सलमान खान के फैन हैं तो जरूर देखें वरना नहीं!
Ratings- 2*
बेहद कमजोर स्टोरी लाइन है इस फिल्म की। जो लोग सीरिया और उसके आसपास के देशों में चल रही आतंकी गतिविधियों के बारे में मीडिया में पढ़ते सुनते रहते हैं उन्हें इसमें कोई खास मजा नहीं आएगा। कुछ सच्ची घटनाओं से भी प्रेरणा ली गई है। फिल्म का मुख्य आधार आईएसआईएस (इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड सीरिया) नामक आतंकी संगठन को बनाया गया है। इस ग्रुप का एक आतंकी लीडर अमेरिकी हमले में घायल हो जाता है और अपना इलाज कराने के लिए सीरिया के एक अस्पताल में घुस जाता है और उस पर कब्जा कर लेता है। अस्पताल में 25 हिंदुस्तानी और 15 पाकिस्तानी नर्सें हैं जिन्हें बंधक बना लिया जाता है। एक नर्स भारतीय दूतावास में फोन कर देती है और भारत सरकार इसके लिए एक मिशन चलाने का फैसला करती है। भारत सरकार की एजैंसी रॉ के पास बस एक ही एजेंट है जो ऐसे काम कर सकता है। वो है टाइगर (सलमान)।
'एक था टाइगर' में सलमान अंत में गायब हो गए थे और रॉ के हाथ नहीं आए थे लेकिन वे ईमेल्स के जरिए अपने बॉस (गिरीश कर्नाड) के टच में लगातार थे। यही बताया गया है इस फिल्म में। इसी आधार पर उन्हें ढूंढा जाता है। टाइगर अब अपनी पाकिस्तानी बीवी जोया (कैटरीना) और बेटे के साथ किसी बर्फीले इलाके में रहता है। वहीं उसे ढूंढ लिया जाता है और मिशन पर भेज दिया जाता है। बाद में जोया भी पाकिस्तानी लड़कियों को बचाने के लिए इस मिशन में साथ हो जाती है। और इस तरह शुरू होता है भारत-पाकिस्तान का अद्भुत मिशन। देखिये उन लड़कियों को छुड़ाने के लिए कितना बचकाना प्लान बनाया जाता है। सभी तेल रिफाईनरी में मजदूर बनकर भर्ती होते हैं और एक नकली आग लगने का हादसा गढ़ते हैं जिसमें वे झुलस जाएं और फिर इलाज के लिए उन्हें उसी अस्पताल में ले जाया जाए जिसमें नर्स बंधक हैं। सब कुछ मजाक नजर आता है। बहरहाल मिशन पूरा होता है और अंत में टाइगर व जोया फिर गायब हो जाते हैं जिससे एक और सीक्वल बनाने के आप्शन खुले रहें। और अब तो फिल्म जमकर पैसा कमा रही है। ऐसे में तो इसका सीक्वल बनना लाजिमी है।
अगर फिल्म को रोमांचक ही बनाना था तो केवल अस्पताल में घुसने व फिर सबको बाहर निकालने की ही प्लॉटिंग की जानी चाहिए थी लेकिन निर्देशक-लेखक ने ऐसा ताना बाना बुना है कि आम आदमी तो समझ ही नहीं पाता कि हो क्या रहा है। बहरहाल दर्शक केवल इसलिए फिल्म देखते रहते हैं कि जब-जब सलमान खान स्क्रीन पर आते हैं तो कुछ रोमांचक होता है और बोरियत दूर हो जाती है। सलमान की फिल्मों में इमोशन बहुत अहम होते हैं लेकिन इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है। 'बजरंगी भाईजान' या फिर 'सुल्तान' वाली बात इसमें नहीं है। हां यह फिल्म 'ट्यूबलाइट' से बेहतर है और कई हफ्ते से लोग किसी बड़ी फिल्म को देखने के लिए तरस रहे थे और इसलिए इसे देख रहे हैं।
फिल्म का संगीत अच्छा है लेकिन गीतों का उपयोग सही नहीं किया जा सका है। एक गीत शुरू में ही आ जाता है इसका सबसे हिट गीत 'स्वैग से करेंगे स्वागत' अंत में टाइटल्स के साथ आता है। बाकी गीतों का पता नहीं क्या हुआ, वे कब आए और कैसे आए? सलमान और अली अब्बास जफर की जोड़ी ने 'सुल्तान' के रूप में ब्लॉकबस्टर दी थी लेकिन 'टाइगर जिंदा है' कहीं भी टिक नहीं पाती है उसके सामने। सलमान के लिए न इसमें इमोशन दिखाने का मौका था न कॉमेडी दिखाने का। एक्शन ही एक्शन है और वो भी ऐसा नहीं कि जो आपने पहले न देखा हो। इसे आप देख सकते हैं केवल सलमान के लिए। बाकी फिल्म में कुछ नहीं है।
-हर्ष कुमार सिंह
Ratings- 2*
