Friday 28 September 2018

Deep Review : Sui Dhaaga

"अनुष्का ने केवल हावभाव से ही कमाल कर दिया है। जिस समय पति को कुत्ता बना देखती हैं तो उनके चेहरे पर उभरने वाले दर्द के भाव दर्शकों को भी असहज कर देते हैं। इसी तरह सिलाई की प्रतियोगिता वाले सीन में पति की गैरहाजिरी में उनका रोना और फिर पति को देखते ही खिल उठना, सब कुछ कमाल लगता है। किस किस सीन की बात करें। सब कुछ कमाल ही है।"
Rating 3*


'बढिया है' ये डायलाग बार-बार वरूण धवन इस फिल्म में बोलते रहते हैं और फिल्म पर यह एकदम फिट बैठता है। फिल्म बढिया है और आप एक बार जरूर देखकर आइये परिवार के साथ। इस फिल्म को देखकर मैं हैरान इसलिए हूं कि आखिर आज के दौर की कोई भी सफल हिरोईन इस तरह का रोल निभाने के लिए कैसे तैयार हो गई? तैयार हो भी गई तो इतनी खूबसूरती से कैसे निभा गई? सच अनुष्का शर्मा ने इस फिल्म में कमाल कर दिया है। एक गरीब व सीधी साधी घरेलू महिला के रोल को कोई इतनी सादगी भरे तरीके से भी निभा सकता है इस पर यकीन नहीं होता। एक लाइन में अगर कहना चाहूं तो यह फिल्म पूरी तरह से अनुष्का शर्मा की फिल्म है। उनके कैरियर की अब तक की सबसे बेहतरीन फिल्म अगर इसे कह दूं तो गलत नहीं होगा।
वैसे अगर पूरी फिल्म की बात करें तो इसमें कुछ भी नया नहीं है। इस तरह की सक्सेस स्टोरीज हम हाल ही में 'टॉयलेट एक प्रेम कथा', 'पैडमैन', 'सूरमा', 'गोल्ड' आदि में भली भांति देख चुके हैं लेकिन इस फिल्म की सबसे खास बात यह है कि यह फिल्म पहले सीन से लेकर अंत तक माहौल बनाकर रखती है और इसमें नाटकीयता या फिल्मी लटके झटके नहीं हैं, मूल आत्मा बरकरार रहती है।
 निर्देशक शरत कटारिया ने फिल्म को इतनी वास्तविक लोकेशंस पर शूट किया है कि दर्शक खो जाते हैं उस माहौल में। फोटोग्राफी भी लाजवाब है और संगीत भी अनु मलिक ने बढिय़ा दिया है। हालांकि कोई ब्लॉकबस्टर गीत इसमें नहीं है लेकिन टाइटल गीत 'सुई धागा' और 'तेरा चाव लागा' बहुत ही अच्छे लगते हैं। संगीत फिल्म के माहौल के अनुरूप सहज और मधुर है।




दो कहावतें हैं- 1. इरादे हों तो कोई काम कठिन नहीं, 2. हर सफल आदमी के पीछे एक औरत होती है। ये दोनों ही इस फिल्म पर फिट बैठती हैं। कहानी मौजी (वरुण) व ममता (अनुष्का) के जीवन की है। पिता (रघुवीर यादव) के ताने सुन सुनकर बड़ा हुआ मौजी इतना भोला है कि उसकी दुकान के मालिक का बेटा उससे कुत्ते की तरह भी व्यवहार करता है तो वह उसे मजाक समझता है। मौजी को बुरा नहीं लगता लेकिन एक दिन जब ममता अपने पति को मालिकों के घर में कुत्ता बनते देख लेती है तो उसका दिल रो उठता है। वह उसे स्वाभिमान से जीने के लिए और अपना कोई काम करने के लिए कहती है। बीवी की बात से प्रेरणा पाकर वरुण नौकरी छोड़ देता है और अपना खानदानी दर्जी का काम शुरू करने का फैसला करता है। कई दुश्वारियां आती हैं, कभी मशीन नहीं मिलती तो कभी दोस्त ही धोखा देते हैं। अंत में मेहनत सफल होती है और एक बड़े मंच पर मौजी व ममता की जोड़ी को सम्मानित करने के साथ फिल्म खत्म होती है।

