Friday 26 May 2017

DEEP REVIEW: Sachin - A Billion Dreams *****


Rating: 5*
सचिन और क्रिकेट के दीवानों के लिए अनमोल तोहफा

अगर आप किसी परीक्षा में बैठने जा रहे हैं तो इस फिल्म को देख लीजिए। आपमें वो एनर्जी आ जाएगी जो किसी इम्तहान को पास करने के लिए जरूरी है।

यदि आप अपने दफ्तर में विपरीत हालात से गुजर रहे हैं परेशान हैं तो सचिन की ये फिल्म आपको दिक्कतों से निपटने के लिए जरूरी हौसला दे देगी।

अगर आप खिलाड़ी हैं और आपको लग रहा है कि आप के साथ इंसाफ नहीं हो रहा है या फिर खराब परफोर्मेंस से जूझ रहे हैं तो फिर ये फिल्म आपके लिए है।

और अगर आप क्रिकेट में दिलचस्पी नहीं रखते हैं या फिर क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले इस महान क्रिकेटर में आपकी दिलचस्पी कभी नहीं रही है तो फिर ये फिल्म आपके लिए नहीं है। पैसे खराब मत कीजिए।



सचिन तेंदुलकर ने 24 साल इंटरनेशनल क्रिकेट खेली। 100 से ज्यादा इंटरनेशनल शतक लगाए। इस दौरान देश में भी 10 प्रधानमंत्री बदले, देश बदला, क्रिकेट का स्वरूप बदला। देश ने न जाने कितने उतार चढ़ाव देखे। ऐसे में इस मास्टर ब्लास्टर की लाइफ पर अगर फिल्म बनाने की कोई सोचता है तो फिर इसे केवल डॉक्यूमेंट्री फार्म में ही बनाया जा सकता था। ऐसी ही फिल्म बनी भी है। ज्यादातर हिस्से ओरिजनल वीडियों को कंपाइल करके बनाए गए हैं और कई बार ऐसी फील आती है कि जैसे आप स्टार स्पोर्ट्स का सुपर स्टार सीरीज का कोई कार्यक्रम देख रहे हैं। लेकिन ए आर रहमान की धुनें और सचिन के निजी जीवन से जुड़े क्षणों का भावुक चित्रण फिल्म को फीचर फिल्म की फील देने में सफल रहता है। इस तरह की फिल्म की समीक्षा नहीं की जा सकती और न ही की जानी चाहिए।

फिल्म में ही इंग्लैंड के पूर्व कप्तान नासिर हुसैन कहते हैं- “सचिन तेंदुलकर पर स्लेजिंग (क्रिकेट के मैदान में होने वाली गाली गलौच) का असर कोई होने वाला नहीं है क्योंकि वे मैदान में खेल रहे 11 खिलाड़ियों की नहीं बल्कि करोड़ों लोगों की आवाज सुनते हैं।“ यही फिल्म का मूड है। यह फिल्म सचिन के फैंस के लिए है।

महान सचिन तेंदुलकर को अनगिनत सलामियां इस फिल्म में दी गई हैं। फिल्म सचिन के बचपन से शुरू होती है और उनकी रिटायरमेंट स्पीच तक जाती है लेकिन इसका मूल सचिन के उस ख्वाब मे छिपा है जो उन्होंने विश्व कप ट्राफी जीतने के लिए देखा था और जो 2011 में पूरा हुआ। फिल्म में सचिन ने बताया भी है कि 2003 के विश्व कप में उन्हें मैन आफ द सीरीज के रूप में सोने का बैट दिया गया था लेकिन उन्होंने उसे पैक करके रख दिया गया था क्योंकि जिस ट्राफी को वो जीतना चाहते थे वो बगल के ड्रैंसिंग रूम में आस्ट्रेलियाई टीम के पास थी। सब जानते हैं कि भारत फाइनल में कंगारुओं के हाथों पराजित हो गया था।

