शाहरुख के फैंस के लिए सब कुछ है इसमें
RATING- 3*
शाहरुख खान की कई साल बाद कोई फिल्म सिनेमाहाल में देखी। शायद ‘डॉन 2’ अंतिम थी इससे पहले। कई साल से उनकी किसी भी फिल्म को देखने की उत्सुकता ही नहीं बन पाती थी। हकीकत यह भी है कि इस दौरान उनकी कोई ऐसी फिल्म आई भी नहीं जिसने बाक्स आफिस पर तहलका मचाया हो या फिर शाहरुख के रोल की तारीफें हुई हों। मेरा मानना है कि तीनों खानों में शाहरुख खान को स्टोरी सेंस सबसे कम है। आमिर व सलमान को उनसे कहीं ज्यादा समझ है कि कौन सी कहानी ज्यादा क्लिक कर सकती है। शाहरुख अमूमन यह देखकर फिल्म करते हैं कि उसके निर्माता-निर्देशक कौन हैं। करण जौहर उनसे कोई भी रोल करने के लिए कहें वे कर लेते हैं। रोहित शेट्टी के साथ ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ ने ठीक-ठाक बिजनेस कर लिया तो ‘दिलवाले’ जैसी बोझिल फिल्म भी उनके साथ कर लेते हैं। फराह खान से झगड़ा हुआ तो उनसे संबंध सुधारने के लिए ‘हैप्पी न्यू ईयर’ जैसी निहायती बेसिर पैर की फिल्म कर लेते हैं। यानी उनका ताल्लुक अब अपने फैंस से ज्यादा बल्कि फिल्म इंडस्ट्री में उनके दोस्तों-साथियों के साथ ज्यादा मजबूत हो गया है। यही वजह है कि लगातार उनकी फिल्मों का बाक्स आफिस कलेक्शन नीचे की तरफ जा रहा है। ‘दिलवाले’ और उसके बाद ‘फैन’ व ‘डियर जिंदगी’ का क्या हुआ सब जानते हैं। ‘रईस’ भी इसी श्रेणी की फिल्म है। दोनों प्रोड्यूसर (रीतेश व फरहान) उनके दोस्त हैं और शायद इसलिए उन्होंने कहानी पर ज्यादा गौर नहीं किया।
जिन लोगों को 90 के दशक की ‘अग्निपथ’ और फिर बाद में आई ‘सत्या’, ‘कंपनी’ और ‘वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ जैसी फिल्में याद हैं उन्हें ‘रईस’ में कुछ नया नहीं लगेगा। रईस (शाहरुख) बचपन से ही मुफलिसी की जिंदगी जिया और इसलिए शराब के गलत धंधे में पड़ गया। कोई भी काम गलत नहीं होता और कोई भी धर्म धंधे से बड़ा नहीं होता, मां की यह सीख उसने पल्ले बांध ली। इसी को फार्मूला बनाकर बड़ा आदमी बनता गया। इस धंधे में लगे तमाम दूसरे लोगों को पीछे छोड़कर रईस गुजरात (जहां शराबबंदी है और यह कहानी जिसकी पृष्ठभिम पर आधारित है) का सबसे बड़ा डॉन बन गया। बाद में जनता की सहानूभूति पाकर वह जेल में होने के बावजूद एमएलए तक बन जाता है। इस दौरान पूरी फिल्म में उसके सामने एक पुलिस आफिसर मजमूदार (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) चट्टान की तरह खड़ा रहता है। लगातार कोशिश करता है कि किसी भी तरह रईस को जेल में बंद किया जाए। अंत में जब इंतहा हो जाती है तो तमाम नेता व पुलिसवाले रईस के खिलाफ हो जाते हैं और उसे खत्म कर डालने की ठान लेते हैं। होता भी यही है। रईस अंत में पुलिस के सामने सरेंडर करता है और पुलिस उसे जंगल में ले जाकर फर्जी एनकाउंटर मे ढेर कर देती है। इस दौरान उसकी एक प्रेम कहानी (माहिरा खान से) भी दिखाई गई है। माहिरा उसकी बीवी बनती है और बच्चे की मां भी। यह कहानी अलग ट्रैक पर है और राइटर ने इसे मूल कहानी से जोड़ने की कोशिश में फिल्म को कई बार बोझिल किया है।
