Friday 5 February 2016

DEEP REVIEW: Ghayal once again - But don’t expect another Ghayal

सनी के फैन हैं तो जरूर देखें पर फिर से ‘घायल’ की उम्मीद न करें 

RATING- 2*

25 साल पहले आई ‘घायल’ अगर आपने देखी है तो आप उसकी एनर्जी, डायरेक्शन के लेवल, कलाकारों के दमदार अभिनय से अब तक जरुर जुड़े हुए होंगे। जब वह फिल्म आई तो उसने बाकी सभी फिल्मों को बौना साबित कर दिया था। 11 फिल्मफेयर पुरस्कार जीतकर इस फिल्म ने कामयाबी के झंडे गाड़ दिए थे। सनी देयोल के कैरियर की ट्रेड मार्क माइलस्टोन फिल्म ‘घायल’ के अलावा कोई दूसरी नहीं है। शायद यही वजह है कि बढ़ती उम्र के इस दौर में खुद को फिर से रिइस्टेबलिश करने के लिए सनी ने ‘घायल’ को हथियार बनाते हुए कम बैक करने की कोशिश की है।

अब घायल के निर्देशक राजकुमार संतोषी में भी वो बात नहीं रही और न ही वे ऐसी फिल्में बना रहे हैं। शायद इसलिए सनी ने डायरेक्शन का भी जिम्मा अपने ऊपर ले लिया। वैसे ये कोई पहला मौका नहीं है जब सनी ने निर्देशन किया है। करीब 15 साल पहले सनी ने ‘दिल्लगी’ बनाई थी जिसमें वे खुद, भाई बॉबी देयोल व उर्मिला मातोंडकर थे। फिल्म चली नहीं थी। वैसे आज आप ‘दिल्लगी’ देखेंगे तो ये आपके दिल को छू जाएगी। रोमांस से भरपूर व बिना एक्शन की इस फिल्म का आपको सब कुछ अच्छा लगेगा लेकिन चूंकि उस समय सनी देयोल एक्शन फिल्मों के बेताज बादशाह हुआ करते थे इसलिए दर्शकों ने उन्हें ऐसी फिल्म में नकार दिया था। अब खुद को व अपने बैनर ‘विजेता फिल्म्स’ की कमबैक कराने के लिए सनी ने फिर एक्शन की राह पकड़ी है और इस फिल्म में एक्शन ही एक्शन है।

25 साल पहले आई ‘घायल’ और अब ‘घायल वंस अगेन’ में एक पूरी पीढ़ी का अंतर आ गया है इसलिए फास्ट टेक्नोलोजी और यंग जनरेशन के प्रतिनिधि किरदारों का फिल्म में भरपूर इस्तेमाल किया गया है। चार युवा एक बड़े कारोबारी के बिगडैल बेटे की एक हत्या करते हुए वीडियो फुटेज अनायास ही हासिल कर लेते हैं। फुटेज हासिल करने के लिए कारोबारी अपनी पूरी ताकत लगा देता है और सारा सरकारी सिस्टम उसके बेटे को बचाने के लिए लग जाता है। उसकी मुश्किल उस समय बढ़ जाती है जब ये बच्चे एक सच्चे पत्रकार अजय मेहरा (सनी) की मदद लेते हैं। फिल्म के पहले हाफ में ये बच्चे उस फुटेज को अजय तक पहुंचाने के लिए जिस हिम्मत का परिचय देते हैं वो देखने वाला है। कम से कम एक घंटे तक चेज होती है जो बहुत ही रोमांचक तरीके से फिल्माई गई है। फिल्म कमजोर पड़ती है दूसरे हाफ में। पुरानी घायल से इस घायल को जोड़ने के लिए बार-बार इस्तेमाल किए गए फ्लैश बैक फिल्म को वीक बनाते हैं। उस समय तो फिल्म लगभग ढेर ही हो जाती है जब इन चार बच्चों में से एक लड़की सनी की बेटी निकल आती है। जहां पहले फिल्म ये सिखाने की कोशिश कर रही थी कि सच्चाई हर रिश्ते नाते संबंध से बड़ी होती है वहीं अंत में ये फिल्म केवल एक ही ढर्रे पर चल निकलती है कि मां-बाप के लिए औलाद से प्यारा कोई नहीं होता। सनी अपनी बेटी को बचाने के लिए विलेन के घर में हेलीकाप्टर लेकर घुस जाते हैं। एक्शन होता है और सनी सबको मार-पीटकर जीत हासिल करने में सफल होते हैं।