फिल्म में उन क्षणों को भी दिखाया गया है जिनमें सचिन ने अपने कैरियर के बुरे दिन देखे। सचिन ने फिल्म के जरिये शायद पहली बार अपनी पीड़ा बयान की है कि जब उन्हें पहली बार कप्तानी से हटाया गया था तो किसी ने उन्हें फोन करने की जहमत भी नहीं उठाई थी। फिल्म में यह भी संकेत दिए गए हैं कि अपने से काफी सीनियर अजहरुद्दीन को हटाकर जब सचिन को कप्तान बनाया गया था तो भारतीय टीम दो खेमों में बंट गई थी और सचिन को कप्तान के रूप में बहुत बुरे अनुभव से गुजरना पड़ा था। अजहर पर टीम में गुटबाजी कराने के आरोप भी अप्रत्यक्ष रूप से लगाए गए हैं। 2007 के विश्व कप से पहले जिस तरह से कोच चैपल ने भारतीय टीम के बैटिंग आर्डर का बदल दिया था उस पर भी विस्तार से रोशनी इसमें डाली गई है। ग्रेग चैपल के ओरिजिनल वीडियो दिखाए गए हैं जिसमें वे खुद हार की जिम्मेदारी न लेते हुए टीम के खराब खेल को दोषी ठहराते नजर आते हैं। यह फिल्म का सबसे शानदार हिस्सा है। यहीं बताया गया है कि 2007 में सचिन ने संन्यास के बारे में सोचना शुरू कर दिया था लेकिन इसी समय उनके पास उनके क्रिकेटिंग हीरो विव रिचर्ड्स का फोन आता है जो उन्हें खेलना जारी रखने के लिए कहते हैं। और इसके बाद का दौर उनके जीवन का सबसे सुनहरा दौर साबित हुआ, ये बात सब जानते हैं।

2011 के विश्व कप में जीत को सचिन ने अपने जीवन की सबसे शानदार पल बताया है और एक तरह से धोनी की फिल्म की तरह ये फिल्म भी यहीं खत्म हो जाती है। अंत में केवल कुछ अंश उनकी रिटायरमेंट स्पीच के हैं और फिर भारत रत्न का सम्मान। 2011 के विश्व कप के सेमीफाइनल में पाकिस्तान को हराने के बाद जब ड्रैसिंग रूम में कोच गैरी कर्सटन टीम को संबोधित कर रहे होते हैं उसका वीडियो भी आप पहली बार देखेंगे। कर्सटन कहते हैं कि आप लोग शायद सेलीब्रेट करना चाहते हैं लेकिन वे चाहते हैं आप सब लोग आराम करें फिर मुंबई में फाइनल के लिए सफर करें और दो दिन उसकी तैयारी करें। सेलीब्रेट करके समय खराब न करें। इस समय का सदुपयोग आराम करके करें। इस तरह के क्षण आपके रोंगटे खड़े कर देते हैं।


फिल्म में गीत संगीत की जो गुंजाइश थी वो केवल बैकग्राउंड संगीत तक ही सीमित है। ए आर रहमान ने तीन धुनें बनाई हैं जो फिल्म में शानदार तरीके से इस्तेमाल की गई हैं। फिल्म में समीक्षा करने लायक कुछ नहीं है लेकिन बताने के लायक बहुत कुछ है। बस यही कहना चाहूंगा कि अगर आप क्रिकेट के दीवाने हैं तो ये फिल्म आपके लिए है। जाएं और परिवार के साथ इसका आनंद लें आप निराश नहीं होंगे।