एक्टिंग की बात करें तो पहला नाम अनुष्का शर्मा का आएगा। वे शानदार कलाकार तो हैं ही साथ ही मैं उन्हें सबसे साहसी अभिनेत्री का भी दर्जा देना चाहूंगा। उन्होंने अपना साहस 'एनएच 10' जैसी फिल्म का निर्माण करके ही दिखा दिया था। जिस समय उन्हें यह कहानी सुनाई गई होगी तो वे समझ भी नहीं पाई होंगी कि उन्हें कितनी गरीब महिला का रोल निभाना है। पूरी फिल्म 200 रुपये की पोलिएस्टर की साड़ी में ही करना आज के दौर की बहुत कम हिरोईनों के ही बूते की बात है। अनुष्का ने केवल हावभाव से ही कमाल कर दिया है। जिस समय पति को कुत्ता बना देखती हैं तो उनके चेहरे पर उभरने वाले दर्द के भाव दर्शकों को भी असहज कर देते हैं। इसी तरह सिलाई की प्रतियोगिता वाले सीन में पति की गैरहाजिरी में उनका रोना और फिर पति को देखते ही खिल उठना, सब कुछ कमाल लगता है। किस किस सीन की बात करें। सब कुछ कमाल ही है।
वरुण धवन भी नैसर्गिक एक्टर हैं और हर रोल में एकदम फिट हो जाते हैं। उन्होंने भी बेहतरीन काम किया है। रघुवीर यादव व दूसरे कलाकारों ने भी अपने रोल को ठीक से निभाया है। इस तरह की फिल्मों का बाक्स आफिस पर सफल होना बहुत जरूरी है। चूंकि इनकी रिपीट वैल्यू कम होती है इसलिए संदेह बना रहता है कि पैसा वसूल हो भी पाएगा या नहीं। खैर इस फिल्म को परिवार के साथ देखा जा सकता है।

