‘शौच’ के साथ ‘सोच’ बदलने के लिए अक्षय को धन्यवाद
Rating- 5*****
इसे कहते हैं असली सिनेमा। मनोरंजन का मनोरंजन और समाज के लिए संदेश भी। इस काम को राजकुमार हिरानी ने भी किया कुछ साल पहले जब उन्होंने गांधीगिरी का संदेश दिया था लेकिन अक्षय कुमार ने कमाल ही कर दिया है। उन्होंने महिलाओं की आजादी व समानता को अमली जामा पहनाए जाने के लिए मुहिम ही छेड़ दी है। इसके लिए उन्होंने जरिया बनाया खुले में शौच करने की कुप्रथा को खत्म करने की सोच को बढ़ावा देकर। फिल्म केवल देश की सरकार की सोच में कंधे से कंधा मिलाने की ही बात नहीं करती बल्कि यह भी संदेश बहुत जोरदार तरीके से देने की कोशिश करती है कि जब तक हम खुद को नहीं बदलेंगे तब तक कोई सरकार कुछ नहीं कर सकती।
फिल्म के दो मैसेज बहुत साफ हैं:-
1. शौचालय व महिलाओं की आजादी की बात सभ्यता के खिलाफ लड़ाई है और यह वो चीज है जिसे किसी ने आज तक देखा नहीं है बल्कि हम सबके अंदर ही है।
2. फिल्म यह भी सबक देती है कि जब तक कोई समस्या हमें निजी तौर पर नहीं महसूस होती तब तक हम उसे समस्या ही नहीं समझते।
मोदी सरकार ने सत्ता संभालने के साथ ही देश में महिलाओं के लिए घर-घर शौचालय बनाए जाने का अभियान शुरू किया था। लाल किले की प्राचीर से खुद पीएम ने कहा था कि अगले स्वतंत्रता दिवस तक सभी सरकारी स्कूलों में बालिकाओं के लिए अलग से शौचालय बनाए जाने चाहिए। बस तभी से यह अभियान जारी है। हो सकता है कि सरकारी स्कूलों में ऐसा हो गया हो लेकिन यह हकीकत है कि आज भी गांव-देहात में न केवल लाखों महिलाएं बल्कि पुरुष भी खुले में शौच करने के लिए जाते हैं। कुछ इसे आदत बताते हैं तो कुछ दकियानूसी विचारधारा की वजह से ऐसा करते हैं। यह फिल्म दोनों तरह के मोर्चों पर टक्कर लेती नजर आती है। और सबसे खास बात है कि तमाम भाषणबाजी और नाटकबाजी के बाद भी आप बोर नहीं होते और हंसते-हंसते फिल्म खत्म हो जाती है।
कहानी वेस्ट यूपी के प्रसिद्ध मथुरा में केंद्रित है। केशव (अक्षय कुमार) को पढ़ी लिखी जया (भू्मि पेढनेकर) से प्यार हो जाता है और किसी न किसी तरह वह उसे शादी करने के लिए तैयार कर लेता है। जया को उस समय बहुत धक्का लगता है जब वह देखती है कि उसकी ससुराल में शौचालय नहीं है। जया खुले में शौच करने से इंकार कर देती है। केशव उसे कभी प्रधान के घर शौचालय में ले जाता है तो कभी ट्रेन में। चोरी की टायलेट भी लाता है लेकिन पिता की रूढि़वादी सोच उसे कामयाब नहीं होने देती। जया मायके चली जाती है। इसके बाद शुरू होता है गांव में टायलेट बनवाने का सिलसिला। अंत में केशव व जया की मुहिम रंग लाती है और शौच के साथ सोच भी बदल जाती है।
फिल्म के कहानी व पटकथा तो कमाल के हैं ही संवाद तो बेहद शानदार हैं। ऐसी फिल्मों में डायलाग ही तो असली काम करते हैं। एक नहीं कई सीन इतने शानदार तरीके से लिखे गए हैं। फिर भी तीन का यहां जिक्र करना जरूरी है:-
1. केशव की दादी जब जया के मायके उसकी शिकायत लगाने आती है और जया अपनी भड़ास वहां से गुजर रही महिलाओं को कसकर फटकार लगाकर निकलती है। भूमि ने कमाल कर दिया है।
2. केशव घर में टॉयलेट बनाता है तो पिता उसे तुड़वा देते हैं। इसके बाद केशव गुस्से में जिस तरह से अपने पिता व गांव वालों को झिंझोड़ता है, यह सीन देखने वाला है। गजब के डायलाग लिखे गए हैं।
3. जया के ताऊ जी (अनुपम खेर) जब केशव के पिता से मिलने उनके घर आते हैं। चंद संवादों में ही सारी बात कह देते हैं। अनुपम कहते हैं- अगर आप नहीं बदलोगे तो कुछ नहीं बदलेगा।
फिल्म की तारीफ इसलिए भी की जानी चाहिए क्योंकि यह गंभीरता का पुट न लेकर हास परिहास के अंदाज में अपनी बात कहती है। निर्देशक ने कठोर संदेश भी प्यार से दिए हैं और लोग सिनेमा में ठहाके ही लगाते रहते हैं। गीत संगीत भी बेहतरीन है। ‘हंस मत पगली प्यार हो जाएगा’ व ‘तू लट्ठमार’ (मशहूर वृंदावन की होली) बेहतरीन गीत हैं और फिल्म में जान फूंक देते हैं।
एक और बात फिल्म को स्पेशल बना देती है और वो हैं इसकी लोकेशंस। फिल्म बिल्कुल ओरिजनल लोकेशंस पर शूट की गई है और इसलिए दर्शक इससे बहुत ज्यादा जुड़ाव महसूस करते हैं। कोई भी सीन स्टूडियो में नहीं फिल्माया गया है। यह ऐसी फिल्म है जिसे सभी राज्यों में टैक्स फ्री किया जाना चाहिए। अगर इस तरह की फिल्मों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंचाया गया तो यह इसके साथ अन्याय होगा। पता नहीं हमारे देश में अच्छी फिल्मों को टैक्स फ्री करने का चलन क्यों कम होता जा रहा है? वो भी तब जबकि यह फिल्म यह भी कह देती है कि हमें हर चीज के लिए सरकारी तंत्र की मुंह नहीं तकना चाहिए। जब हम घर में टीवी, मोबाइल अपने पैसे से खरीद सकते हैं तो टायलेट क्यों नहीं बनवा सकते।
खैर अक्षय ने ऐसा प्रयास किया है कि इसे सराहा जाना चाहिए और अगर आप उन्हें उनकी मेहनत का फल देना चाहते हैं तो इस फिल्म को पूरे परिवार के साथ सिनेमा में जाकर देखें और अपना योगदान दें।
-हर्ष कुमार सिंह
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