कहानी में एक नहीं सैकड़ों खामियां हैं। एक भी सीन ऐसा नहीं है जो पहले आपने किसी फिल्म में नहीं देखा हो। गैंगस्टर्स की फिल्मों में जैसा होता है अक्सर वैसा ही इसमें होता दिखाया गया है। शाहरुख खान जब भी पुलिस को चकमा देते हैं तो दर्शकों को मजा आता है लेकिन जब भी उनका सामना नवाजुद्दीन सिद्दीकी से होता है तो वे कमजोर नजर आते हैं। यह लेखक व निर्देशक, दोनों की ही कमी है कि हीरो पर साइड हीरो इस तरह भारी पड़ता है। संवाद भी नवाज को बेहतर मिले हैं और उनका किरदार दर्शक के दिलो दिमाग पर छाने लगता है। लेकिन यह भी मानना होगा को शाहरुख खान सुपर स्टार हैं और उनकी स्क्रीन प्रेजेंस बहुत ही जोरदार है। इस फिल्म में उन्होंने कमजोर कहानी व निर्देशन के बाद भी अपने किरदार में जान डाल दी है। उन्होंने अपने रोल को शिद्दत से निभाया है। शायद उनके कैरियर की यह पहली फिल्म है जिसमें इतना एक्शन व खून खराबा दिखाया गया है। अंडरवर्ल्ड डॉन का किरदार उन्होंने जोरदार तरीके से निभाया है। ‘डॉन’ व ‘डॉन 2’ से भी बेहतर वे यहां नजर आते हैं। जिस सीन में भी वे आते हैं छा जाते हैं। पाकिस्तानी अभिनेत्री माहिरा खान सुंदर हैं लेकिन उनमें बड़ा स्टार बनने की खासियत नहीं दिखी। शाहरुख के साथ उनकी जोड़ी जमती नहीं। वे उम्र में भी उनसे छोटी नजर आती हैं। नवाजुद्दीन सिद्दीकी साइड हीरो के रोल में अक्सर बढिया काम कर जाते हैं और यहां भी उन्होंने यही किया है।
फिल्म का संगीत केवल सिनेमाहाल में देखने में ही अच्छा लगता है अलबत्ता कोई भी गीत ऐसा नहीं है जो दिल पर छा जाए या जुबां पर चढ़ जाए। सनी लियोनी को एक आइटम गीत ‘लैला मैं लैला’ में लाया गया है। 80 के दशक में जीनत अमान पर फिल्माए गए इस गीत को रिक्रिएट करने के चक्कर में बुरी तरह से मसल दिया गया है। यह न देखने में अच्छा लगता है न ही सुनने में। न सनी लियोनी इसमें मादक लगती हैं और न ही उन्हें अच्छे डांस स्टेप दिए गए हैं। इत्तेफाक की बात है कि इस सप्ताह रिलीज हुई दोनों ही फिल्मों ‘रईस’ व ‘काबिल’ (सारा जमान हसीनों का दीवाना/उर्वशी रौतेला) में पुराने गीतों को दोबारा पेश किया गया है लेकिन दोनों ही प्रभावहीन हैं और केवल फिल्म में बाधा बनते हैं।
अगर आप शाहरुख खान के फैन हैं तो आपके लिए यह फिल्म है। शुरू से लेकर अंत तक हर सीन में शाहरुख ही शाहरुख हैं। यानी आपके लिए फुल पैसा वसूल है। अलबत्ता इस फिल्म से शाहरुख के कैरियर की माइलस्टोन फिल्म की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। ऐसा इसमें कुछ नहीं है।