- हर्ष कुमार सिंह

Thursday 27 September 2018

Deep PreVIEW : Thugs Of Hindostan


'ठग्स आफ हिंदोस्तान' एक पीरियड-कास्ट्यूम ड्रामा है। इसमें तमाम वे अवयव नजर आ रहे हैं जो 'बाहुबली' जैसी बड़ी फिल्म में थे। कैनवस बड़ा है, स्टार कास्ट बड़ी है, एक्शन है, रोमांच है और सबसे बड़ी बात स्पेशल इफेक्ट्स व डायलाग बहुत अच्छे नजर आ रहे हैं। इससे ज्यादा और क्या चाहिए मनोरंजक फिल्म बनाने के लिए ? 27 सितंबर को रिलीज हुए इसके ट्रेलर से इस फिल्म के एक बड़ी फिल्म होने की झलक मिलती है। अलबत्ता जब अमिताभ बच्चन व आमिर खान पहली बार स्क्रीन पर आएंगे तो चमत्कार तो होगा ही।
इस बहुतप्रतीक्षित फिल्म का निर्देशन किया है विजय कृष्ण आचार्य ने। वे 'टशन' व 'धूम 3' का निर्देशन कर चुके हैं। 'टशन' बाक्स आफिस पर चली तो नहीं थी लेकिन उनके निर्देशन में करंट है यह साफ हो गया था। 'धूम3'  ने तो खैर इतिहास बना दिया था। विजय के प्रति यशराज फिल्म्स का विश्वास बरकरार रहा और वे अपनी लगातार तीसरी फिल्म आदित्य चोपड़ा के साथ कर रहे हैं।
देखें ट्रेलर-
फिल्म के ट्रेलर से कहानी जो नजर आती है उसका लब्बोलुबाब यह है कि यह अंग्रेजो के खिलाफ आजाद (अमिताभ बच्चन) की लड़ाई का कहानी है जो सन् 1795 के काल में गढ़ी गई है। दिखाया गया है कि ईस्ट इंडिया कंपनी भारत पर राज कर रही है और उसके खिलाफ जंग लड़ रहा है आजाद। हालांकि जब फिल्म के लिए जब बच्चन साहब का लुक जारी किया गया था तो उनका नाम खुदाबख्श ( जो खुदागवाह में डैनी का नाम था) बताया गया था। खैर हो सकता है कि उनके दो नाम हों। दिखाया गया है कि अंग्रेज परेशान हैं आजाद के हमलों से। आजाद उनके जहाज लूट लेता है और दूसरे नुकसान पहुंचाता है। आजाद को हराने के लिए कंपनी बुलाती है मस्तमौला फिरंगी मल्लाह (आमिर खान) को। जो देखने में मसखरा है लेकिन है बहादुर। वह आजाद के गैंग में शामिल हो जाता है लेकिन अंत में उसकी लड़ाई का जज्बा देख खुद आजाद के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई मे शामिल हो जाता है। कैटरीना कैफ, जो ट्रेलर के हिसाब से एक डांसर नजर आ रही हैं, फिरंगी की प्रेमिका हैं। इसके अलावा फातिमा सना शेख को शायद आजाद की बेटी के रोल में दिखाया गया है। जो उसी की तरह बहादुर है।
फिल्म के ट्रेलर में एक्शन की भरमार है। संगीत की झलक नहीं है। शायद इसके लिए दूसरा ट्रेलर लांच किया जाए। संगीत अजय-अतुल (सैराट फेम) का है और सुने बिना उस पर कमेंट नहीं किया जा सकता। वैसे विजय की पहली दो फिल्मों का संगीत प्रीतम ने दिया था और जबर्दस्त हिट था।

अमिताभ बच्चन के लुक पर काफी मेहनत की गई है और लंबे अरसे बाद वे एक हीरो के रोल में नजर आ रहे हैं। जो एक्शन में माहिर है और फिल्म का सेंटर कैरेक्टर है। आमिर के लिए भी रोल बढ़िया लिखा गया नजर आता है। वे रंग जमाएंगे। कैटरीना जो पहले करती रही हैं वही यहां भी करेंगी। फिल्म का सबसे मजबूत पहलू इसके संवाद नजर आ रहे हैं।

कुल मिलाकर यह फिल्म यशराज फिल्म्स के बैनर का झंडा बुलंद करती नजर आ रही है और दिवाली के मौके पर 8 नवंबर को हो रही इसकी रिलीज सबकी झोली भरने वाली नजर आ रही है। देखते हैं यह बिजनेस की बाहुबली बनती है या नहीं ?

- हर्ष कुमार सिंह 

Notes-
to release in format across the globe... In fact, will see the WIDEST EVER screen release by an Indian film... Earlier, , , and were released in format.









Saturday 15 September 2018

Career Review : Abhishek Bachchan

जो गलतियां पहली की फिर से उन्हें न दोहराएं !

अगर आप लोगों ने 'मनमर्जियां' देखी होगी तो अभिषेक बच्चन का किरदार आपको जरूर पसंद आया होगा। शांत और सौम्य स्वभाव के रॉबी के किरदार में वे बहुत ही कूल नजर आते हैं। अपनी इसी सौम्यता के बल पर वे फिल्म की हिरोईन को भी जीतने में सफल रहते हैं। अभिषेक को इस रोल के लिए तारीफ भी मिली है लेकिन फिर भी 'मनमर्जियां' उनके कैरियर की बेहतरीन फिल्म नहीं कही जा सकती। आज भी अगर उनके कैरियर की बेहतरीन फिल्मों का जिक्र किया जाता है तो 'युवा', 'धूम', 'गुरु', 'सरकार', 'बंटी और बबली' या 'ब्लफमास्टर' का जिक्र करेंगे। जरा इन सभी फिल्मों में उनके द्वारा निभाए गए चरित्र को ध्यान से समझिए। सब के सब चालू, तेज तरार्र और गुस्सैल किस्म के कैरेक्टर। इसका सीधा सा मतलब क्या लगाया जाए? यही कि अभिषेक बच्चन रफ एंड टफ रोल्स में ही बेहतर काम कर सकते हैं।