अगर आप सनी देयोल के फैन हैं तो ये फिल्म आपके लिए है। इसमें झुर्रियों से भरे चेहरे वाले सनी देयोल हैं जो समय-समय पर अपने पुराने तेवर में नजर आते दिखते हैं लेकिन ये कहना होगा कि सनी देयोल अभिनेता से बेहतर अच्छे डायरेक्टर हैं। कई बार वे अपनी निर्देशन क्षमता से प्रभावित करते हैं। फिल्म में शुरू में कथानक बहुत ही उलझे हुए तरीके से शुरू होता है लेकिन बाद में फिल्म एक ही पटरी पर दौड़ने लगती है। बस आप देखते जाइये, एक्शन होता रहता है और फिल्म कब खत्म हो जाती है पता ही नहीं चलता। सनी फिल्म में गति बनाने में सफल रहते हैं लेकिन पुरानी घायल से जुड़े किस्से फ्लैश बैक में दिखाने के चक्कर में वे फिल्म में बाधा खड़ी करते हैं।

ओम पुरी एकमात्र किरदार हैं जो पुरानी व नई घायल में कॉमन हैं। घायल में वे एक ऐसे पुलिस अफसर बने थे जो अजय मेहरा की मदद करता है। वे पुलिस की नौकरी छोड़ने के बाद आरटीआई एक्टिविस्ट के रूप में सक्रिय दिखाए गए हैं। लगता है कि वे कोई बड़ा खुलासा करेंगे और फिल्म आगे बढ़ेगी, लेकिन उन्हें मार दिया जाता है और फिर बदले की कहानी शुरू हो जाती है। शुरू में सनी अपने ‘आदर्श दोस्त’ ओम पुरी के लिए लड़ते हैं और फिर अपनी बेटी के लिए।

फिल्म में गीत-संगीत बिल्कुल नहीं है। जरूरत भी नहीं थी। बैकग्राउंड संगीत की ही जरूरत थी और उस पर काफी काम हुआ है। पुरानी घायल के बैकग्राउंड म्यूजिक की छाप लगातार इस पर बनी रहती है। एक्शन कुछ जगह पर जोरदार है। खासतौर से बच्चों के पीछे विलेन की फौज जिस तरह से टूट पड़ती है वो सीन जोरदार तरीके से शूट किया गया है। अलबत्ता एक्शन में एक कमी खलती है कि सनी देयोल कभी भी पुराने तेवर में नहीं दिखाए गए हैं। लगता है कि अब सनी देयोल का एक्शन होगा, अब सनी ढाई किलो का हाथ उठाएंगे लेकिन ऐसा होता नहीं। क्लाइमैक्स में वे जिस तरह से हेलीकाप्टर हाईजैक कर विलेन के घर में घुसते हैं वो बचकाना सा लगता है। यहां जोरदार एक्शन की गुंजाइश थी लेकिन चूक गए हैं।

बहरहाल सनी ने अपनी उम्र के हिसाब से किरदार प्ले करने का प्रयास किया है और वे सहज लगते हैं। ‘यमला पगला दीवाना’ जैसी बेहूदा कॉमेडी फिल्में उन पर नहीं जंचती हैं। थोड़ा वजन भी उनका ज्यादा बढ़ गया है उन्हें अपने समकालीन अनिल कपूर से सबक लेना चाहिए। फिल्म में विलेन राज बंसल के रूप में नरेंद्र झा ने जोरदार काम किया है। वैसे अनजाने में फिल्म एक सबक दे जाती है कि अगर जरूरत पड़े तो बच्चों को प्यार के साथ दो चार तमाचे भी लगा देने चाहिए नहीं तो वे बिगड़ जाते हैं और बेकाबू हो जाते हैं।

- हर्ष कुमार