('बाजीराव मस्तानी' पर संजय लीला भंसाली का पहला इंटरव्यू)
#हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी फिल्म है 'बाजीराव मस्तानी’
#पुराने फिल्मकारों से जो सीखा वही उन्हें लौटा रहा हूं
#फिल्ममेकर की मुश्किलें 50 साल पहले भी वहीं थी और 50 साल बाद भी वही होंगी
हिंदी सिनेमा के वर्तमान फिल्म निर्देशकों में संजय लीला भंसाली का दर्जा सबसे ऊंचा है। जिस तरह की फिल्मों की वे कल्पना करते हैं वो कोई सोच भी नहीं सकता। जब उनकी फिल्में बड़े पर्दे पर आप देखते हैं तो आप भौंचक्क रह जाते हैं। देखने वालों का मानना होता है कि वे 'लार्जर देन लाइफ’ अनुभव देती हैं। 'खामोशी द म्यूजिकल’ से शुरूआत करने के बाद ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘देवदास’, ‘ब्लैक’, ‘सांवरिया’, ‘गुजारिश’ और अब ‘बाजीराव मस्तानी’। उनकी फिल्में ये साबित करती हैं कि वे कितनी अलग तरह की सोच रखते हैं। कभी गूंगे-बहरे लोगों को लेकर म्यूजिकल कहानी कहते हैं, तो कभी प्रेम त्रिकोण की, कभी वे क्लासिक साहित्य के दौर में चले जाते हैं। यही नहीं जब उनका मूड होता है तो अमिताभ बच्चन व हृतिक रोशन जैसे सुपर स्टार्स को बीमार व असहाय किरदारों के रूप में पेश करने का रिस्क उठाने से भी पीछे नहीं हटते। उन्होंने केवल एक बार (सांवरिया) नए सितारों के साथ काम किया है और उसमें भी कई प्रयोग कर डाले। ये पहला मौका था जब किसी नायक (रणबीर कपूर) को आपने न्यूड (तौलिये की आड़ में) डांस करते हुए देखा। वे जो भी करते हैं तो बहुत ही खास करते हैं।
'बाजीराव मस्तानी’ उनके जीवन की सबसे अहम फिल्म है और ये सब जानते हैं कि पिछले डेढ़ दशक से जब भी उनकी कोई फिल्म रिलीज होती थी तो हमेशा ही ये चर्चा होती थी कि वे अगली फिल्म 'बाजीराव मस्तानी’ ही बनाएंगे लेकिन किसी न किसी वजह से ये फिल्म शुरू नहीं हो पाती थी। अब जाकर ये फिल्म साकार रूप ले सकी है। अब जबकि फिल्म की रिलीज के लिए एक पखवाड़े का समय रह गया है तो संजय काफी रिलेक्स नजर आते हैं। उन्होंने मुंबई के स्वाति मित्रा अपार्टमेंट (जूहू) स्थित अपने क्लासिक दफ्तर में 21 नवम्बर को दिए इंटरव्यू में इस फिल्म और फिल्म निर्देशक बनने के अपने सफर के बारे में तफ्सील से बताया:-
'बाजीराव मस्तानी’ उनके जीवन की सबसे अहम फिल्म है और ये सब जानते हैं कि पिछले डेढ़ दशक से जब भी उनकी कोई फिल्म रिलीज होती थी तो हमेशा ही ये चर्चा होती थी कि वे अगली फिल्म 'बाजीराव मस्तानी’ ही बनाएंगे लेकिन किसी न किसी वजह से ये फिल्म शुरू नहीं हो पाती थी। अब जाकर ये फिल्म साकार रूप ले सकी है। अब जबकि फिल्म की रिलीज के लिए एक पखवाड़े का समय रह गया है तो संजय काफी रिलेक्स नजर आते हैं। उन्होंने मुंबई के स्वाति मित्रा अपार्टमेंट (जूहू) स्थित अपने क्लासिक दफ्तर में 21 नवम्बर को दिए इंटरव्यू में इस फिल्म और फिल्म निर्देशक बनने के अपने सफर के बारे में तफ्सील से बताया:-
क्या ये संजय लीला भंसाली के करियर की 'मुगल ए आजम’ है?