किरदार जो पसंद आए
2004 में आई 'युवा' फिल्म में अभिषेक बच्चन ने एक गुंडे का किरदार निभाया था। एकदम कमीने किस्म का इंसान जिसके लिए जीवन में न बीवी का महत्व है और न भाई-दोस्त का। न कोई दिशा है न कोई लक्ष्य। इस रोल के लिए अभिषेक ने बाल भी बड़े किए थे। यकीन मानिए अभिषेक ने लल्लन के रोल में जान डाल दी थी। 'धूम' में उन्होंने पुलिस आफिसर का रोल तीनों ही भागों में निभाया है। और उन्हें सभी ने पसंद किया। इसमें एक्शन था, गुस्सा था और चैलेंज था। इसी तरह 'गुरु' में उन्होंने एक ऐसे आदमी का रोल किया जो येड़ा बनकर पेड़ा खाता है और देश का सबसे बड़ा कारोबारी बन जाता है। मणिरत्नम के साथ अभिषेक ने तीन फिल्में (युवा, गुरु और रावण) की और तीनों में ही उनको सराहा गया। 'गुरु' के लिए तो वे सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए नामांकित भी किए गए।

कैरियर का अहम मोड़
अभिषेक को इंडस्ट्री में 18 साल हो चुके हैं और उनकी आयु 42 साल है। बालीवुड में कहावत है कि यहां नायक 35 से 50 साल की आयु में ही असली स्टारडम का मजा चखते हैं। यानी अभी अभिषेक के पास लगभग 8-10 साल का समय बाकी है अपने आपको स्थापित करने के लिए।


फिल्में चुनने में हुई गलितयां
अभिषेक से फिल्मों के चयन में शुरू से ही गलतियां होती रही हैं। शुरूआत में 'रिफ्यूजी' (2000) में तो खैर वे लांच ही हो रहे थे और नौसिखिए थे लेकिन उसी समय उन्होंने 'मैं प्रेम की दीवानी हूं' (2003) के लिए हां करके बड़ी गलती की। इसमें उनका रोल वही था तो 'मनमर्जियां' में है। 26-27 साल के अभिषेक को वह रोल बिल्कुल भी सूट नहीं करता था। इसी बीच 'युवा' (2004) व 'धूम' (2004) आ गई और उनके कैरियर को बूस्ट मिल गया। इसी साल उन्होंने 'फिर मिलेंगे' और 'नाच' जैसी फिल्में करके अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी। इसके अलाव समय-समय पर कुछ मल्टीस्टारर फिल्में करके भी उन्होंने नुकसान उठाया। 'कभी अलविदा ना कहना' (2006), 'दस' (2005) में उन्हें तारीफ मिली लेकिन माइलेज नहीं। सबसे बड़ी गलत कर दी उन्होंने 'उमराव जान' करके। हालांकि ये भी सही है कि उन्हें इसी फिल्म की वजह से अपनी जीवन संगिनी ऐश्वर्या राय मिली लेकिन यह भी तो सही है कि वह एक महिला प्रधान फिल्म थी। इसमें उनके लिए कुछ नहीं था।

