Rating- 4*
आलिया भट्ट बालीवुड की सबसे प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं ये तो सब जानते हैं लेकिन वे अभिनय को इन बुलंदियों पर भी ले जा सकती हैं यह नहीं सोचा था। इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत तो यही है कि आलिया भट्ट ने किरदार में ढल जाने की कला को नए आयाम दे दिए हैं। उन्हें आप अमिताभ बच्चन, रेखा, श्रीदेवी या फिर स्मिता पाटिल जैसे सर्वकालीन महान कलाकारों की श्रेणी में अब रख सकते हैं। आलिया ( Alia Bhatt ) को सादगी में भी सुंदर लगना आता है। और वे लगी हैं। बिना किसी मेकअप के भी वे किरदार की खाल में घुस सकती हैं यह तो वे 'हाईवे' व 'उड़ता पंजाब' में दिखा ही चुकी हैं। यह फिल्म पूरी तरह से आलिया भट्ट की फिल्म है। उनके अभिनय की रेंज के सामने मेघना गुलजार का निर्देशन, गुलजार साहब के लिखे सारगर्भित गीत और लंबे अरसे के बाद शंकर अहसान लॉय द्वारा दिया गया मधुर संगीत, सब कुछ पीछे रह जाते हैं।
मेघना गुलजार ( (Meghna Gulzar) की यह दूसरी फिल्म है। बरसों पहले उन्होंने 'फिलहाल' बनाई थी जो अपने विषय के कारण ही चर्चाओं में रही थी। इस बार भी उन्होंने विषय बढिय़ा चुना है। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के काल को केंद्र में रखकर बुने गए इस कथानक में रोमांच है जो आपको अंतिम सीन तक बांधे रखता है। कई स्थान पर दर्शक अनुमान लगाने लगते हैं कि शायद फिल्म का अंत यह होगा या वो होगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता और फिल्म अपने निर्धारित अंत पर जाकर खत्म हो जाती है। फिल्म के विदाई गीत में गुलजार साहब ने लिखा है- कट चुकी फसलें फिर आती नहीं हैं, विदा हो चुकी बेटियां लौटकर आती नहीं हैं। फिल्म में आलिया भट्ट कहती हैं कि क्या देश पर मर मिटने का जज्बा बेटों में ही होता है? क्या उन्हें ही यह हक है? इसी थीम को लेकर फिल्म चलती है।
कहानी ज्यादा तफ्सील से बताऊंगा तो आपका फिल्म देखने का मजा खराब हो जाएगा। बस इतना बता देता हूं कि सेहमत खान (आलिया) पाकिस्तान में काम करने वाले एक भारतीय जासूस की बेटी है। जो पिता का अधूरा काम करने का जिम्मा लेती है और उसे पूरा करती है। सेहमत का शादी पाकिस्तान के एक बड़े आर्मी अफसर के बेटे से कराई जाती है। इस तरह वह भारत को पाकिस्तान के सारे राज बताती रहेगी। उसे पूरी तरह ट्रेनिंग भी दी जाती है। बस यही कहानी है। वह कैसे अपना काम करती है और किस तरह सारी मुश्किल घडिय़ों से निकलती है यही फिल्म का कहानी व रोमांच है।
फिल्म में आलिया के अभिनय के सामने और किसी कलाकार की उपस्थिति नजर नहीं आती। हालांकि सभी ने काम बढिय़ा किया है लेकिन हर किरदार के लिए कलाकार ऐसे चुने गए हैं जो याद नहीं रहते। उदाहरण के तौर पर आलिया के पति के रोल में विकी कौशल हैं जिन्हें ज्यादा लोग नहीं जानते। आलिया के पिता के रोल में रजित कपूर हैं लेकिन उनका पात्र इंटरवल से पहले ही मर जाता है। आलिया की मां के रोल में उनकी रीयल मां सोनी राजदान एकदम परफेक्ट हैं। इसके अलावा जयदीप अहलावत (खालिद मीर), अमृता खानविलकर (मुनिरा) ने अपने किरदार बखूबी निभाए हैं।
राजी फिल्म की असली कहानी पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएं और किताब खरीदें-
पता है फिल्म की असली जान है क्या है? इसकी रीयल लोकेशंस। जिस गंदे टायलेट में आलिया कपडे बदलते है या छतरी को ठिकाने लगाती है वह एकदम वास्तविक लगती है। कश्मीर के शॉट खूबसूरत हैं। हालांकि पाकिस्तान की शूटिंग नहीं की गई लेकिन जिन पुराने बंगलों में वे हिस्से शूट किए गए हैं वे काफी हद तक वास्तविक लगते हैं। कुछ खामियां भी हैं पर उन्हें नजर अंदाज किया जा सकता है। जैसे- आलिया का घर में ट्रांसमिशन सेटअप लगाने का किसी को पता नहीं चलता? घर पर लगी तारें भी किसी को नहीं दिखी? इतने बड़े आर्मी अफसर के घर पर रात में कोई गार्ड ही तैनात नहीं? ऐसी कई गलतियां हो गई हैं निर्देशक से।
