Friday 27 January 2017

DEEP REVIEW: Raees

शाहरुख के फैंस के लिए सब कुछ है इसमें 
 RATING- 3*



शाहरुख खान की कई साल बाद कोई फिल्म सिनेमाहाल में देखी। शायद ‘डॉन 2’ अंतिम थी इससे पहले। कई साल से उनकी किसी भी फिल्म को देखने की उत्सुकता ही नहीं बन पाती थी। हकीकत यह भी है कि इस दौरान उनकी कोई ऐसी फिल्म आई भी नहीं जिसने बाक्स आफिस पर तहलका मचाया हो या फिर शाहरुख के रोल की तारीफें हुई हों। मेरा मानना है कि तीनों खानों में शाहरुख खान को स्टोरी सेंस सबसे कम है। आमिर व सलमान को उनसे कहीं ज्यादा समझ है कि कौन सी कहानी ज्यादा क्लिक कर सकती है। शाहरुख अमूमन यह देखकर फिल्म करते हैं कि उसके निर्माता-निर्देशक कौन हैं। करण जौहर उनसे कोई भी रोल करने के लिए कहें वे कर लेते हैं। रोहित शेट्टी के साथ ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ ने ठीक-ठाक बिजनेस कर लिया तो ‘दिलवाले’ जैसी बोझिल फिल्म भी उनके साथ कर लेते हैं। फराह खान से झगड़ा हुआ तो उनसे संबंध सुधारने के लिए ‘हैप्पी न्यू ईयर’ जैसी निहायती बेसिर पैर की फिल्म कर लेते हैं। यानी उनका ताल्लुक अब अपने फैंस से ज्यादा बल्कि फिल्म इंडस्ट्री में उनके दोस्तों-साथियों के साथ ज्यादा मजबूत हो गया है। यही वजह है कि लगातार उनकी फिल्मों का बाक्स आफिस कलेक्शन नीचे की तरफ जा रहा है। ‘दिलवाले’ और उसके बाद ‘फैन’ व ‘डियर जिंदगी’ का क्या हुआ सब जानते हैं। ‘रईस’ भी इसी श्रेणी की फिल्म है। दोनों प्रोड्यूसर (रीतेश व फरहान) उनके दोस्त हैं और शायद इसलिए उन्होंने कहानी पर ज्यादा गौर नहीं किया।

जिन लोगों को 90 के दशक की ‘अग्निपथ’ और फिर बाद में आई ‘सत्या’, ‘कंपनी’ और ‘वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ जैसी फिल्में याद हैं उन्हें ‘रईस’ में कुछ नया नहीं लगेगा। रईस (शाहरुख) बचपन से ही मुफलिसी की जिंदगी जिया और इसलिए शराब के गलत धंधे में पड़ गया। कोई भी काम गलत नहीं होता और कोई भी धर्म धंधे से बड़ा नहीं होता, मां की यह सीख उसने पल्ले बांध ली। इसी को फार्मूला बनाकर बड़ा आदमी बनता गया। इस धंधे में लगे तमाम दूसरे लोगों को पीछे छोड़कर रईस गुजरात (जहां शराबबंदी है और यह कहानी जिसकी पृष्ठभिम पर आधारित है) का सबसे बड़ा डॉन बन गया। बाद में जनता की सहानूभूति पाकर वह जेल में होने के बावजूद एमएलए तक बन जाता है। इस दौरान पूरी फिल्म में उसके सामने एक पुलिस आफिसर मजमूदार (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) चट्टान की तरह खड़ा रहता है। लगातार कोशिश करता है कि किसी भी तरह रईस को जेल में बंद किया जाए। अंत में जब इंतहा हो जाती है तो तमाम नेता व पुलिसवाले रईस के खिलाफ हो जाते हैं और उसे खत्म कर डालने की ठान लेते हैं। होता भी यही है। रईस अंत में पुलिस के सामने सरेंडर करता है और पुलिस उसे जंगल में ले जाकर फर्जी एनकाउंटर मे ढेर कर देती है। इस दौरान उसकी एक प्रेम कहानी (माहिरा खान से) भी दिखाई गई है। माहिरा उसकी बीवी बनती है और बच्चे की मां भी। यह कहानी अलग ट्रैक पर है और राइटर ने इसे मूल कहानी से जोड़ने की कोशिश में फिल्म को कई बार बोझिल किया है।

