फिल्म की ताकत बनने के बजाए कमजोरी साबित होता है। ‘मस्तानी हो गई‘ गीत को छोड़कर कोई भी गीत जुबान पर नहीं चढता है। देखने में सभी गीत अच्छे लगते हैं लेकिन जैसे ही वे खत्म होते हैं वैसे ही लोग उन्हें भूल जाते हैं।


3. बाजीराव एक योद्धा की कहानी है और रणवीर सिंह ने अपने अंदाज और बॉड़ी लैंग्वेज से फिल्म में जान डाल दी है। उन्हें एक अजेय योद्धा के रूप में स्थापित करने के लिए शुरू में ही जिस तरह से भंसाली ने युद्ध के सीन क्रिएट किए हैं वे फिल्म का सबसे रोमांचक हिस्सा हैं। एनिमेटिड ग्राफिक्स के साथ रियल शाट बेहतरीन तरीके से मिक्स किए गए हैं वे रोमांचित कर देने वाले हैं। पर 40 लड़ाइयों को लगातार जीतने वाले बाजीराव को केवल दो बड़ी लड़ाइयां लड़ते हुए ही भंसाली ने दिखाया है। जबकि दर्शकों को लगता है कि ये सीन और आएं और कुछ और लड़ाइयां लड़ते हुए बाजीराव को दिखाया जाए। ऐसा नहीं होता। गीतों की ओवरलोडिंग में योद्धा का जलवा दबकर रह जाता है। दर्शक ज्यादा से ज्यादा रणवीर सिंह को ही देखना चाहते हैं लेकिन बीच-बीच में वे गायब कर दिए जाते हैं तो फिल्म बोझिल लगने लगती है।

4. फिल्म में कुछ किरदार बहुत ही जोरदार तरीके से पेश किए गए हैं लेकिन अचानक ही उनका अस्तित्व खत्म कर दिया जाता है। जैसे- आदित्य पंचोली पहले ही सीन में बाजीराव को पेशवा बनाए जाने का विरोध करते हैं और बाजीराव अपने कौशल से उन्हें पस्त करते हैं। लगता है कि आगे चलकर पंचोली का किरदार उनकी राह में रोड़े खड़े करेगा लेकिन ऐसा नहीं होता। फिल्म में दो सीन के बाद पंचोली का किरदार गायब हो जाता है। मस्तानी बुंदेलखंड के राजा की बेटी है लेकिन जो उसे पेशवा के राज्य में सहना पड़ता है उसकी खबर पिता को नहीं होती। ये कहानी की ऐसी कमी है जो खलती रहती है। सिनेमाहाल में बैठे दर्शक भी इस तरह के सवालों को एक दूसरे से पूछते हुए नजर आते हैं।

5. फिल्म के जिस चर्चित गीत ‘पिंगा’ को लेकर काफी खबरें आ रही थी वह उतना प्रभावी नहीं बन पाया है जितना कि ‘देवदास’ का ‘डोला रे’। अब तक यही समझा जा रहा था कि ‘पिंगा’ में दीपिका व प्रियंका में वैसा ही कंपीटिशन देखने को मिलेगा जैसा कि माधुरी व ऐश में हुआ था लेकिन न तो गीत उतना जोरदार है और न ही कोरियोग्राफी।

मेरी राय-

ये पूरी तरह से फैमिली फिल्म है। आप इसे बच्चों के साथ देख सकते हैं। फिल्म सीख भी देती है कि क्यों इंसान के लिए उसका परिवार भी अहमियत रखता है। 40 लड़ाइयां लगातार जीतने वाला योद्धा हारता है तो केवल अपने परिवार से। बार-बार परिवार ही उसके जीवन में बाधाएं खड़ी करता है। इस फिल्म को पूरे परिवार के साथ देखिये और ऐसी साहसिक फिल्म बनाने वालों की हौसला अफजाई करें ताकी आने वाले समय में भी फिल्मकार ऐसी फिल्में बनाने की हिम्मत जुटा सकें।