लंबे समय बाद किसी फिल्म में संगीत मधुर लगा है। तीन ही गीत हैं और सभी कर्णप्रिय हैं। गुलजार साहब के बोलों का तो कोई तोड़ ही नहीं। ए वतन , राजी और दिलबरो फिल्म में सुनने में भी अच्छे लगते हैं और देखने में भी।
रीमेक और पार्ट 1, 2 व 3 के इस दौर में इस तरह की फिल्में कम बनती हैं इसलिए जाइए और इसे परिवार के साथ देखकर आइए।
-हर्ष कुमार सिंह
(Harsh Kumar )
आलिया भट्ट की ड्रैसेज खरीदने के लिए क्लिक करें ---
आलिया भट्ट बालीवुड की सबसे प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं ये तो सब जानते हैं लेकिन वे अभिनय को इन बुलंदियों पर भी ले जा सकती हैं यह नहीं सोचा था। इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत तो यही है कि आलिया भट्ट ने किरदार में ढल जाने की कला को नए आयाम दे दिए हैं। उन्हें आप अमिताभ बच्चन, रेखा, श्रीदेवी या फिर स्मिता पाटिल जैसे सर्वकालीन महान कलाकारों की श्रेणी में अब रख सकते हैं। आलिया ( Alia Bhatt ) को सादगी में भी सुंदर लगना आता है। और वे लगी हैं। बिना किसी मेकअप के भी वे किरदार की खाल में घुस सकती हैं यह तो वे 'हाईवे' व 'उड़ता पंजाब' में दिखा ही चुकी हैं। यह फिल्म पूरी तरह से आलिया भट्ट की फिल्म है। उनके अभिनय की रेंज के सामने मेघना गुलजार का निर्देशन, गुलजार साहब के लिखे सारगर्भित गीत और लंबे अरसे के बाद शंकर अहसान लॉय द्वारा दिया गया मधुर संगीत, सब कुछ पीछे रह जाते हैं।
मेघना गुलजार ( (Meghna Gulzar) की यह दूसरी फिल्म है। बरसों पहले उन्होंने 'फिलहाल' बनाई थी जो अपने विषय के कारण ही चर्चाओं में रही थी। इस बार भी उन्होंने विषय बढिय़ा चुना है। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के काल को केंद्र में रखकर बुने गए इस कथानक में रोमांच है जो आपको अंतिम सीन तक बांधे रखता है। कई स्थान पर दर्शक अनुमान लगाने लगते हैं कि शायद फिल्म का अंत यह होगा या वो होगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता और फिल्म अपने निर्धारित अंत पर जाकर खत्म हो जाती है। फिल्म के विदाई गीत में गुलजार साहब ने लिखा है- कट चुकी फसलें फिर आती नहीं हैं, विदा हो चुकी बेटियां लौटकर आती नहीं हैं। फिल्म में आलिया भट्ट कहती हैं कि क्या देश पर मर मिटने का जज्बा बेटों में ही होता है? क्या उन्हें ही यह हक है? इसी थीम को लेकर फिल्म चलती है।
कहानी ज्यादा तफ्सील से बताऊंगा तो आपका फिल्म देखने का मजा खराब हो जाएगा। बस इतना बता देता हूं कि सेहमत खान (आलिया) पाकिस्तान में काम करने वाले एक भारतीय जासूस की बेटी है। जो पिता का अधूरा काम करने का जिम्मा लेती है और उसे पूरा करती है। सेहमत का शादी पाकिस्तान के एक बड़े आर्मी अफसर के बेटे से कराई जाती है। इस तरह वह भारत को पाकिस्तान के सारे राज बताती रहेगी। उसे पूरी तरह ट्रेनिंग भी दी जाती है। बस यही कहानी है। वह कैसे अपना काम करती है और किस तरह सारी मुश्किल घडिय़ों से निकलती है यही फिल्म का कहानी व रोमांच है।
फिल्म में आलिया के अभिनय के सामने और किसी कलाकार की उपस्थिति नजर नहीं आती। हालांकि सभी ने काम बढिय़ा किया है लेकिन हर किरदार के लिए कलाकार ऐसे चुने गए हैं जो याद नहीं रहते। उदाहरण के तौर पर आलिया के पति के रोल में विकी कौशल हैं जिन्हें ज्यादा लोग नहीं जानते। आलिया के पिता के रोल में रजित कपूर हैं लेकिन उनका पात्र इंटरवल से पहले ही मर जाता है। आलिया की मां के रोल में उनकी रीयल मां सोनी राजदान एकदम परफेक्ट हैं। इसके अलावा जयदीप अहलावत (खालिद मीर), अमृता खानविलकर (मुनिरा) ने अपने किरदार बखूबी निभाए हैं।
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रीमेक और पार्ट 1, 2 व 3 के इस दौर में इस तरह की फिल्में कम बनती हैं इसलिए जाइए और इसे परिवार के साथ देखकर आइए।
-हर्ष कुमार सिंह
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