फिल्म को देखकर कुछ साल पहले आई 'दो दूनी चार' की याद आ जाती है जिसमें ऋषि कपूर व नीतू सिंह ने एक मिडिल क्लास परिवार की कहानी को जीया था। इस तरह की फिल्में सपरिवार देखने में मजा आता है। आपको रिश्तों की कद्र करने का मतलब समझ आ जाएगा। जाइए और फिल्म जरूर देखकर आइए। अच्छा समय बीतेगा आपका।
Rating 3* (edited : rating 5*)
'बधाई हो', फिल्म की पूरी टीम को ऐसी फिल्म बनाने के लिए बधाई। बॉलीवुड के एक बड़े फिल्मकार ने पिछले दिनों कहा था कि इंडस्ट्री में अच्छी कहानियों का अकाल है। उनकी बात सही है। साल में रिलीज होने वाली 100-150 फिल्मों में से 4-5 फिल्में ही ऐसी होती होंगी जिनमें पहले कहानी फाइनल की जाती होगी। बड़े बैनर तो पहले स्टार कास्ट व प्रोजेक्ट के सभी पहलू फाइनल कर लेते हैं और फिर फिल्म शुरू करते हैं। लेकिन जिन 4-5 फिल्मों की मैं बात कर रहा हूं उन्हें देखने के बाद यह साफ हो जाता है कि उनकी कहानी पहले फाइनल हुई। इस साल रिलीज हुई 'अक्टूबर', 'अंधाधुंन' और अब 'बधाई हो' जैसी फिल्में उन्हीं में से हैं। इसके उलट इसी सप्ताह रिलीज हुई दूसरी फिल्म 'नमस्ते इंग्लैंड' प्रोजेक्ट वाली फिल्म है। उसके निर्माता निर्देशक ने पहले सीक्वल (नमस्ते लंदन का) बनाने का फैसला किया और फिर कहानी गढ़ी। शायद स्टारकास्ट भी पहले ही तय हो गई होगी। पर 'बधाई हो' में ऐसा कुछ नहीं है। पहले कहानी चुनी गई फिर स्टारकास्ट। यही इस फिल्म को दूसरों से अलग बना देता है।
फिल्म असाधारण भले ही नहीं है लेकिन एक बार देखने में बिल्कुल भी बुरी नहीं है। आप हंसते हैं, खुशी मनाते हैं और भावुक भी होते हैं। बस एक फेमिली फिल्म में इससे ज्यादा और क्या चाहिए? जितेंद्र कौशिक उर्फ जीतू (गजराज राव) रेलवे में टीटी है और पत्नी प्रियंवदा उर्फ बबली (नीना गुप्ता) से बहुत प्यार करता है। दोनों ही 50 पार कर चुके हैं। बड़ा बेटा नकुल (आयुष्मान खुराना) जवान है और एक बड़ी कंपनी में नौकरी करता है। कंपनी में साथ ही काम करने वाली रेने (सान्या मल्होत्रा) से प्यार करता है। जीतू का छोटा बेटा भी 12वीं में पढ़ रहा है। जीतू मिडिल क्लास परिवारों की तरह एक आदर्श व्यक्ति है और अपनी मां (सुरेखा सीकरी) का बेहद सम्मान करता है। आम घरों की तरह यहां भी सास बहू में बिल्कुल नहीं बनती। इसके बावजूद सब एक दूसरे से प्यार बहुत करते हैं।
घर में उस समय भूचाल आ जाता है जब पता चलता है कि प्रियंवदा गर्भवती हो गई है। गर्भ 19 सप्ताह का हो चुका है और उसे गिराने में खतरा भी है। प्रियंवदा फैसला करती है कि वह बच्चे को जन्म देगी। दोनों बेटे इस खबर से नाराज हो जाते हैं और मां-बाप से बात करना भी बंद कर देते हैं। मां भी नाराज होती है कि यह कोई उम्र है बच्चे पैदा करने की? सामाजिक रूप से भी परिवार को उपहास झेलना पड़ता है। रेने की मां (शीबा चड्ढा), जो कि नकुल को पसंद करती है लेकिन, उसकी मां के गर्भवती होने की खबर सुनकर नाराज हो जाती है। उसका मानना था कि यह जहालत का प्रतीक है और ऐसे घर में रेने कभी खुश नहीं रह सकेगी। इस बात से नकुल को झटका लगता है। वह अपने परिवार की बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर पाता। जीतेंद्र की मां भी प्रियंवदा के समर्थन में उठ खड़ी होती है। अंत में सब कुछ ठीक हो जाता है और घर में एक बेटी का आगमन होता है। नकुल व रेने की शादी के साथ फिल्म खत्म होती है।
- हर्ष कुमार सिंह
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