कहानी में एक नहीं सैकड़ों खामियां हैं। एक भी सीन ऐसा नहीं है जो पहले आपने किसी फिल्म में नहीं देखा हो। गैंगस्टर्स की फिल्मों में जैसा होता है अक्सर वैसा ही इसमें होता दिखाया गया है। शाहरुख खान जब भी पुलिस को चकमा देते हैं तो दर्शकों को मजा आता है लेकिन जब भी उनका सामना नवाजुद्दीन सिद्दीकी से होता है तो वे कमजोर नजर आते हैं। यह लेखक व निर्देशक, दोनों की ही कमी है कि हीरो पर साइड हीरो इस तरह भारी पड़ता है। संवाद भी नवाज को बेहतर मिले हैं और उनका किरदार दर्शक के दिलो दिमाग पर छाने लगता है। लेकिन यह भी मानना होगा को शाहरुख खान सुपर स्टार हैं और उनकी स्क्रीन प्रेजेंस बहुत ही जोरदार है। इस फिल्म में उन्होंने कमजोर कहानी व निर्देशन के बाद भी अपने किरदार में जान डाल दी है। उन्होंने अपने रोल को शिद्दत से निभाया है। शायद उनके कैरियर की यह पहली फिल्म है जिसमें इतना एक्शन व खून खराबा दिखाया गया है। अंडरवर्ल्ड डॉन का किरदार उन्होंने जोरदार तरीके से निभाया है। ‘डॉन’ व ‘डॉन 2’ से भी बेहतर वे यहां नजर आते हैं। जिस सीन में भी वे आते हैं छा जाते हैं। पाकिस्तानी अभिनेत्री माहिरा खान सुंदर हैं लेकिन उनमें बड़ा स्टार बनने की खासियत नहीं दिखी। शाहरुख के साथ उनकी जोड़ी जमती नहीं। वे उम्र में भी उनसे छोटी नजर आती हैं। नवाजुद्दीन सिद्दीकी साइड हीरो के रोल में अक्सर बढिया काम कर जाते हैं और यहां भी उन्होंने यही किया है।

फिल्म का संगीत केवल सिनेमाहाल में देखने में ही अच्छा लगता है अलबत्ता कोई भी गीत ऐसा नहीं है जो दिल पर छा जाए या जुबां पर चढ़ जाए। सनी लियोनी को एक आइटम गीत ‘लैला मैं लैला’ में लाया गया है। 80 के दशक में जीनत अमान पर फिल्माए गए इस गीत को रिक्रिएट करने के चक्कर में बुरी तरह से मसल दिया गया है। यह न देखने में अच्छा लगता है न ही सुनने में। न सनी लियोनी इसमें मादक लगती हैं और न ही उन्हें अच्छे डांस स्टेप दिए गए हैं। इत्तेफाक की बात है कि इस सप्ताह रिलीज हुई दोनों ही फिल्मों ‘रईस’ व ‘काबिल’ (सारा जमान हसीनों का दीवाना/उर्वशी रौतेला) में पुराने गीतों को दोबारा पेश किया गया है लेकिन दोनों ही प्रभावहीन हैं और केवल फिल्म में बाधा बनते हैं।

अगर आप शाहरुख खान के फैन हैं तो आपके लिए यह फिल्म है। शुरू से लेकर अंत तक हर सीन में शाहरुख ही शाहरुख हैं। यानी आपके लिए फुल पैसा वसूल है। अलबत्ता इस फिल्म से शाहरुख के कैरियर की माइलस्टोन फिल्म की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। ऐसा इसमें कुछ नहीं है।

- हर्ष कुमार सिंह




Wednesday 25 January 2017

DEEP REVIEW: Kaabil

हृतिक रोशन के कैरियर की सबसे बेहतरीन परफोर्मेंस
RATING- 4*

थ्रिलर फिल्में अक्सर आपको लुभाती हैं क्योंकि इस तरह की फिल्में बहुत कम बनती हैं। 2015 में एक फिल्म आई थी ‘जज्बा’। जिसे बाक्स आफिस पर तो ज्यादा सफलता नहीं मिली थी लेकिन फिल्म को सराहा गया था। वह ऐश्वर्या राय की कमबैक फिल्म होने के कारण जरूर खबरों में रही थी। कुछ वैसी ही फिल्म है ‘काबिल’। दोनों ही के निर्देशक हैं संजय गुप्ता। गुप्ता ऐसी फिल्में बनाने के लिए मशहूर हैं। अब यह फिल्म भी ‘जज्बा’ की तरह साबित होगी या सफलता के कीर्तिमान स्थापित करेगी यह समय बताएगा। अगर एक लाइन में इस फिल्म के बारे में कुछ कहना हो तो आप कह सकते हैं – पहली बार हृतिक रोशन बेहतरीन एक्टिंग करते नजर आए। शायद यह उनके कैरियर की सबसे जोरदार परफोर्मेंस है। जी हां ‘अग्निपथ’ से भी बेहतरीन।