'टाइगर जिंदा है' कई तरह की नजीर पेश करने की कोशिश करती है। इसमें संदेश दिया गया है कि यदि भारत और पाकिस्तान एक हो जाएं तो दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बन सकते हैं। अमेरिका से भी बड़ी। यही नहीं अगर दोनों देश एक होते और सचिन व अकरम एक ही टीम के लिए खेलते तो सारे विश्व कप इनके पास ही होते। यही नहीं एक जगह तो यह तक कह दिया गया है कि अगर हमारे सारे संगीतकार व गायक भी एक ही साथ गाया करते तो क्या बात होती। यही नहीं इसमें यह भी दिखाया गया है कि पाकिस्तानी आतंकियों को शरण नहीं देता बल्कि उसे यूं ही बदनाम किया जा रहा है। असली आतंकी तो अमेरिका है। वाह क्या बात है! एकदम नई सोच के साथ बनाई गई फिल्म है। पर जैसे-जैसे आप फिल्म देखते जाते हैं वैसे-वैसे आपको लगने लगता है कि यह तो पिछले कुछ साल में आई 'बेबी', 'एयरलिफ्ट', 'एजेंट विनोद' आदि की तरह ही एक मसाला फिल्म है। 'बेबी' और 'एयरलिफ्ट' तो बहुत ही कमाल की फिल्में थी। इसकी तुलना तो 'एजेंट विनोद' से ही सही रहेगी। अगर इस फिल्म में सलमान खान न होते तो गारंटी देता हूं कि यह फिल्म बाक्स आफिस पर पहले ही दिन ढेर हो जाती।
बेहद कमजोर स्टोरी लाइन है इस फिल्म की। जो लोग सीरिया और उसके आसपास के देशों में चल रही आतंकी गतिविधियों के बारे में मीडिया में पढ़ते सुनते रहते हैं उन्हें इसमें कोई खास मजा नहीं आएगा। कुछ सच्ची घटनाओं से भी प्रेरणा ली गई है। फिल्म का मुख्य आधार आईएसआईएस (इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड सीरिया) नामक आतंकी संगठन को बनाया गया है। इस ग्रुप का एक आतंकी लीडर अमेरिकी हमले में घायल हो जाता है और अपना इलाज कराने के लिए सीरिया के एक अस्पताल में घुस जाता है और उस पर कब्जा कर लेता है। अस्पताल में 25 हिंदुस्तानी और 15 पाकिस्तानी नर्सें हैं जिन्हें बंधक बना लिया जाता है। एक नर्स भारतीय दूतावास में फोन कर देती है और भारत सरकार इसके लिए एक मिशन चलाने का फैसला करती है। भारत सरकार की एजैंसी रॉ के पास बस एक ही एजेंट है जो ऐसे काम कर सकता है। वो है टाइगर (सलमान)।'एक था टाइगर' में सलमान अंत में गायब हो गए थे और रॉ के हाथ नहीं आए थे लेकिन वे ईमेल्स के जरिए अपने बॉस (गिरीश कर्नाड) के टच में लगातार थे। यही बताया गया है इस फिल्म में। इसी आधार पर उन्हें ढूंढा जाता है। टाइगर अब अपनी पाकिस्तानी बीवी जोया (कैटरीना) और बेटे के साथ किसी बर्फीले इलाके में रहता है। वहीं उसे ढूंढ लिया जाता है और मिशन पर भेज दिया जाता है। बाद में जोया भी पाकिस्तानी लड़कियों को बचाने के लिए इस मिशन में साथ हो जाती है। और इस तरह शुरू होता है भारत-पाकिस्तान का अद्भुत मिशन। देखिये उन लड़कियों को छुड़ाने के लिए कितना बचकाना प्लान बनाया जाता है। सभी तेल रिफाईनरी में मजदूर बनकर भर्ती होते हैं और एक नकली आग लगने का हादसा गढ़ते हैं जिसमें वे झुलस जाएं और फिर इलाज के लिए उन्हें उसी अस्पताल में ले जाया जाए जिसमें नर्स बंधक हैं। सब कुछ मजाक नजर आता है। बहरहाल मिशन पूरा होता है और अंत में टाइगर व जोया फिर गायब हो जाते हैं जिससे एक और सीक्वल बनाने के आप्शन खुले रहें। और अब तो फिल्म जमकर पैसा कमा रही है। ऐसे में तो इसका सीक्वल बनना लाजिमी है।
अगर फिल्म को रोमांचक ही बनाना था तो केवल अस्पताल में घुसने व फिर सबको बाहर निकालने की ही प्लॉटिंग की जानी चाहिए थी लेकिन निर्देशक-लेखक ने ऐसा ताना बाना बुना है कि आम आदमी तो समझ ही नहीं पाता कि हो क्या रहा है। बहरहाल दर्शक केवल इसलिए फिल्म देखते रहते हैं कि जब-जब सलमान खान स्क्रीन पर आते हैं तो कुछ रोमांचक होता है और बोरियत दूर हो जाती है। सलमान की फिल्मों में इमोशन बहुत अहम होते हैं लेकिन इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है। 'बजरंगी भाईजान' या फिर 'सुल्तान' वाली बात इसमें नहीं है। हां यह फिल्म 'ट्यूबलाइट' से बेहतर है और कई हफ्ते से लोग किसी बड़ी फिल्म को देखने के लिए तरस रहे थे और इसलिए इसे देख रहे हैं।
फिल्म का संगीत अच्छा है लेकिन गीतों का उपयोग सही नहीं किया जा सका है। एक गीत शुरू में ही आ जाता है इसका सबसे हिट गीत 'स्वैग से करेंगे स्वागत' अंत में टाइटल्स के साथ आता है। बाकी गीतों का पता नहीं क्या हुआ, वे कब आए और कैसे आए? सलमान और अली अब्बास जफर की जोड़ी ने 'सुल्तान' के रूप में ब्लॉकबस्टर दी थी लेकिन 'टाइगर जिंदा है' कहीं भी टिक नहीं पाती है उसके सामने। सलमान के लिए न इसमें इमोशन दिखाने का मौका था न कॉमेडी दिखाने का। एक्शन ही एक्शन है और वो भी ऐसा नहीं कि जो आपने पहले न देखा हो। इसे आप देख सकते हैं केवल सलमान के लिए। बाकी फिल्म में कुछ नहीं है।
-हर्ष कुमार सिंह