Thursday 25 August 2016

DEEP REVIEW: A Flying Jatt

खामियों और भूलों से भरी हुई फिल्म है 'ए फ्लाइंग जट' 

RATING- 1*


अगर निर्देशक के नजरिये से देखा जाए तो उसने इस फिल्म के जरिये दो संदेश देने की कोशिश की है। पहली, दुनिया के लिए प्रदूषण सबसे बड़ा खतरा है और इसे केवल पेड़ लगाकर ही खत्म किया जा सकता है। दूसरा, सिखों का 12 बजे वाला मजाक उन्हें नीचा दिखाने के लिए चलाया गया है जबकि इसका ताल्लुक उनकी बहादुरी से जुड़े तीन सौ साल पुराने एक किस्से से है। दोनों ही अच्छे प्रयास हो सकते थे अगर इन्हें थोड़ा गंभीरता से दिखाया गया होता।

दरअसल जब फिल्म शुरू होती है तो दर्शकों की लगता है कि ये किसी कृष टाइप सुपर हीरो की कहानी है। इंटरवल तक यही होता भी है। टाइगर श्राफ सुपरमैन की तरह उड़ते रहते हैं और उटपटांग हरकतें करते हैं। इंटरवल के बाद भाषणबाजी का सिलसिला शुरू होता है कि प्रदूषण कितना खतरनाक है। प्रदूषण को लेकर सबसे पहले चिंता होती है विलेन के के मेनन को। जैसे ही उन्हें पता चलता है कि उनकी बेटी को अस्थमा हो गया है वे तुरंत ही सुधर जाते हैं। वाह क्या बात है। कहानी एक लाइन की है। एक जमीन है जिस पर टाइगर व उसकी मां अमृता रहते हैं। उसे के के खाली कराना चाहते हैं अपने व्यवसायिक हित के लिए। बस यही आधार है बाकी सब पुरानी फिल्मों की जूठन है।

कई बार तो फिल्म देखते हुए ऐसा लगने लगता है कि शायद निर्देशक रेमो डिसूजा को कुछ याद आ गया तो उन्होंने तुरंत कहानी में जोड़ दिया। हां, याद आया। जैकलीन फर्नांडीज भी है फिल्म में। निर्देशक इंटरवल तक उन्हें भी भूल जाते हैं। फिर अचानक ही उन्हें याद आता है कि जैकलीन भी तो हैं। इंटरवल से पहले जैकलीन को जहां एक संवाद भी बोलने का मौका नहीं मिला था वहीं अचानक उनके लिए दो-दो गाने सेकेंड हाफ में फिट कर दिए गए हैं। फस्र्ट हाफ में तो ऐसा लग रहा था कि शायद फिल्म में कोई गीत है ही नहीं। एक भांगड़ा गीत था वह भी लीड स्टार के बजाए साइड हीरो पर फिल्माया गया था। हां, याद आया। फिल्म में सुपर हीरो का एक भाई भी है। ये भाई पूरी फिल्म में हीरो के दोस्त की तरह व्यवहार करता है लेकिन है वह उसका भाई। निर्देशक ने हीरो के भाई का प्रयोग मनचाहे तरीके से किया है। जब कभी उसे फ्लाइंग जट बनाना होता था तो सुपर हीरो की ड्रैस पहना दी जाती थी और जब टाइगर का भाई बनाना होता था तो साधारण कपड़े पहना दिए जाते थे। कई बार उसे कामेडियन की तरह पेश कर दिया जाता है। इंटरवल के बाद अचानक ही डिसूजा को याद आता है कि फिल्म में हंसी मजाक बहुत हो गई और अब इमोशन होना चाहिए। इसके लिए उन्होंने टाइगर के भाई की कुर्बानी देने में एक मिनट की देर नहीं लगाई। के के मेनन द्वारा तैयार किए गए महामानव राका (हल्क टाइप हालीवुड स्टार नाथन जोंस) के हाथों हीरो के भाई को कुत्ते की मौत मरवा दिया जाता है। हां, याद आया। खैर अंत में फ्लाइंग जट राका को मारता है। उसे मारने के लिए निर्देशक ने क्या जोरदार आइडिया निकाला। राका को मारने के लिए फ्लाइंग जट उसे धकेल कर चांद पर ले जाता है। क्योंकि वहां प्रदूषण नहीं है। शायद चांद पर आक्सीजन थी वरना टाइगर सांस कैसे ले रहे थे? हां, यहां ये भी बता दूं कि राका को कोई भी घाव इसलिए नहीं होता था क्योंकि वह धुआं सूंघकर खुद को ठीक कर लेता था और चांद पर उसे जब धुंआ नहीं मिलता है तो वह आसानी से मर जाता है। क्या गजब की स्टोरी बनाई है लेखक ने। यानी हर बात का तोड़ है।

टाइगर श्रॉफ को भी शायद ये लगने लगा है कि लोग उनकी मार्शल आर्ट व डांस की कला को ही पसंद करते हैं। लगातार तीसरी फिल्म में भी टाइगर वही सब करते नजर आ रहे हैं जो वे पहले भी कर चुके हैं। उनके लिए चिंता की बात यह है कि उनकी फिल्मों का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। 'हीरोपंती' औसत थी, 'बागी' ठीक ठाक थी लेकिन 'ए फ्लाइंग जट' तो कुछ भी नहीं है। यानी धीरे-धीरे उनका ग्राफ नीचे आ रहा है। टाइगर की डायलाग डिलीवरी तो खराब है ही साथ ही उनकी हिंदी भी खराब है। उन्हें अपनी इस कमजोरी को सुधारना होगा नहीं तो उन्हें लोग केवल नाच गाने व एक्शन के लिए ही कब तक झेलते रहेंगे। इस फिल्म के प्रमोशन के दौरान टाइगर ने यह कहा है कि बचपन में उनका मजाक भी उड़ाया जाता था, वे सही कहते हैं। कई बार वे एकदम लड़कियों की तरह कमनीय नजर आते हैं तो कभी एकदम ही मैन। फिल्म में भी सनी लियोनी के गाने पर उन्हें नचवा कर निर्देशक ने उनका मजाक उड़वाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।