- हर्ष कुमार


Monday 7 December 2015

Bajirao Mastani में रणवीर, दीपिका और प्रियंका ही क्यों? (part 2)

मुंबई में इस महान फिल्मकार से हुई बातचीत का दूसरा भाग


‘बाजीराव मस्तानी’ को जहां इस समय देश की सबसे बहुप्रतीक्षित फिल्म माना जा रहा है वहीं इसे लेकर तमाम तरह से सवाल भी सबके जहन में उठ रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो ये ही है कि आखिर संजय लीला भंसाली को अपने जीवन के इस सबसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट के लिए रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण को कास्ट करने की कैसे सूझी ? कभी इस फिल्म के लिए शाहरुख खान, करीना कपूर, हृतिक रोशन, कैटरीना कैफ जैसे स्टार्स के नाम लिए जा रहे थे। खुद भंसाली ने कहीं कहा था कि वे हृतिक को लेकर काफी गंभीर थे लेकिन इसी बीच ‘जोधा अकबर’ आ गई और शायद संजय को लगा कि हृतिक को लेकर फिर ऐतिहासिक फिल्म बनाना सही नहीं होगा। जब ‘रामलीला’ बनाई तो संजय रणवीर व दीपिका से प्रभावित हो गए और उन्होंने इन दोनों को ही मुख्य कास्ट में लेने का फैसला कर लिया। वैसे कहा ये भी जा रहा है कि चूंकि रीयल लाइफ में भी रणवीर व दीपिका की कैमिस्ट्री रंग जमा रही है इसलिए संजय ने उन्हें कास्ट कर लिया। ‘बाजीराव मस्तानी’ से जुड़े संजय लीला भंसाली के इंटरव्यू का पहला भाग आप पढ़ ही चुके हैं। दूसरे भाग में बात उनकी फिल्म की स्टारकास्ट व दूसरे पहलुओं को लेकर:-

आपने कहा कि ‘रामलीला’ आपकी फेवरेट फिल्म है। क्या इसी वजह से आपने रणवीर व दीपिका को ‘बाजीराव मस्तानी’ में भी कास्ट किया ? 
काफी हद तक ये सही है। दोनों के साथ काम करते हुए मैंने महसूस किया कि काम के प्रति दोनों की लगन बहुत ही जबर्दस्त है। जो मैं चाहता हूं अपने कलाकारों से वो ये दोनों बहुत ही खूबसूरत तरीके से स्क्रीन पर उतार रहे थे। ‘रामलीला’ में कुछ ऐसा था जो केवल इन दोनों की वजह से ही संभव हो पाया। कुछ सीन इस तरह से डूबकर किए जाने वाले थे कि दोनों ने उन्हें बहुत ही सुंदरता से निभाया। उसी समय मैंने तय कर लिया था कि अब ‘बाजीराव मस्तानी’ बनाने का समय आ गया है।  

रणवीर सिंह हमेशा मजाकिया व खिलंदड़े किस्म के किरदार निभाते रहे हैं, आपको बाजीराव जैसे योद्धा की कहानी में वे कैसे फिट लग गए? 
हां ये बात सही है कि रणवीर ने अब तक सीरियस रोल कम किए हैं। मुझे भी ऐसा ही लगता था लेकिन ‘रामलीला’ में जो डेडिकेशन उन्होंने दिखाया उसने मेरी धारणा को बदल दिया। रणवीर मुझे ऐसे कलाकार लगते हैं जिन्हें निर्देशक कच्ची मिट्टी की तरह किसी भी रंग रूप में ढाल सकता है। हो सकता है दूसरे डायरेक्टर उनका यूज नहीं कर पाए लेकिन मैंने रामलीला के दौरान ही ये महसूस कर लिया कि उनके भीतर एक अलग ही लेवल की एनर्जी है जो मैंने बहुत ही कम कलाकारों में देखी है।