RATING- 3*
शाहरुख खान की कई साल बाद कोई फिल्म सिनेमाहाल में देखी। शायद ‘डॉन 2’ अंतिम थी इससे पहले। कई साल से उनकी किसी भी फिल्म को देखने की उत्सुकता ही नहीं बन पाती थी। हकीकत यह भी है कि इस दौरान उनकी कोई ऐसी फिल्म आई भी नहीं जिसने बाक्स आफिस पर तहलका मचाया हो या फिर शाहरुख के रोल की तारीफें हुई हों। मेरा मानना है कि तीनों खानों में शाहरुख खान को स्टोरी सेंस सबसे कम है। आमिर व सलमान को उनसे कहीं ज्यादा समझ है कि कौन सी कहानी ज्यादा क्लिक कर सकती है। शाहरुख अमूमन यह देखकर फिल्म करते हैं कि उसके निर्माता-निर्देशक कौन हैं। करण जौहर उनसे कोई भी रोल करने के लिए कहें वे कर लेते हैं। रोहित शेट्टी के साथ ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ ने ठीक-ठाक बिजनेस कर लिया तो ‘दिलवाले’ जैसी बोझिल फिल्म भी उनके साथ कर लेते हैं। फराह खान से झगड़ा हुआ तो उनसे संबंध सुधारने के लिए ‘हैप्पी न्यू ईयर’ जैसी निहायती बेसिर पैर की फिल्म कर लेते हैं। यानी उनका ताल्लुक अब अपने फैंस से ज्यादा बल्कि फिल्म इंडस्ट्री में उनके दोस्तों-साथियों के साथ ज्यादा मजबूत हो गया है। यही वजह है कि लगातार उनकी फिल्मों का बाक्स आफिस कलेक्शन नीचे की तरफ जा रहा है। ‘दिलवाले’ और उसके बाद ‘फैन’ व ‘डियर जिंदगी’ का क्या हुआ सब जानते हैं। ‘रईस’ भी इसी श्रेणी की फिल्म है। दोनों प्रोड्यूसर (रीतेश व फरहान) उनके दोस्त हैं और शायद इसलिए उन्होंने कहानी पर ज्यादा गौर नहीं किया।
जिन लोगों को 90 के दशक की ‘अग्निपथ’ और फिर बाद में आई ‘सत्या’, ‘कंपनी’ और ‘वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ जैसी फिल्में याद हैं उन्हें ‘रईस’ में कुछ नया नहीं लगेगा। रईस (शाहरुख) बचपन से ही मुफलिसी की जिंदगी जिया और इसलिए शराब के गलत धंधे में पड़ गया। कोई भी काम गलत नहीं होता और कोई भी धर्म धंधे से बड़ा नहीं होता, मां की यह सीख उसने पल्ले बांध ली। इसी को फार्मूला बनाकर बड़ा आदमी बनता गया। इस धंधे में लगे तमाम दूसरे लोगों को पीछे छोड़कर रईस गुजरात (जहां शराबबंदी है और यह कहानी जिसकी पृष्ठभिम पर आधारित है) का सबसे बड़ा डॉन बन गया। बाद में जनता की सहानूभूति पाकर वह जेल में होने के बावजूद एमएलए तक बन जाता है। इस दौरान पूरी फिल्म में उसके सामने एक पुलिस आफिसर मजमूदार (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) चट्टान की तरह खड़ा रहता है। लगातार कोशिश करता है कि किसी भी तरह रईस को जेल में बंद किया जाए। अंत में जब इंतहा हो जाती है तो तमाम नेता व पुलिसवाले रईस के खिलाफ हो जाते हैं और उसे खत्म कर डालने की ठान लेते हैं। होता भी यही है। रईस अंत में पुलिस के सामने सरेंडर करता है और पुलिस उसे जंगल में ले जाकर फर्जी एनकाउंटर मे ढेर कर देती है। इस दौरान उसकी एक प्रेम कहानी (माहिरा खान से) भी दिखाई गई है। माहिरा उसकी बीवी बनती है और बच्चे की मां भी। यह कहानी अलग ट्रैक पर है और राइटर ने इसे मूल कहानी से जोड़ने की कोशिश में फिल्म को कई बार बोझिल किया है।