जैकलीन फर्नांडीज की ये लगातार तीसरी फिल्म है (हाउसफुल 3 और ढिशूम के बाद) जिसमें वे फालूत का किरदार निभाते नजर आई हैं। जिस तरह से उनकी फिल्म में एंट्री होती है समझ में नहीं आता कि निर्देशक उनसे क्या कराना चाहता है। टाइगर इस तरह उन्हें देखते हैं कि जैसे शायद पहली बार देख रहे हैं लेकिन अगले ही सीन में वे उनकी साथी स्कूल टीचर के रूप में नजर आ जाती हैं। उन्हें जिस तरह चशमिश के रूप में दिखाया जाता है उसे देखकर लगता है कि शायद कहानी कुछ इस तरह आगे बढ़ेगी कि उनके लुक के कारण सुपर हीरो उन्हें पसंद नहीं करेगा लेकिन ऐसा नहीं होता और फ्लाइंग जट उन पर हर हाल में लट्टू रहता है। यानी आप जो सोचते हैं निर्देशक वही नहीं होने देता। जैकलीन भी टाइगर की तरह हिंदी नहीं बोल पाती हैं और उनके लिए डबिंग आर्टिस्ट की मदद ली जाती है। उन्हें अपनी इसे सुधारना चाहिए। श्रीदेवी से लेकर श्रुति हसन तक तमाम ऐसी हिरोईनें बालीवुड में आई हैं जो हिंदी भाषी नहीं थी लेकिन फिर बाद में हिंदी सीखकर अच्छे किरदार करने में सफल रही। वैसे फिल्म में जैकलीन के साथ कुछ ज्यादा ही अन्याय किया गया है। उनके कास्ट्यूम बहुत ही घटिया हैं। एक गाना तो नाइट सूट में ही फिल्मा दिया गया। फिल्म के एक गाने 'बीट पे बूटी' के बारे में बहुत कुछ सुना था लेकिन इस गाने को बहुत ही घटिया तरीके से फिल्माया गया है। लगता है एकता कपूर ने बजट कम कर दिया था। उन्हें लगा होगा कि क्यों फिल्म को ओवर बजट किया जाए। रेमो से भी इतने खराब फिल्मांकन की उम्मीद नहीं थी।

फिल्म में लंबे अर्से बाद अमृता सिंह नजर आई हैं। वे पूरी फिल्म में शराबी महिला की ओवर एक्टिंग करती नजर आती हैं। उनकी शराब पीने की आदत किसी को नहीं भाती है। न ही इससे हास्य पैदा होता है और न ही किरदार में कोई विशेषता आती है। कई बार तो अमृता सिंह को देखकर दया आती है। वे अपने समय में अच्छी कलाकार रही हैं और अब उन्हें किस तरह के वाहियात रोल मिल रहे हैं। फिल्मी दुनिया भी कितनी अजीब है। अमृता मां के किरदार निभा रही हैं वहीं उनके पूर्व पति सैफ अली खां एक बार फिर पिता बनने जा रहे हैं। वैसे टाइगर के पिता जैकी श्राफ भी अमृता के साथ हीरो आ चुके हैं इसलिए वे टाइगर की मां के रोल में अटपटी नहीं लगती।

कुल मिलाकर 'ए फ्लाइंग जट' एक ऐसी फिल्म है जिसमें कुछ भी ओरिजनल नहीं है। अंग्रेजी व हिंदी की पुरानी फिल्मों से ही तमाम आइडिया चुराकर फिल्म बना दी गई है। हालीवुड की फिल्मों के एक्शन सीन हू ब हू कापी कर दिए गए हैं। सिनेमा के अंदर बैठे दर्शक, यहां तक की बच्चे भी बताने लगते हैं कि अरे ये सीन तो फलां फिल्म में भी था। अंत में यही कहना चाहूंगा कि सुपर पावर वाले हीरो की एक फिल्म तीन दशक पहले शेेखर कपूर ने भी बनाई थी 'मिस्टर इंडिया' के नाम से। इस फिल्म में सुपर पावर का प्रयोग कॉमेडी के अंदाज में बहुत ही शानदार तरीके से दिखाया गया था। उसमें नायक ने कोई स्पेशल ड्रैस भी नहीं पहनी थी। बस एक ट्वीड का पुराना कोट ही पहने नजर आता था मिस्टर इंडिया लेकिन क्या गजब की फिल्म बनी थी। हालीवुड की फिल्मों से प्रेरणा लेने के बजाय अगर हमारे निर्देशक पुरानी हिंदी फिल्मों से ही कुछ सीख लें तो बहुत ही अच्छी फिल्म बनाई जा सकती है। संजय लीला भंसाली ने डंके की चोट पर पुराने दिग्गजों की निर्देशन कला को अपनाया और 'बाजीराव मस्तानी' जैसी ब्लाक बस्टर फिल्म बना डाली।


-हर्ष कुमार सिंह