(मुस्कुराते हुए) हां, आप ये कह सकते हैं। 13 साल से मैं इस फिल्म को बनाना चाह रहा था। ये कहानी मेरे दिल के करीब शुरू से ही रही है। अलग-अलग वजहों से ये फिल्म शुरू करने का मौका नहीं मिल पा रहा था। 'रामलीला’ के बाद मैंने तय कर लिया था कि अब यही समय है कि मुझे 'बाजीराव मस्तानी’ बनानी चाहिए। रणवीर और दीपिका के रूप में हमारी टीम पूरी तरह से मूड में थी और मुझे लगा कि अब नहीं तो फिर कभी नहीं। अक्सर कई सितारों के नाम इस फिल्म के लिए मेरे दिमाग में आते थे लेकिन ये फिल्म इन दोनों की किस्मत में थी तो ये 'बाजीराव मस्तानी’ बन गए। ये मेरे जीवन की अब तक की सबसे बड़ी फिल्म है। इसलिए मैं तो ये कह ही सकता हूं कि ये मेरे जीवन की 'मुगल ए आजम’ है। वैसे 'मुगल ए आजम’ जैसी फिल्में रोज-रोज नहीं बना करतीं और न ही उनकी सफलताओं को दोहराया जा सकता।जिस तरह से फिल्म का पहला ट्रेलर जारी किया गया है और उसे देखने के बाद जो कुछ नजर आ रहा है उसे देखते हुए तो इसकी तुलना 'मुगल ए आजम’ से किया जाना स्वाभाविक ही है?
देखिये जिस तरह से कोई दूसरी लता मंगेशकर नहीं पैदा हो सकती उसी तरह से दूसरी 'मुगल ए आजम’ नहीं बन सकती। हां मैं इससे इनकार नहीं करता कि के. आसिफ मेरे पसंदीदा फिल्मकार रहे हैं। जब मैं छोटा सा था तो मेरे पिताजी मुझे उनकी फिल्में दिखाने के लिए ले जाया करते थे। बताया करते थे कि देखो कैसे शॉट लिया गया है, किस तरह से दिलीप कुमार-मधुबाला के चेहरे के हाव भाव हैं। किस तरह से बड़े गुलाम अली खां बैकग्राउंड में गा रहे हैं। शायद उनके जहन में था कि मुझे आगे जाकर फिल्म निर्देशक बनना है। मैं तेज बच्चा था और सीखता चला गया। शायद मैं अपने पिता का सपना पूरा कर रहा हूं। 'मुगल ए आजम’ से तुलना तो नहीं करूंगा और न ही होनी चाहिए, लेकिन उस तरह की फिल्म बनाने की कोशिश जरूर की गई है। इसे मैं अपनी 'मुगल ए आजम’ इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मुझे लगता था कि पता नहीं ये फिल्म कभी शुरू भी हो पाएगी या नहीं? शुरू होगी तो पूरी भी हो पाएगी या नहीं, और न जाने कैसे-कैसे सवाल दिमाग में उठते थे, लेकिन उम्मीद छोड़ी नहीं और अब लगता है कि पिता का सपना पूरा कर रहा हूं।ये आपके करियर की सबसे बड़ी फिल्म है?
जी बिल्कुल। मेरे हिसाब से ये हिंदुस्तान में बनी अब तक की सबसे बड़ी फिल्मों में से एक है। इसका कैनवस इतना बड़ा है कि शायद आपने पहले कभी नहीं देखा होगा। जिस स्केल पर इसे शूट किया गया है वो बेहद भव्य है। चाहे वो इसकी कास्ट्यूम डिजानिंग हो या फिर इसकी आर्ट डायरेक्शन। सब पर इतने बड़े पैमाने पर काम किया गया है कि आपको ये बड़ी फिल्म का इंप्रेशन दे रही है। दरअसल ये फिल्म वो फिल्म है जिसके माध्यम से मैं वो सब कुछ हिंदी सिनेमा को देना चाह रहा हूं जो मैंने इस इंडस्ट्री से पाया है।यानी एक तरह से ये फिल्म हिंदी सिनेमा के महान फिल्मकारों को आपकी ओर से ट्रिब्यूट है?