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2007 में उन्होंने 'गुरु' के जरिए अपनी प्रतिभा से लोगों को परिचित कराया तो 'झूम बराबर झूम', 'लागा चुनरी में दाग', 'द्रोण' जैसी फिल्में करके नुकसान भी उठाया। इनमें उनके लिए कुछ नहीं था। 2009 में आई 'पा' में भी सारी तारीफ उनके पिता को मिली लेकिन अभिषेक बच्चन के भीतर के अभिनेता को परिपक्व होते हुए सबने इसी में देखा। 2010 में 'रावण' ने उन्हें तारीफ तो दिलाई लेकिन बाक्स आफिस पर यह फिल्म फेल रही। इसी समय आई 'गेम', 'प्लेयर्स', 'दम मारो दम' जैसी फिल्मों ने उन्हें बहुत नुकसान पहुंचाया। इस दौर में उनकी फिल्मों ने इतनी खराब प्रदर्शन किया कि उनकी 'धूम 3' की सफलता का भी उन्हें लाभ नहीं मिल सका। इसके अलावा 'हैप्पी न्यू ईयर', 'हाउसफुल 3', 'आल इज वैल' जैसी फिल्मों ने रही सही कसर पूरी कर दी।

दोहराव से बचें
'हाउसफुल 3' के बाद लंबा ब्रेक लिया और अब 'मनमर्जियां' में नजर आए। अभिषेक ने अपने लंबे ब्रेक के बारे में कहा था कि वे कुछ ऐसी फिल्म करना चाहते थे जिसमें उन्हें कुछ नया लगे। 'मनमर्जियां' देखने के बाद तो नहीं लगता कि इसमें कुछ नया वे कर पाए हैं। अब अभिषेक को कुछ नए किरदारों को तलाशना होगा। जो बड़े हों और उन्हें निभाकर आप भी बड़े नजर आएं।

सही वक्त पर सही फैसलें करें
सुनने में आया है कि वे संजय लीला भंसाली की नई फिल्म करने जा रहे हैं। इसमें संजय साहिर लुधियानवी व अमृता प्रीतम की प्रेम कहानी को दिखाने जा रहे हैं। संजय इस क्राफ्ट के मास्टर हैं और रणवीर सिंह के कैरियर को बनाने में उनका बहुत बड़ा हाथ है। अभिषेक के लिए यह रोल एकदम फिट नजर आता है। उनके पिता 'सात हिंदुस्तानी', 'कभी कभी' व 'सिलसिला' में कवि का किरदार निभा चुके हैं। उन्हें खूब तारीफ मिली थी। सुनने में आया था कि प्रियंका चोपड़ा इसमें अमृता प्रीतम का रोल निभाने वाली थी लेकिन वे शादी करने जा रही हैं। अब सुना है कि ऐश्वर्या इस रोल को करेंगी। वैसे भी ऐश्वर्या के साथ अभिषेक के जोड़ी 'गुरु' में खूब पसंद की गई थी। यह फिल्म उनके कैरियर को फायदा पहुंचा सकती है। बेहतर होगा कि अभिषेक एक समय में एक ही फिल्म करें और किरदार पर काम करें। उन्हें मल्टी स्टारर फिल्मों से परहेज करना चाहिए।

क्या करें-
एक्शन फिल्में करें और एक सलाह है कि वे बाल बड़े ही रखें। छोटे बाल उन पर बिल्कुल सूट नहीं करते। क्लीन शेव तो बिल्कुल भी नहीं रहें। अपनी फिटनस पर वर्क करें और झुककर चलना बंद करें।

क्या न करें-
रोमांटिक व नाचने गाने वाले किरदारों से दूर ही रहें तो बेहतर है। इन रोल्स में वे बिल्कुल भी स्वाभाविक नहीं लगते।


- हर्ष कुमार सिंह




Friday 14 September 2018

DEEP REVIEW : Manmarziyaan

शुरू से आखिर तक तापसी पन्नू की फिल्म 

"शुरू से आखिर तक तापसी ही छाई रहती हैं। उन्होंने रुमी के किरदार को भरपूर जिया है। उन्होंने अपने निजी प्रयास से इस किरदार में आग भर दी है। बॉडी लैंग्वेज, डायलॉग बोलने का अंदाज, कपड़े पहनना और यहां तक शादी शुदा दिखने में भी उन्होंने अपने तेवर बदलने नहीं दिए हैं। ये उनके कैरियर की सबसे बेहतरीन फिल्म है।"
 
