Tuesday 14 February 2017

DEEP REVIEW: Jolly LLB 2 ****

अक्षय कुमार की एक और बेहतरीन फिल्म
RATING- ****
अक्षय कुमार एक बार फिर विनर लेकर आए हैं। ‘जौली एलएलबी 2’ उस तरह की फिल्म है जिसके लिए अक्षय कुमार जाने जाते हैं। यानी नई कहानी, कॉमेडी और सस्ती फिल्म मेकिंग। ये तीन कांबिनेशन जब मिल जाते हैं तो फिल्म की सफलता भी तय जानिए।

अक्षय कुमार के बारे में कहा जाता है कि वे फिल्म मेकिंग की समझ बहुत रखते हैं और इसलिए फिल्म के मेहनताने के रूप में उसके बिजनेस को साझा करते हैं। इसके फायदे भी हैं और नुकसान भी। फिल्म चलती तो कमाई ही कमाई और नहीं चली तो घाटा। पर अगर आपके पास अच्छी स्टोरी सेंस है तो आपसे बेहतर अभिनेता कोई और नहीं हो सकता। शाहरुख खान का फिल्में क्यों नहीं चलती, क्योंकि उन्हें कहानी की समझ कम है। मैं पहले भी कहता रहा हूं कि आमिर या सलमान की तरह उन्हें यह समझ नहीं आता कि वे किस तरह की कहानी चुनें। इसके अलावा वह फिल्म के लिए पब्लिसिटी इतनी कर देते हैं कि फिल्म ओवरबजट हो जाती है और ऐसे में फिल्म की कीमत वसूलना बहुत ही कठिन हो जाता है। पर अक्षय कुमार बाक्स आफिस के खिलाड़ी हैं।

पिछले कुछ सालों में अक्षय कुमार की कोई भी फिल्म घाटे में नहीं गई है। ‘एयरलिफ्ट’ जैसी फिल्म, जिसका विषय बहुत ही अलग था, 100 करोड़ से ज्यादा की कमाई करने में सफल रही थी। अक्षय कुमार की पहचान देशभक्ति की फिल्में करने के लिए भी बन रही है और इसलिए वे जनता के बीच बहुत ही पापुलर होते जा रहे हैं। यह बात नजर आती है ‘जौली एलएलबी 2’ के बिजनेस में। बड़े से बड़े व छोटे से छोटे सेंटर पर इसका रिस्पांस एक जैसा है। फिल्म शानदार बिजनेस कर रही है।


जौली एलएलबी के पहले भाग में जो रोल अरशद वारसी ने निभाया था वह इसमें अक्षय कुमार ने किया है। पहली फिल्म भी यूपी के वकीलों की कहानी थी और यह भी। फर्क केवल इतना है कि उसमें हीरो मेरठ का था तो इसमें कानपुर का है। पहले भाग में वकील के रूप में जौली के सामने बोमन ईरानी थे तो इसमें अन्नू कपूर हैं। जज के रोल में सौरभ शुक्ला हैं और फिल्म की जान हैं। अक्षय कुमार ने वारसी की तरह ही इस रोल में जान डाल दी है, हालांकि अन्नू बोमन ईरानी की तरह किरदार में जान नहीं डाल पाए लेकिन उनका अभिनय अच्छा है।

जौली (अक्षय) एक बहुत बड़े वकील के असिस्टेंट हैं और खुद की स्वतंत्र वकालत करने का सपना देखते हैं। न्याय की तलाश में भटक रही एक गर्भवती महिला से दो लाख रुपये ठग लेते हैं। जब उसको सच्चाई का पता चलता है तो जौली को खुलेआम जलील करके वह लड़की आत्महत्या कर लेती है। यह प्रकरण जौली को अंदर तक झकझोर देता है। वह उस पीडित महिला के पति की फर्जी एनकाउंटर में हत्या के मामले में घुस जाता है। याचिका कोर्ट में दाखिल कर मामले को फिर से खोल देता है। कुछ दिक्कतें आती हैं लेकिन अंत में जीत सच की होती है।

फिल्म की पटकथा इतनी चुस्त है कि बस पूछिए मत। अगर कोई गीत भी आता है तो दुश्मन नजर आता है। फिल्म में कोर्ट रूम की कहानी है और इसे बनाने में न ज्यादा समय लगा होगा और न ही पैसा। फिल्म की असली जान तो इसके संवाद हैं। बेहद चुटीले और व्यंग्य करने वाले।

फिल्म के अंत में अक्षय कुमार जब स्कूटर पर कपड़ा मारने वाले बच्चे को पैसा नहीं देते तो एक आदमी उनसे कहता है कि तुम्हें ऐसा करते हुए शर्म नहीं आती ? इस पर अक्षय जवाब देते हैं- वकील हूं शर्म नहीं आती। यह फिल्म न्याय के पेशे पर भी बड़े सवाल खड़े करती है और बिना किसी विवाद में फंसे अपनी बात कहने में सफल रहती है। वकीलों को तो यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए। फिल्म में सबसे बड़ा संदेश उन वकीलों के लिए ही है जो किसी भी पीड़ित को आसामी समझते हैं और उसे न्याय दिलाने के बजाय बरसों-बरस केवल उसका शोषण ही करते रहते हैं। इसके अलावा पुलिसवालों को भी इसमें संदेश दिया गया है। फर्जी एनकाउंटर एक कड़वा सच है जो पुलिस झूठी वाह वाही के लिए करती रहती है और उसके दुष्प्रभावों को नहीं देखती। फिल्म में हिरोईन के रूप में हुमा कुरैशी भी हैं। हुमा को करने के लिए कुछ नहीं था इसलिए उनके लिए एक होली सॉंग डाल दिया गया। एक दो सीन भी उन्हें दे दिए गए जिसमें वह ठीक ठाक काम करने में सफल रही हैं। फिल्म देखिये और पूरे परिवार के साथ देखिये, मजा आ जाएगा।

- हर्ष कुमार सिंह