ट्रिब्यूट शब्द सही है। एकदम सही कहा आपने। के आसिफ, महबूब खान की 'मदर इंडिया’, कमाल अमरोही की 'पाकीजा’ आदि को देख-देखकर मैंने जो सीखा वो ही मैं इन महान फिल्मकारों को वापस समर्पित करना चाहता हूं। बचपन से ही नौशाद साहब, शंकर जयकिशन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, आर डी बर्मन का संगीत सुना करता था। बेगम अख्तर को आज भी बार-बार सुनता हूं। ये लोग जादूगर थे। बहुत कुछ छोड़ गए हैं ये लोग, सीखने वाला चाहिए। मैं बचपन से ही अच्छा स्टूडेंट था। तेज बच्चा था एकदम तेजी से सबकुछ सीख लेता था। वैसे मैं आपको बताऊं, आज भी सीखने वालों की कमी है सिखाने वालों की नहीं। मांगने वाले चाहिए देने वाले बहुत हैं।'मुगल ए आजम’ जब बनी थी तो वो दौर और था। तब आज की तरह सब कुछ मैनेज्ड नहीं होता था उसे बनाने में 13 साल लगें तो समझ में आता है लेकिन आज के दौर में इतना समय क्यों लगना चाहिए?
आपने करियर की शुरूआत एक सांग डायरेक्टर के रूप में की थी?
अपनी बनाई सबसे पसंदीदा फिल्म किसे मानते हैं?
'रामलीला’, जिस तरह से ये फिल्म बनी वो मेरे दिल के सबसे ज्यादा करीब है। संगीत के लिहाज से 'सावंरिया’ मेरी सबसे बेहतरीन फिल्म है।फिल्म निर्देशन करते-करते आप संगीतकार कैसे बन गए ?
भगवान करे ये 'मुगल ए आजम’ से भी बड़ी फिल्म साबित हो: दीपिका
फिल्म में मस्तानी का किरदार निभा रही दीपिका पादुकोण भी इस फिल्म को लेकर बेहद उत्साहित हैं। वे इसे अपने करियर की सबसे बड़ी फिल्म तो मानती ही हैं और वे चाहती हैं कि ये फिल्म 'मुगल ए आजम’ जैसी साबित हो और हिंदी सिनेमा में बड़ा स्थान हासिल करे। दीपिका ने ट्रेलर लांच के मौके पर बातचीत में कहा कि इस फिल्म को शूट करते समय ही हम सबको आभास हो रहा था कि हम अपने करियर में कुछ अलग करने जा रहे हैं।संजय सर ने मुझे संजीदा बना दिया: रणवीर
कभी हल्के फुल्के किरदार निभाने वाले रणवीर सिंह इस फिल्म में बिल्कुल अलग ही अंदाज में नजर आ रहे हैं। रणवीर ने ट्रेलर लांच के मौके पर मुझे से बातचीत में कहा कि आपने बिल्कुल सही कहा है। अन्य फिल्मों में हम ज्यादा मस्ती करते हैं। केवल 10-15 दिन ही ऐसे आते हैं जब हम इमोशनल या गंभीर सीन कर रहे होते हैं। संजय सर की फिल्मों में ऐसा नहीं होता। यहां आप पहले ही दिन से दबाव में होते हैं। प्रियंका तो शुरू में रोने ही लगी थी कि ये मुझसे नहीं होगा वो मुझसे नहीं होगा। लेकिन संजय सर को जरा भी कमी कहीं दिख जाती है तो वे दोबारा शूट किए बिना नहीं मानते हैं। ऐसे माहौल में गंभीरता तो पैदा हो ही जाती है।संजय जी के साथ इंटरव्यू के बाद क्लिक की सैल्फी। |
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