 Rating - 3*

किसी भी फिल्म को देखने से पहले उसके बारे में कोई अवधारणा नहीं पाल लेनी चाहिए। आजकल इंटरनेट पर हर फिल्म के बारे में इतना सब कुछ प्रसारित किया जाता है कि कई बार तो ऐसा लगने लगता है कि यह फिल्म बहुत ही गजब की होगी या फिर कभी-कभी ये लगता है कि यार ये फिल्म देखी जाए या नहीं? 'मनमर्जियां' के बारे में पहले से ही लग रहा था कि यार इस फिल्म में कुछ गजब का होने जा रहा है। इसे जरूर देखना पड़ेगा। और हो भी क्यों नहीं, अनुराग कश्यप ने पहली बार अपने मार्का स्टाइल से हटकर फिल्म जो बनाई है। पहली बार उन्हें रोमांस और म्यूजिक की कद्र समझ में आई है। नहीं तो अब तक वे प्यार को केवल 'वाइल्ड सैक्स' से ही जज करते आए हैं।

इस फिल्म से अनुराग कश्यप ने अपने आप को बदलने की भरपूर कोशिश की है, पर निर्देशक के अंदर जो फिल्मकार बसा होता है तो बार-बार बाहर आ ही जाता है। इस फिल्म में उन्होंने प्यार के दोनों पहलू ही दिखाने की कोशिश की है। पर बार-बार वाइल्ड सैक्स भारी पड़ता नजर आता है, आदत जो ठहरी अनुराग की। लेकिन चूंकि इस बार अनुराग ने अपने आप को बदलने की ठान ली थी इसलिए उन्हें सच्चे व संस्कारी प्यार की जीत दिखानी पड़ी। यहीं फिल्म मार खा गई। फिल्म में सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन संस्कारी प्यार को जिताने के चक्कर में एक तो फिल्म को दूसरा हाफ बोझिल हो गया और फिल्म का क्लाईमैक्स ज्यादा स्वीकार्य नहीं बन पाया।
 कहानी बहुत ही साधारण सी है। रुमी (तापसी) और विक्की (विक्की कौशल) अमृतसर के दो लव बर्ड्स हैं जो सारी दुनिया से बेफिक्र अपनी मनमर्जियां करते रहते हैं। उनके लिए सैक्स प्यार का ही दूसरी रूप है। इसलिए जब भी मन करता है प्यार करने लगते हैं। रुमी शादी की कहती है तो वह हिम्मत नहीं जुटा पाता। लंदन रिटर्न बैंकर रॉबी (अभिषेक बच्चन) अमृतसर में शादी करने के लिए आता है। कई लड़कियों की तस्वीरें उसे दिखाई जाती हैं लेकिन उसका दिल तो हॉकी खेलने वाली बिंदास रुमी पर अटक जाता है। हालांकि उसे पता चल जाता है कि रुमी और विक्की का क्या चक्कर है, लेकिन फिर भी वह जिद पर अड़ जाता है। उसका तर्क था कि मैं रुमी के लिए खुद को विकल्प क्यों नहीं बना सकता? रुमी और विक्की की आपस की तकरार के चलते रुमी भी शादी के लिए हां कह देती है। रॉबी व रुमी शादी कर कश्मीर हनीमून पर भी जाते हैं, पर दोनों के बीच प्यार नहीं हो पाता। रॉबी रुमी से कहता है कि वो विक्की से शादी कर ले। विक्की भी सुधरने का वायदा करता है और आस्ट्रेलिया चला जाता है कोई काम धंधा करने। अदालत में तलाक की औपचारिकता पूरी करने के लिए रॉबी व रुमी जाते हैं और साइन करके बाहर आते हैं, और सड़क पर चलते-चलते ही बातें करने लगते हैं। दोनों को अहसास होता है कि वे एक दूसरे से प्यार करने लगे हैं। रुमी रॉबी को फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजती है और दोनों फिर से एक हो जाते हैं।फिल्म का अंत सही है या गलत इसका फैसला आप फिल्म देखने के बाद ही करें। एक बार तो देखने लायक है ही यह फिल्म। अगर दूसरा हाफ भी पहले जैसा होता तो मजा आ जाता।