कहानी में एक नहीं सैकड़ों खामियां हैं। एक भी सीन ऐसा नहीं है जो पहले आपने किसी फिल्म में नहीं देखा हो। गैंगस्टर्स की फिल्मों में जैसा होता है अक्सर वैसा ही इसमें होता दिखाया गया है। शाहरुख खान जब भी पुलिस को चकमा देते हैं तो दर्शकों को मजा आता है लेकिन जब भी उनका सामना नवाजुद्दीन सिद्दीकी से होता है तो वे कमजोर नजर आते हैं। यह लेखक व निर्देशक, दोनों की ही कमी है कि हीरो पर साइड हीरो इस तरह भारी पड़ता है। संवाद भी नवाज को बेहतर मिले हैं और उनका किरदार दर्शक के दिलो दिमाग पर छाने लगता है। लेकिन यह भी मानना होगा को शाहरुख खान सुपर स्टार हैं और उनकी स्क्रीन प्रेजेंस बहुत ही जोरदार है। इस फिल्म में उन्होंने कमजोर कहानी व निर्देशन के बाद भी अपने किरदार में जान डाल दी है। उन्होंने अपने रोल को शिद्दत से निभाया है। शायद उनके कैरियर की यह पहली फिल्म है जिसमें इतना एक्शन व खून खराबा दिखाया गया है। अंडरवर्ल्ड डॉन का किरदार उन्होंने जोरदार तरीके से निभाया है। ‘डॉन’ व ‘डॉन 2’ से भी बेहतर वे यहां नजर आते हैं। जिस सीन में भी वे आते हैं छा जाते हैं। पाकिस्तानी अभिनेत्री माहिरा खान सुंदर हैं लेकिन उनमें बड़ा स्टार बनने की खासियत नहीं दिखी। शाहरुख के साथ उनकी जोड़ी जमती नहीं। वे उम्र में भी उनसे छोटी नजर आती हैं। नवाजुद्दीन सिद्दीकी साइड हीरो के रोल में अक्सर बढिया काम कर जाते हैं और यहां भी उन्होंने यही किया है।
फिल्म का संगीत केवल सिनेमाहाल में देखने में ही अच्छा लगता है अलबत्ता कोई भी गीत ऐसा नहीं है जो दिल पर छा जाए या जुबां पर चढ़ जाए। सनी लियोनी को एक आइटम गीत ‘लैला मैं लैला’ में लाया गया है। 80 के दशक में जीनत अमान पर फिल्माए गए इस गीत को रिक्रिएट करने के चक्कर में बुरी तरह से मसल दिया गया है। यह न देखने में अच्छा लगता है न ही सुनने में। न सनी लियोनी इसमें मादक लगती हैं और न ही उन्हें अच्छे डांस स्टेप दिए गए हैं। इत्तेफाक की बात है कि इस सप्ताह रिलीज हुई दोनों ही फिल्मों ‘रईस’ व ‘काबिल’ (सारा जमान हसीनों का दीवाना/उर्वशी रौतेला) में पुराने गीतों को दोबारा पेश किया गया है लेकिन दोनों ही प्रभावहीन हैं और केवल फिल्म में बाधा बनते हैं।
अगर आप शाहरुख खान के फैन हैं तो आपके लिए यह फिल्म है। शुरू से लेकर अंत तक हर सीन में शाहरुख ही शाहरुख हैं। यानी आपके लिए फुल पैसा वसूल है। अलबत्ता इस फिल्म से शाहरुख के कैरियर की माइलस्टोन फिल्म की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। ऐसा इसमें कुछ नहीं है।