सचिन और क्रिकेट के दीवानों के लिए अनमोल तोहफा
अगर आप किसी परीक्षा में बैठने जा रहे हैं तो इस फिल्म को देख लीजिए। आपमें वो एनर्जी आ जाएगी जो किसी इम्तहान को पास करने के लिए जरूरी है।
यदि आप अपने दफ्तर में विपरीत हालात से गुजर रहे हैं परेशान हैं तो सचिन की ये फिल्म आपको दिक्कतों से निपटने के लिए जरूरी हौसला दे देगी।
अगर आप खिलाड़ी हैं और आपको लग रहा है कि आप के साथ इंसाफ नहीं हो रहा है या फिर खराब परफोर्मेंस से जूझ रहे हैं तो फिर ये फिल्म आपके लिए है।
और अगर आप क्रिकेट में दिलचस्पी नहीं रखते हैं या फिर क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले इस महान क्रिकेटर में आपकी दिलचस्पी कभी नहीं रही है तो फिर ये फिल्म आपके लिए नहीं है। पैसे खराब मत कीजिए।
सचिन तेंदुलकर ने 24 साल इंटरनेशनल क्रिकेट खेली। 100 से ज्यादा इंटरनेशनल शतक लगाए। इस दौरान देश में भी 10 प्रधानमंत्री बदले, देश बदला, क्रिकेट का स्वरूप बदला। देश ने न जाने कितने उतार चढ़ाव देखे। ऐसे में इस मास्टर ब्लास्टर की लाइफ पर अगर फिल्म बनाने की कोई सोचता है तो फिर इसे केवल डॉक्यूमेंट्री फार्म में ही बनाया जा सकता था। ऐसी ही फिल्म बनी भी है। ज्यादातर हिस्से ओरिजनल वीडियों को कंपाइल करके बनाए गए हैं और कई बार ऐसी फील आती है कि जैसे आप स्टार स्पोर्ट्स का सुपर स्टार सीरीज का कोई कार्यक्रम देख रहे हैं। लेकिन ए आर रहमान की धुनें और सचिन के निजी जीवन से जुड़े क्षणों का भावुक चित्रण फिल्म को फीचर फिल्म की फील देने में सफल रहता है। इस तरह की फिल्म की समीक्षा नहीं की जा सकती और न ही की जानी चाहिए।
फिल्म में ही इंग्लैंड के पूर्व कप्तान नासिर हुसैन कहते हैं- “सचिन तेंदुलकर पर स्लेजिंग (क्रिकेट के मैदान में होने वाली गाली गलौच) का असर कोई होने वाला नहीं है क्योंकि वे मैदान में खेल रहे 11 खिलाड़ियों की नहीं बल्कि करोड़ों लोगों की आवाज सुनते हैं।“ यही फिल्म का मूड है। यह फिल्म सचिन के फैंस के लिए है।
महान सचिन तेंदुलकर को अनगिनत सलामियां इस फिल्म में दी गई हैं। फिल्म सचिन के बचपन से शुरू होती है और उनकी रिटायरमेंट स्पीच तक जाती है लेकिन इसका मूल सचिन के उस ख्वाब मे छिपा है जो उन्होंने विश्व कप ट्राफी जीतने के लिए देखा था और जो 2011 में पूरा हुआ। फिल्म में सचिन ने बताया भी है कि 2003 के विश्व कप में उन्हें मैन आफ द सीरीज के रूप में सोने का बैट दिया गया था लेकिन उन्होंने उसे पैक करके रख दिया गया था क्योंकि जिस ट्राफी को वो जीतना चाहते थे वो बगल के ड्रैंसिंग रूम में आस्ट्रेलियाई टीम के पास थी। सब जानते हैं कि भारत फाइनल में कंगारुओं के हाथों पराजित हो गया था।
फिल्म में उन क्षणों को भी दिखाया गया है जिनमें सचिन ने अपने कैरियर के बुरे दिन देखे। सचिन ने फिल्म के जरिये शायद पहली बार अपनी पीड़ा बयान की है कि जब उन्हें पहली बार कप्तानी से हटाया गया था तो किसी ने उन्हें फोन करने की जहमत भी नहीं उठाई थी। फिल्म में यह भी संकेत दिए गए हैं कि अपने से काफी सीनियर अजहरुद्दीन को हटाकर जब सचिन को कप्तान बनाया गया था तो भारतीय टीम दो खेमों में बंट गई थी और सचिन को कप्तान के रूप में बहुत बुरे अनुभव से गुजरना पड़ा था। अजहर पर टीम में गुटबाजी कराने के आरोप भी अप्रत्यक्ष रूप से लगाए गए हैं। 2007 के विश्व कप से पहले जिस तरह से कोच चैपल ने भारतीय टीम के बैटिंग आर्डर का बदल दिया था उस पर भी विस्तार से रोशनी इसमें डाली गई है। ग्रेग चैपल के ओरिजिनल वीडियो दिखाए गए हैं जिसमें वे खुद हार की जिम्मेदारी न लेते हुए टीम के खराब खेल को दोषी ठहराते नजर आते हैं। यह फिल्म का सबसे शानदार हिस्सा है। यहीं बताया गया है कि 2007 में सचिन ने संन्यास के बारे में सोचना शुरू कर दिया था लेकिन इसी समय उनके पास उनके क्रिकेटिंग हीरो विव रिचर्ड्स का फोन आता है जो उन्हें खेलना जारी रखने के लिए कहते हैं। और इसके बाद का दौर उनके जीवन का सबसे सुनहरा दौर साबित हुआ, ये बात सब जानते हैं।
2011 के विश्व कप में जीत को सचिन ने अपने जीवन की सबसे शानदार पल बताया है और एक तरह से धोनी की फिल्म की तरह ये फिल्म भी यहीं खत्म हो जाती है। अंत में केवल कुछ अंश उनकी रिटायरमेंट स्पीच के हैं और फिर भारत रत्न का सम्मान। 2011 के विश्व कप के सेमीफाइनल में पाकिस्तान को हराने के बाद जब ड्रैसिंग रूम में कोच गैरी कर्सटन टीम को संबोधित कर रहे होते हैं उसका वीडियो भी आप पहली बार देखेंगे। कर्सटन कहते हैं कि आप लोग शायद सेलीब्रेट करना चाहते हैं लेकिन वे चाहते हैं आप सब लोग आराम करें फिर मुंबई में फाइनल के लिए सफर करें और दो दिन उसकी तैयारी करें। सेलीब्रेट करके समय खराब न करें। इस समय का सदुपयोग आराम करके करें। इस तरह के क्षण आपके रोंगटे खड़े कर देते हैं।
फिल्म में गीत संगीत की जो गुंजाइश थी वो केवल बैकग्राउंड संगीत तक ही सीमित है। ए आर रहमान ने तीन धुनें बनाई हैं जो फिल्म में शानदार तरीके से इस्तेमाल की गई हैं। फिल्म में समीक्षा करने लायक कुछ नहीं है लेकिन बताने के लायक बहुत कुछ है। बस यही कहना चाहूंगा कि अगर आप क्रिकेट के दीवाने हैं तो ये फिल्म आपके लिए है। जाएं और परिवार के साथ इसका आनंद लें आप निराश नहीं होंगे।
- हर्ष कुमार सिंह