और दीपिका पादुकोण ?
 पहली बात तो वही जो पहले कही है। दोनों कलाकारों की कैमिस्ट्री। जब टीम अच्छा काम कर रही है तो उसे बदलने में क्या फायदा? वैसे भी पिछले कुछ सालों में दीपिका ने जिस तरह से खुद को ढाला है वो कमाल का है। ‘पीकू’ में देखिये वो किस तरह से आफबीट रोल कर रही थी। और दूसरी फिल्मों में भी दीपिका ने शानदार काम किया है। ‘रामलीला’ के कुछ सीन बहुत ही मुश्किल थे। ‘बाजीराव मस्तानी’ में भी आपको कुछ बहुत ही टफ सीन देखने को मिलेंगे, उन्हें दीपिका ने पूरी शिद्दत से निभाया है। वो इस समय इंडस्ट्री में मौजूद सबसे बेहतरीन कलाकारों में से एक हैं। मस्तानी के रोल में उन्हें देखने के बाद आप ये नहीं कह सकेंगे कि इस रोल को कोई दूसरी एक्ट्रेस किस तरह से निभाती या फिर अच्छा करती।

‘बाजीराव मस्तानी’ में कठिन रोल करने को लेकर मैंने दीपिका से एक सवाल मुंबई में ट्रेलर लांच के मौके पर भी पूछा था। उसके जवाब में दीपिका ने कहा था "संजय सर की फिल्म में कुछ भी आसान नहीं होता। आपको अपना 200 परसेंट देना होता है। आप कल्पना नहीं करेंगे लेकिन एक छोटे से छोटे सीन पर भी वे कितना फोकस करते हैं। सीन शूट हो जाता है और फिर उसे स्क्रीन पर देखने लगते हैं। बार-बार रिपीट करके देखते हैं। कुछ खाते रहते हैं और चुपचाप सीन को रिपीट करके देखते रहते हैं। फिर अचानक ही उन्हें सीन में कुछ कमी नजर आ जाती है और वे कहते हैं री शूट। मैं उनसे कहती थी कि प्लीज नो सर, री शूट नहीं। ये मेरा बेस्ट था, मैंने बहुत मेहनत की थी। जानते हैं उनका जवाब क्या आता था। ‘तुमने तो सही किया है लेकिन पीछे खड़ी एक्स्ट्रा ने वो स्टेप गलत कर दिया।‘ यानी आपको दोबारा करना ही होगा। आपको बताऊं इस फिल्म में मैंने बड़ी सी एक नथनी पहनी है। जबकि मेरी नाक में छेद नहीं है। उसे जबर्दस्ती कसकर लगाना पड़ता था। कई बार तो ऐसा होता था कि मैं शाट देने के लिए घूमती थी तो फटाक से नथनी खुल जाती थी। कई बार तो इसी वजह से सीन बार-बार शूट करने पड़े। मुश्किल तो होती है लेकिन वे आपके अंदर से आपका बेस्ट निकाल लेते हैं। मैं लकी हूं कि मुझे उनकी फिल्म में मस्तानी का किरदार निभाने का मौका मिला। ये मेरे जीवन के सबसे बेहतरीन रोल्स में से एक है।"

 
और आपकी फेवरेट प्रियंका चोपड़ा? 
आपने सही कहा, प्रियंका मेरी फेवरेट हैं लेकिन मैंने उनके साथ अभी तक कोई फिल्म नहीं की थी। ‘मैरीकाम’ मेरी प्रोडक्शन में बनी थी लेकिन उसे डायरेक्ट ओमांग कुमार ने किया था। हां ‘रामलीला’ में प्रियंका ने एक गाना (राम चाहे लीला) किया था। उस गाने की शूटिंग के समय ही मेरे दिमाग में काशीबाई के रोल के लिए प्रियंका का नाम आया था। हालांकि काशीबाई फिल्म का मुख्य किरदार नहीं है लेकिन फिर भी ये एक स्ट्रांग रोल था। मैं लकी हूं कि मैंने प्रियंका को ये रोल आफर की और उन्होंने तुरंत हां कर दी। आप पाएंगे कि प्रियंका इस फिल्म में आपको सरप्राइज तरीके से चौंका देंगी। वे गजब की एक्टर हें।