- हर्ष कुमार सिंह

Friday 19 May 2017

Full Text of Sachin Tendulkar's interview

करोड़ों देशवासियों को समर्पित है 'सचिन-ए बिलियन ड्रीम्स' : सचिन तेंदुलकर 

दिनांकः 19 मई 2017
स्थानः होटल आईटीसी मौर्य, नई दिल्ली
समयः शाम 6.30 बजे


''कोई भी खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर बन सकता है। बस उसे फोकस करना चाहिए अपने वर्तमान पर। अतीत की विफलताओं को भुलाकर नए लक्ष्य निर्धारित करें, मेहनत करें और इसके बाद सफलता आपको खुद फॉलो करेगी।"
ये प्रेरक शब्द हैं महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर के नए क्रिकेटरों के लिए।
सचिन अपने जीवन पर बनी फिल्म 'सचिन-ए बिलियन ड्रीम्स' के सिलसिले में 'नवोदय टाइम्स/पंजाब केसरी' से बात कर रहे थे। 26 मई को रिलीज होने जा रही इस फिल्म का निर्देशन जेम्स एरस्कीन ने किया है और संगीत दिया है ए आर रहमान ने। भारत रत्न सचिन तेंदुलकर और फिल्म के निर्माता रवि भागचंदका ने इस फिल्म से जुड़े कई दिलचस्प पहलू शेयर किए:-

जो मिला मां- बाप के आशीर्वाद से
सचिन ने बताया कि वे आज जो कुछ भी हैं वह सब कुछ माता-पिता का आशीर्वाद व भगवान की देन है। बचपन से ही घर में ऐसा माहौल मिला कि किसी और चीज के बारे में सोचने की जरूरत ही नहीं पड़ी। घर में हर समय क्रिकेट का ही जिक्र रहता था। बस खेलना और सिर्फ खेलना। घर पर इतना क्रिकेटिंग माहौल रहा कि कभी बैंक अकाउंट की बात नहीं होती थी। बस मां-पिताजी सब यही पूछते थे कि कितने रन बनाए, कितने विकेट लिए? सचिन का कहना है कि उनके घर में सबका एक ही मंत्र था- अप और डाउन की भूल जाओ। पिछले मैच में क्या हुआ इसकी मत सोचा बल्कि अगले मैच में क्या करना है इसकी योजना बनाओ।

अंजलि का योगदान भी अद्भुत
सचिन का 24 साल लंबा क्रिकेट करियर 13 साल की उम्र से ही शुरू हो गया था। सचिन बताते हैं कि 13 साल की उम्र में ही अंडर 15 के नेशनल कैंप के लिए उनका चयन हो गया था और उसके बाद यह सफर रिटायरमेंट मैच पर ही जाकर थमा। सचिन के अनुसार, जहां उनके शुरूआती करियर में माता-पिता व भाई-बहन को योगदान अहम रहा वहीं इंटरनेशनल क्रिकेट खेलते समय उनकी पत्नी अंजलि का योगदान महत्वपूर्ण रहा। अंजलि गोल्ड मैडलिस्ट डॉक्टर हैं और उनका अपना भी करियर था लेकिन मेरे खेल और क्रिकेट के प्रति जुनून को देखते हुए उन्होंने अपने करियर की परवाह नहीं की और घर-परिवार की सारी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया।

जीवन में एक हीरो का होना जरूरी
44 वर्षीय सचिन तेंदुलकर का मानना है कि आप किसी भी फील्ड से हों लेकिन आपके लिए अपना एक हीरो होना जरूरी है। हो सकता है कि आज के बच्चे सचिन तेंदुलकर बनना चाहते हों लेकिन जब वे खेलते थे तो उनके आदर्श महान सुनील गावस्कर व विव रिचर्ड्स हुआ करते थे। गावस्कर की ठोस बल्लेबाजी और विव रिचर्ड्स की आक्रामकता का मिश्रण उन्होंने अपने खेल में लाने की हमेशा कोशिश की। उभरते हुए खिलाडिय़ों के लिए बहुत ही जरूरी टिप्स देते हुए सचिन ने कहा कि विफलता के भय को बिल्कुल दिमाग से बाहर निकाल दें। अगर दिल से क्रिकेट निकल रही है तो खेलो वरना इसका ख्याल दिमाग से निकाल दो। 