रोहन (हृतिक) एक डबिंग आर्टिस्ट है और अकेले ही कई कैरेक्टर्स की आवाजें निकालने में सक्षम है। कार्टून फिल्मों में डबिंग करता है और पैसा भी ठीक-ठाक कमा लेता है। कमी है तो यह कि वह देख नहीं सकता। उसकी मुलाकात सुप्रिया (यामी गौतम) से होती है जो उसी की तरह नेत्रहीन है। दोनों में प्यार हो जाता है और शादी कर लेते हैं। एक बड़े कार्पोरेटर (रोनित राय) का भाई अमित (रोहित राय) अपने दोस्त के साथ सुप्रिया का रेप करता है। रोहन व सुप्रिया पुलिस के पास जाना चाहते हैं लेकिन अमित का भाई उन्हें सफल नहीं होने देता। रोहन व सुप्रिया दोनों इस वाकये को भूलना चाहते हैं लेकिन हद तब हो जाती है जब दोनों फिर से सुप्रिया का रेप करते हैं। सुप्रिया जान लेती है कि वह रोहन की कमजोरी बन रही है और बार-बार ऐसा होगा तो दोनों का जीवन सामान्य नहीं हो पाएगा। वह आत्महत्या कर लेती है। रोहन को जब पता चलता है कि सुप्रिया के साथ फिर से रेप हुआ है तो वह होश खो बैठता है और पुलिस की मौजूदगी में इसका बदला लेने का चैलेंज कर देता है। दूसरे हाफ में केवल बदला लेने की ही कहानी है।

जिस तरह से रोहन बदला लेता है वह एक अंधे व्यक्ति के लिए सरल नहीं है लेकिन फिर भी सिनेमा में इस तरह की चीजें दिखाई जाती हैं और फिल्म देखते समय दर्शक भी पूरी तरह सहमत न होने के बावजूद सहानुभूति की वजह से नायक के साथ जुड़ जाते हैं। कुछ ऐसा ही ‘काबिल’ में भी होता है। रोहन अपनी आवाजें बदलने की काबलियत का फायदा उठाता है और अपने दुश्मनों के बीच पहले तो गलतफहमी पैदा करता है और फिर एक के बाद एक सबको मारना शुरू करता है। इस दौरान एक काबिल पुलिस आफिसर उसे लगातार रोकने की कोशिश भी करता रहता है लेकिन रोहन तो हीरो है और उसे कौन रोक सकता है। अंत में उसका बदला पूरा होता है और वह सुप्रिया की अस्थियों को विसर्जित कर अपना कर्तव्य निभाता है।

फिल्म में इमोशन है। इसलिए यह आपको बांधे रखती है। अगर आप पटकथा की बात करें तो पहला हाफ बेहद कसा हुआ है। खासतौर से हृतिक व यामी के बीच जितने भी सीन हैं सारे दिल को छू लेते हैं। मॉल में दोनों का बिछड़ जाना और फिर मिलना। रेप के बाद यामी का उससे दूर हो जाने का फैसला सुनाने वाला सीन व कुछ रोमांटिक सीन बहुत ही अच्छे बने हैं। यामी खूबसूरत तो हैं ही अच्छी कलाकार भी हैं और उनकी उपस्थिति स्क्रीन को चमका देती है। शायद यही वजह है कि निर्देशक ने यामी की मौत के बाद भी उसके कैरेक्टर को गायब नहीं किया और समय-समय पर वह आती रहती हैं। रोहन से बात भी करती हैं। एक्टिंग में हृतिक ने अपनी छाप छोड़ी है। पहले हाफ में एक रोमांटिक पति व दूसरे हाफ में एक उग्र नायक के रूप में जमते हैं। शायद पहली फिल्म है जिसमें उन्होंने इस तरह का किरदार निभाया है। पहले वह कमजोर नजर आते हैं लेकिन बाद में बेहद ताकतवर हो जाते हैं। यानी पूरी तरह हीरो नजर आते हैं। इंटरवल से ठीक पहले सीन में जब वह पुलिस को चैलेंज करते हैं तो छा जाते हैं।


तमाम खूबियों के बाद भी इसमें अनेक खामियां हैं। दूसरा हाफ बेहद कमजोर तरीके से लिखा गया है। संवाद अच्छे हैं लेकिन और भी बेहतर हो सकते थे। संगीत कमजोर है। टाइटिल गीत के अलावा कोई गीत याद नहीं रहता। आइटम गीत के रूप में अस्सी के दशक के गीत ‘सारा जमान हसीनों का दीवाना’ को रीक्रिएट किया गया है लेकिन वह न देखने में अच्छा लगता है न सुनने में। आइटम गीत दूसरे हाफ के शुरू में ही आता है और ठूंसा हुआ नजर आता है। अगर उर्वशी रोतेला का यह आइटम गीत न भी होता तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था।

फिल्म के साथ सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट यह है कि इसकी कहानी में नयापन है। इसी हफ्ते रिलीज हुई शाहरुख खान की ‘रईस’ पुरानी घिसी पिटी कहानी पर आधारित फिल्म है, उसके मुकाबले यह फिल्म बहुत मजबूत नजर आती है। देखना यह है कि इसे सफलता कितनी मिलती है।

- हर्ष कुमार सिंह