 
[ पिछले दिनों प्रियंका चोपड़ा अपने अंग्रेजी टीवी सीरियल क्वांटिकों के लिए काफी बिजी रही हैं। वे लगातार यूएस और कनाडा में हैं। मल्हारी गीत की लांचिंग के लिए पीसी इंडिया आई और वो भी एक दिन के लिए। गीत की लांचिंग भोपाल में हुई और वहीं मेरे दोस्त आरजे आलोक (ओये एफएम मुंबई) ने पीसी से इंटरव्यू किया। एक सवाल मैंने भी आलोक को सुझाया था (प्रियंका के लिए)। मैंने पूछा था कि आपने सैकेंड लीड रोल होने के बावजूद बाजीराव मस्तानी किस वजह से साइन की- सब्जेक्ट की वजह से या संजय लीला भंसाली की वजह से? इसके जवाब में पीसी का कहना था कि केवल संजय लीला भंसाली की वजह से। आप समझ सकते हैं कि पीसी को संजय पर कितना विश्वास था और उन्होंने ये फिल्म साइन कर ली। ] 

 
आपकी अगली फिल्म कौन सी होगी और क्या फिर इन कलाकारों को आप रिपीट करेंगे?
अभी तो सारी फोकस बाजीराव मस्तानी की रिलीजी पर है। दिमाग में हर समय आइडिया तो चलते ही रहते हैं। रोजाना एक नया आइडिया आता है दिमाग में। पता नहीं कौन सा क्लिक कर जाए। इतना कह सकता हूं कि ये तीनों ही शानदार कलाकार हैं और मैं ही नहीं हर डायरेक्टर इनके साथ बार-बार काम करना चाहेगा।
संजय लीला भंसाली के साथ उनके आफिस में ली एक सैल्फी।

(संजय लीला भंसाली के दिलचस्प आफिस व उनसे हुई मुलाकात से जुड़े संस्मरण अगली पोस्ट में)

Tuesday 1 December 2015

हां, ‘बाजीराव मस्तानी’ मेरे जीवन की 'मुगल ए आजम’ है: संजय लीला भंसाली

('बाजीराव मस्तानी' पर संजय लीला भंसाली का पहला इंटरव्यू)


#हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी फिल्म है 'बाजीराव मस्तानी’


#पुराने फिल्मकारों से जो सीखा वही उन्हें लौटा रहा हूं


#फिल्ममेकर की मुश्किलें 50 साल पहले भी वहीं थी और 50 साल बाद भी वही होंगी



हिंदी सिनेमा के वर्तमान फिल्म निर्देशकों में संजय लीला भंसाली का दर्जा सबसे ऊंचा है। जिस तरह की फिल्मों की वे कल्पना करते हैं वो कोई सोच भी नहीं सकता। जब उनकी फिल्में बड़े पर्दे पर आप देखते हैं तो आप भौंचक्क रह जाते हैं। देखने वालों का मानना होता है कि वे 'लार्जर देन लाइफ’ अनुभव देती हैं। 'खामोशी द म्यूजिकल’ से शुरूआत करने के बाद ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘देवदास’, ‘ब्लैक’, ‘सांवरिया’, ‘गुजारिश’ और अब ‘बाजीराव मस्तानी’। उनकी फिल्में ये साबित करती हैं कि वे कितनी अलग तरह की सोच रखते हैं। कभी गूंगे-बहरे लोगों को लेकर म्यूजिकल कहानी कहते हैं, तो कभी प्रेम त्रिकोण की, कभी वे क्लासिक साहित्य के दौर में चले जाते हैं। यही नहीं जब उनका मूड होता है तो अमिताभ बच्चन व हृतिक रोशन जैसे सुपर स्टार्स को बीमार व असहाय किरदारों के रूप में पेश करने का रिस्क उठाने से भी पीछे नहीं हटते। उन्होंने केवल एक बार (सांवरिया) नए सितारों के साथ काम किया है और उसमें भी कई प्रयोग कर डाले। ये पहला मौका था जब किसी नायक (रणबीर कपूर) को आपने न्यूड (तौलिये की आड़ में) डांस करते हुए देखा। वे जो भी करते हैं तो बहुत ही खास करते हैं।
'बाजीराव मस्तानी’ उनके जीवन की सबसे अहम फिल्म है और ये सब जानते हैं कि पिछले डेढ़ दशक से जब भी उनकी कोई फिल्म रिलीज होती थी तो हमेशा ही ये चर्चा होती थी कि वे अगली फिल्म 'बाजीराव मस्तानी’ ही बनाएंगे लेकिन किसी न किसी वजह से ये फिल्म शुरू नहीं हो पाती थी। अब जाकर ये फिल्म साकार रूप ले सकी है। अब जबकि फिल्म की रिलीज के लिए एक पखवाड़े का समय रह गया है तो संजय काफी रिलेक्स नजर आते हैं। उन्होंने मुंबई के स्वाति मित्रा अपार्टमेंट (जूहू) स्थित अपने क्लासिक दफ्तर में 21 नवम्बर को दिए इंटरव्यू में इस फिल्म और फिल्म निर्देशक बनने के अपने सफर के बारे में तफ्सील से बताया:-