अनुराग कश्यप ने खुद को बदलने की असफल कोशिश की है। इतिहास गवाह है कि फिल्मकारों ने जब-जब अपने स्टाइल को बदलने की कोशिश की है उनसे ऐतिहासिक भूलें हुई हैं। यश चोपड़ा भी 'दीवार' व 'त्रिशूल' बनाने के बाद जब 'सिलसिला' व 'फासले' बनाने गए थे तो गच्चा खा गए थे। ये आसान नहीं होता। अनुराग कश्यप को बिहार व यूपी की बढिय़ा जानकारी जरूर है लेकिन पंजाब को वे ज्यादा नहीं जान पाए। केवल शराब, सिगरेट, डीजे और सैक्स ही पंजाब नहीं है। उनकी नजर में अमृतसर की लड़कियों को जब तक दिन में दो बार 'फ्यार' (प्यार में एफ शब्द जोड़ दें तो) न किया जाए तो उनकी आग ठंडी नहीं होती। फिल्म की शूटिंग उन्होंने वास्तविक लोकेशंस पर की है इसलिए जान बच गई है। शुरू के आधा घंटा तो ऐसा लगता है कि जैसे कोई पंजाबी फिल्म देख रहे हैं। अभिषेक बच्चन के आने के बाद ही फिल्म में बालीवुड फिल्म का लुक आता है। हर मौके पर फिल्म में गीत हैं। सारे पंजाबी हैं, जो सिनेमा में सुनने में अच्छे लगते हैं लेकिन कोई भी सुपर हिट हो जाए इतना दम नहीं है। हां अमित त्रिवेदी ने बैकग्राउंड संगीत में झंडे गाड़ दिए हैं।
 सही बताऊं तो यह फिल्म तापसी पन्नू की फिल्म है। शुरू से आखिर तक तापसी ही छाई रहती हैं। उन्होंने रुमी के किरदार को भरपूर जिया है। उन्होंने अपने निजी प्रयास से इस किरदार में आग भर दी है। बॉडी लैंग्वेज, डायलॉग बोलने का अंदाज, कपड़े पहनना और यहां तक शादी शुदा दिखने में भी उन्होंने अपने तेवर अलग ही रखे हैं। ये उनके कैरियर की सबसे बेहतरीन फिल्म है। इसके बाद उन्हें इसकी चिंता छोड़ देनी चाहिए कि उन पर कहीं अलग हटके रोल करने का ठप्पा तो नहीं लग गया है? मैं बता दूं, वे पूरी तरह से बॉलीवुड में आ चुकी हैं और छा जाने की तैयारी में हैं। वैसे भी फिल्म में अनुराग कश्यप रुमी के किरदार के साथ प्यार में नजर आते हैं। जब भी तापसी पर्दे पर आती हैं तो अनुराग का निर्देशन टॉप फॉर्म में होता है। तापसी के लिए एक ही शब्द कहूंगा-लाजवाब।
अभिषेक बच्चन को कुछ महीने पहले एक इंटरव्यू में कहते सुना था कि एक लंबा ब्रेक लेने के बाद वे एक ऐसी फिल्म करना चाहते थे जो कुछ नयापन आफर करे। और इसलिए उन्होंने अनुराग से दूरियां होने के बावजूद इस फिल्म को किया है। पर उनकी सोच गलत है। ऐसा रोल वे बरसों पहले 'मैं प्रेम की दीवानी हूं' में कर चुके हैं। एक सभ्य व शालीन युवक का किरदार उन्होंने बढिय़ा तरीके निभाया है लेकिन इस फिल्म से उनके कैरियर को नया बूस्ट मिल जाएगा इसका मुझे संदेह है।