जीवन की दूसरी इनिंग के भी बनाए हैं लक्ष्य
एक सवाल के जवाब में सचिन ने कहा कि क्रिकेट करियर की इनिंग उनके रिटायरमेंट मैच के साथ ही खत्म गई थी अब वे अपनी दूसरी इनिंग खेल रहे हैं। जिस देश ने उन्हें इतना प्यार व सम्मान दिया है उसके बदले वे भी देश को बहुत कुछ देना चाहते हैं। उन्होंने अपनी फिल्म का पहला शो भी देश के सैनिकों के लिए आयोजित किया है। सचिन बताते हैं कि वे यूनिसेफ से जुड़े हुए हैं। एक गांव भी गोद लिया हुआ है और अब दूसरा लेने की तैयारी है। इसके अलावा स्प्रैडिंग हैप्पीनेस के नाम से एक अभियान से भी वे जुड़ गए हैं। इसका लक्ष्य उन वंचित लोगों की सहायता करना है जो बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं से भी दूर हैं। सचिन का कहना है कि यह दूसरी इनिंग वे आत्म संतुष्टि के लिए खेलना चाहते हैं।


आज की भारतीय टीम की बैंच स्ट्रैंथ कमाल की देश में अगला सचिन कौन हो सकता है, इस सवाल के जवाब में सचिन का कहना था कि भारतीय क्रिकेट टीम इस समय एक से एक खिलाडिय़ों से भरी पड़ी है। अगर मैदान में खेल रही एकादश मजबूत है तो बाहर बैंच पर बैठे खिलाड़ी भी कमजोर नहीं हैं। किसी भी खिलाड़ी को चोट लगती है तो उसकी जगह लेने के लिए एक से एक क्रिकेटर बाहर तैयार बैठे हैं। उन्होंने जून में चैंपिंयस ट्राफी के लिए जा रही टीम को बहुत ही संतुलित भी बताया।

असली वीडियो हैं फिल्म का हिस्सा 
सचिन ने बताया कि इस फिल्म में उनके जीवन के कुछ असली वीडियो भी शामिल किए गए हैं जिन्हें उन्होंने अपने परिवार के लोगों के साथ सलाह मशविरा करने के बाद चुना है। सचिन ने कहा कि उनके जीवन की तीन टीमें रही हैं। एक घर पर, दूसरी ड्रैसिंग रूम में और तीसरी लाखों-करोड़ो वो लोग जो उन्हें चाहते व प्यार करते हैं। यह फिल्म उन्हीं को वे समर्पित करना चाहते हैं।

'पंजाब केसरी' के लिए पंजाब का किस्सा
कई गंभीर मुद्दों पर बेबाकी व दिल से जवाब देने के बीच सचिन तेंदुलकर ने एक दिलचस्प किस्सा भी सुनाया। उन्होंने कहा कि 'पंजाब केसरी' से बात कर रहा हूं तो किस्सा भी पंजाब का ही सुनाता हूं। सचिन ने बताया कि 1994 में हम लोग पंजाब में खेल रहे थे तो हरभजन सिंह(भज्जी) वहां भारतीय टीम के लिए नेट्स पर गेंदबाजी करने के लिए आए हुए थे। वे कोई भी शाट मारते तो कुछ ही देर में भज्जी उनके सामने आकर खड़े हो जाते थे। मैं पूछता था कि क्या बात है तो भज्जी पूछते थे कि आपने ही तो बुलाया है। दरअसल सचिन को बार-बार अपना हेलमेट ठीक करने के लिए गर्दन ऊपर नीचे हिलाने की आदत थी और वहां फील्ड में मौजूद भज्जी को लग रहा था कि वे शायद उन्हें बुला रहे हैं।

(यह इंटरव्यू पंजाब केसरी जालंधर, नवोदय टाइम्स नई दिल्ली, जगबानी (पंजाबी) हिंद समाचार (उर्दू) के 21 मई 2017 के अंकों में छपा।)