क्या ये संजय लीला भंसाली के करियर की 'मुगल ए आजम’ है?

 (मुस्कुराते हुए) हां, आप ये कह सकते हैं। 13 साल से मैं इस फिल्म को बनाना चाह रहा था। ये कहानी मेरे दिल के करीब शुरू से ही रही है। अलग-अलग वजहों से ये फिल्म शुरू करने का मौका नहीं मिल पा रहा था। 'रामलीला’ के बाद मैंने तय कर लिया था कि अब यही समय है कि मुझे 'बाजीराव मस्तानी’ बनानी चाहिए। रणवीर और दीपिका के रूप में हमारी टीम पूरी तरह से मूड में थी और मुझे लगा कि अब नहीं तो फिर कभी नहीं। अक्सर कई सितारों के नाम इस फिल्म के लिए मेरे दिमाग में आते थे लेकिन ये फिल्म इन दोनों की किस्मत में थी तो ये 'बाजीराव मस्तानी’ बन गए। ये मेरे जीवन की अब तक की सबसे बड़ी फिल्म है। इसलिए मैं तो ये कह ही सकता हूं कि ये मेरे जीवन की 'मुगल ए आजम’ है। वैसे 'मुगल ए आजम’ जैसी फिल्में रोज-रोज नहीं बना करतीं और न ही उनकी सफलताओं को दोहराया जा सकता। 

जिस तरह से फिल्म का पहला ट्रेलर जारी किया गया है और उसे देखने के बाद जो कुछ नजर आ रहा है उसे देखते हुए तो इसकी तुलना 'मुगल ए आजम’ से किया जाना स्वाभाविक ही है?

 देखिये जिस तरह से कोई दूसरी लता मंगेशकर नहीं पैदा हो सकती उसी तरह से दूसरी 'मुगल ए आजम’ नहीं बन सकती। हां मैं इससे इनकार नहीं करता कि के. आसिफ मेरे पसंदीदा फिल्मकार रहे हैं। जब मैं छोटा सा था तो मेरे पिताजी मुझे उनकी फिल्में दिखाने के लिए ले जाया करते थे। बताया करते थे कि देखो कैसे शॉट लिया गया है, किस तरह से दिलीप कुमार-मधुबाला के चेहरे के हाव भाव हैं। किस तरह से बड़े गुलाम अली खां बैकग्राउंड में गा रहे हैं। शायद उनके जहन में था कि मुझे आगे जाकर फिल्म निर्देशक बनना है। मैं तेज बच्चा था और सीखता चला गया। शायद मैं अपने पिता का सपना पूरा कर रहा हूं। 'मुगल ए आजम’ से तुलना तो नहीं करूंगा और न ही होनी चाहिए, लेकिन उस तरह की फिल्म बनाने की कोशिश जरूर की गई है। इसे मैं अपनी 'मुगल ए आजम’ इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मुझे लगता था कि पता नहीं ये फिल्म कभी शुरू भी हो पाएगी या नहीं? शुरू होगी तो पूरी भी हो पाएगी या नहीं, और न जाने कैसे-कैसे सवाल दिमाग में उठते थे, लेकिन उम्मीद छोड़ी नहीं और अब लगता है कि पिता का सपना पूरा कर रहा हूं। 

ये आपके करियर की सबसे बड़ी फिल्म है?