विक्की कौशल तो सफलता के घोड़े पर सवार हैं। एक के बाद एक अच्छे रोल उन्हें मिल रहे हैं। कलाकार वे बढिय़ा हैं ही। जो भी किरदार निभाते हैं उसमें घुस जाते हैं। यहां भी उन्होंने वैसा ही किया है। पंजाब के टिपिकल टैटू शैटू वाले डीजे ब्वॉय के रोल में वे छाए रहते हैं। बाकी कलाकारों ने भी अपने काम को ठीक-ठाक तरीके से किया है।

 फिल्म को यू/ए सर्टिफिकेट मिला है लेकिन अनुराग ने इसे ए सर्टिफिकेट दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। बस किनारे पर रुक गए। फैमिली फिल्म तो नहीं कहूंगा हां युवाओं को एक बार जरूर यह फिल्म देखनी चाहिए और सीख लेनी चाहिए कि हमें अपने जीवन में कभी न कभी तो सीरियस होना ही होता है।

- हर्ष कुमार सिंह 
 

Saturday 1 September 2018

Top 5 Movies of 2018

सितंबर माह शुरू हो चुका है और 2018 खत्म होने में तीन महीने ही बाकी हैं लेकिन बालीवुड के लिहाज से यह साल बहुत ज्यादा उत्साहजनक नहीं रहा है। कई फिल्मों ने 100 करोड़ के क्लब को ज्वाइन किया लेकिन वे इसके लायक नहीं थी। वीकेंड कलेक्शन और उनके स्टार्स के दम पर फिल्में धंधा कर ले गई। कुछ फिल्में ऐसी थी जिन्हें लोगों ने पंसद किया लेकिन वे पैसा नहीं कमा पाई। साल की टॉप टेन फिल्में छानने की कोशिश की तो यकीन मानिए 5 फिल्में ही ऐसी ढूंढ पाया जो लोगों को पसंद भी आई और पैसा भी कमाने में सफल रही। उन्हीं के रीव्यू एक बार फिर आपकी नजर कर रहा हूं-

1. पदमावतः
साल की सबसे बड़ी फिल्म का रीव्यू पढ़ने के लिए क्लिक करें-

संजय लीला भंसाली की विवादित, चर्चित व कामयाब फिल्म। 


पदमावत की एक झलक देखें- 



2. पैडमैनः 

एक ऐसे विषय पर बनी फिल्म जिस पर हम आप बात भी करना पसंद नहीं करते। मेरा रीव्यू-
अक्षय कुमार के कैरियर की सबसे बोल्ड फिल्म।


पैडमैन की एक झलक-



3. सोनू के टीटू की स्वीटीः 
युवा पीढ़ी की एक बोल्ड व मस्त फिल्म जिसने नुसरत भरूचा व कार्तिक आर्यन को स्टार बना दिया। मेरा रीव्यू-
हसांती, गुदगुदाती, नचाती, रुलाती फिल्म।


सोनू के टीटू की स्वीटी का झलक देखें-


4. अक्टूबरः
प्यार किसी भाषा का मोहताज नहीं होता। यह बस हो जाता है। यही थी यह फिल्म। मेरा रीव्यू-
वरुण धवन को एक अभिनेता के रूप में पहचान देने वाली फिल्म।


 अक्टूबर की एक झलक देखें-



5. संजूः 
साल में सबसे ज्यादा पैसा कमाने वाली फिल्म। संजय दत्त की बायोग्राफी। मेरा रीव्यू-

रणबीर कपूर के अभिनय को बुलंदियां देने वाली फिल्म। 

संजू की एक झलक देखें-




 - हर्ष कुमार सिंह