जी बिल्कुल। मेरे हिसाब से ये हिंदुस्तान में बनी अब तक की सबसे बड़ी फिल्मों में से एक है। इसका कैनवस इतना बड़ा है कि शायद आपने पहले कभी नहीं देखा होगा। जिस स्केल पर इसे शूट किया गया है वो बेहद भव्य है। चाहे वो इसकी कास्ट्यूम डिजानिंग हो या फिर इसकी आर्ट डायरेक्शन। सब पर इतने बड़े पैमाने पर काम किया गया है कि आपको ये बड़ी फिल्म का इंप्रेशन दे रही है। दरअसल ये फिल्म वो फिल्म है जिसके माध्यम से मैं वो सब कुछ हिंदी सिनेमा को देना चाह रहा हूं जो मैंने इस इंडस्ट्री से पाया है। 

यानी एक तरह से ये फिल्म हिंदी सिनेमा के महान फिल्मकारों को आपकी ओर से ट्रिब्यूट है?

ट्रिब्यूट शब्द सही है। एकदम सही कहा आपने। के आसिफ, महबूब खान की 'मदर इंडिया’, कमाल अमरोही की 'पाकीजा’ आदि को देख-देखकर मैंने जो सीखा वो ही मैं इन महान फिल्मकारों को वापस समर्पित करना चाहता हूं। बचपन से ही नौशाद साहब, शंकर जयकिशन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, आर डी बर्मन का संगीत सुना करता था। बेगम अख्तर को आज भी बार-बार सुनता हूं। ये लोग जादूगर थे। बहुत कुछ छोड़ गए हैं ये लोग, सीखने वाला चाहिए। मैं बचपन से ही अच्छा स्टूडेंट था। तेज बच्चा था एकदम तेजी से सबकुछ सीख लेता था। वैसे मैं आपको बताऊं, आज भी सीखने वालों की कमी है सिखाने वालों की नहीं। मांगने वाले चाहिए देने वाले बहुत हैं।

 

'मुगल ए आजम’ जब बनी थी तो वो दौर और था। तब आज की तरह सब कुछ मैनेज्ड नहीं होता था उसे बनाने में 13 साल लगें तो समझ में आता है लेकिन आज के दौर में इतना समय क्यों लगना चाहिए?

क्यूं नहीं लगना चाहिए? ऐसा क्या बदल गया है आज? फिल्म मेकर के लिए आज भी वही संघर्ष है। वही चुनौतियां हैं, आज भी स्टार्स के नखरे होते हैं। फिल्ममेकर को 150 लोगों को जुटाना होता है और फिल्म बनानी होती है। ये सब आसान नहीं होता। जो समस्याएं 50 साल पहले थीं आज भी हैं और 50 साल बाद भी ऐसी ही रहने वाली हैं। हर चीज को देखना होता है सब पर कंट्रोल रखना होता है और सबसे अच्छा काम लेना होता है।

 

आपने करियर की शुरूआत एक सांग डायरेक्टर के रूप में की थी?

जी हां, मैं विधु विनोद चोपड़ा जी का असिस्टेंट हुआ करता था और उन्होंने मुझे 'परिंदा’ में अनिल और माधुरी पर 'प्यार के मोड़ पे’ गीत शूट करने का मौका दिया था। उन्होंने मुझसे पूछा बोलो क्या करना चाहते हो? मैं आर डी बर्मन के पीछे पागल था। मैंने कहा कि गाने करना चाहता हूं। बस विधु जी ने मुझे '1942 ए लव स्टोरी’ का सांग डायरेक्टर बना दिया। 'एक लड़की को देखा तो’ गीत को बनाते हुए मैंने आर डी बर्मन को अपनी आंखों से देखा है। उन्होंने 10 मिनट में ये गाना बनाया था और फिर बिरयानी बनाने के लिए चले गए थे। ऐसे लोगों के साथ काम किया है मैंने। उन्हीं से सीखता गया और आगे बढ़ता गया।

 

अपनी बनाई सबसे पसंदीदा फिल्म किसे मानते हैं?

'रामलीला’, जिस तरह से ये फिल्म बनी वो मेरे दिल के सबसे ज्यादा करीब है। संगीत के लिहाज से 'सावंरिया’ मेरी सबसे बेहतरीन फिल्म है।

 

फिल्म निर्देशन करते-करते आप संगीतकार कैसे बन गए ?

संगीत से मुझे शुरु से ही लगाव रहा है। आर डी बर्मन के पीछे तो मैं पागल था। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की संगीत सुनता था और कल्पना करता था कि उस पर गाने की फिल्मांकन कैसे किया जाना चाहिए। मैंने भी कई संगीत निर्देशकों के साथ काम है और ऐसा नहीं है कि आज के दौर में अच्छे संगीतकार नहीं हैं, एक से एक कलाकार पड़े हैं लेकिन संगीत में ही कुछ करने की ललक ने मुझे संगीतकार बनने पर मजबूर कर दिया। वैसे मोंटी सिंह ने ‘ब्लैक’ व ‘सांवरिया’ में शानदार म्यूजिक दिया था लेकिन फिर भी मेरे अंदर संगीत की भूख कम नहीं हो रही थी तो मैंने खुद को संगीतकार भी बना लिया। 
 

भगवान करे ये 'मुगल ए आजम’ से भी बड़ी फिल्म साबित हो: दीपिका

फिल्म में मस्तानी का किरदार निभा रही दीपिका पादुकोण भी इस फिल्म को लेकर बेहद उत्साहित हैं। वे इसे अपने करियर की सबसे बड़ी फिल्म तो मानती ही हैं और वे चाहती हैं कि ये फिल्म 'मुगल ए आजम’ जैसी साबित हो और हिंदी सिनेमा में बड़ा स्थान हासिल करे। दीपिका ने ट्रेलर लांच के मौके पर बातचीत में कहा कि इस फिल्म को शूट करते समय ही हम सबको आभास हो रहा था कि हम अपने करियर में कुछ अलग करने जा रहे हैं। 

संजय सर ने मुझे संजीदा बना दिया: रणवीर

कभी हल्के फुल्के किरदार निभाने वाले रणवीर सिंह इस फिल्म में बिल्कुल अलग ही अंदाज में नजर आ रहे हैं। रणवीर ने ट्रेलर लांच के मौके पर मुझे से बातचीत में कहा कि आपने बिल्कुल सही कहा है। अन्य फिल्मों में हम ज्यादा मस्ती करते हैं। केवल 10-15 दिन ही ऐसे आते हैं जब हम इमोशनल या गंभीर सीन कर रहे होते हैं। संजय सर की फिल्मों में ऐसा नहीं होता। यहां आप पहले ही दिन से दबाव में होते हैं। प्रियंका तो शुरू में रोने ही लगी थी कि ये मुझसे नहीं होगा वो मुझसे नहीं होगा। लेकिन संजय सर को जरा भी कमी कहीं दिख जाती है तो वे दोबारा शूट किए बिना नहीं मानते हैं। ऐसे माहौल में गंभीरता तो पैदा हो ही जाती है।
संजय जी के साथ इंटरव्यू के बाद क्लिक की सैल्फी। 


(संजय लीला भंसाली के बारे में बहुत सी बातें हैं बताने के लिए। अगली ब्लॉग पोस्ट का इंतजार कीजिए। बताऊंगा मुंबई शहर के फिल्मी मौसम के बारे में भी।।