Friday 3 June 2016

DEEP REVIEW: Housefull3

कम से कम एक बार तो देखी ही जा सकती है 'हाउसफुल 3'
RATING- 3*


'हाउसफुल-3' एक माइंडलैस कॉमेडी है। यानी दिमाग घर पर रखकर जाएं। ऐसा लगता है कि कॉमेडी फिल्मों की फ्रेंचाइजी  फिल्मकारों के लिए फायदे का सौदा साबित होती हैं। हाउसफुल पर तीन फिल्में बन चुकी हैं। इसके अलावा वेलकम, ग्रैंड मस्ती, गोलमाल सीरीज की भी कई फिल्में बन चुकी हैं। इन फिल्मों में निर्माताओं को सीमित निवेश में अच्छा खासा लाभ मिल जाता है और इसलिए इन फिल्मों में कहानी की कोई ज्यादा गुंजाइश नहीं होती। इन फिल्मों की सबसे खास बात ये होती है कि इनकी स्टार कास्ट भी जल्द ही फाइनल हो जाती है। जो कलाकार पहले की फिल्मों में काम कर चुके होते हैं उन्हें एकाध बदलाव के साथ अगली फिल्म में भी काम मिल जाता है। 'हाउसफुल' में अक्षय कुमार, जैकलीन फर्नांडीज, रीतेश देशमुख पहले से ही काम करते रहे हैं। अब अभिषेक बच्चन, लीजा हेडन व नरगिस फाखरी को भी जोड़ दिया गया। बोमन ईरानी तो स्थायी हैं ही। कुल मिलाकर कहने का मतलब ये है कि ये फिल्में केवल पैसा कमाने के लिए बनाई जाती हैं और लगता है कि 'हाउसफुल 3' भी पैसा कमा ही लेगी।

फिल्म में कई सीन ऐसे हैं जिन पर लोग खूब हंसते हुए नजर आते हैं। निर्देशक जोड़ी साजिद-फरहाद ने खुद ही कहानी व डायलाग लिखे हैं। लेखन का काम उन्होंने वैसा ही किया है जैसा कि इस तरह की फिल्मों के लिए जरूरी होता है। खासतौर से अंग्रेजी के शब्दों को हिंदी में अनुवाद करके डायलाग बना देने का अंदाज खास पसंद आएगा दर्शकों को। उदाहरण के तौर पर- सम टाइम बैक को घड़ी के पीछे, किक माई ऐस की जगह मेरे गधे पर मारो जैसे शब्दों का इस्तेमाल सभी कलाकारों से जमकर कराया गया है और लोग खूब हंसते हैं। फिल्म में अंग्रेजी का इस्तेमाल कुछ ज्यादा ही हुआ है। यहां तक की तीनों हिरोईन तो 90 प्रतिशत समय अंग्रेजी में ही बात करती नजर आती हैं।ऐसे में इस फिल्म में मल्टीप्लैक्स की आडियंस के लिए तो बहुत कुछ है लेकिन सिंगल स्क्रीन के लिए कुछ ज्यादा नहीं है। फिल्म में एक्शन बिल्कुल नहीं है। क्लाइमैक्स में कुछ एक्शन की गुंजाइश थी लेकिन डायरेक्टर ने वैक्स म्यूजियम का सीन डालकर उसकी संभावनाओं को कम कर दिया। उनकी लक्ष्य लोगों को हंसाने का था और उसमें वे सफल रहे हैं।
फिल्म की कहानी लंदन के रईस बटुक (बोमन ईरानी) की तीन बेटियों गंगा, जमुना व सरस्वती (जैकलीन, लीजा और नरगिस) की है। तीनों अपने प्रेमियों (अक्षय कुमार, रीतेश और अभिषेक) से शादी करना चाहती हैं लेकिन बटुक, जो वास्तव में उनका पिता नहीं है, चाहता है वे तीनों उसके तीन बेटों से शादी करे जिससे वह उनके असली पिता व अंडरवल्र्ड डॉन ऊर्जा नागरे (जैकी श्राफ) की सारी संपत्ति हड़प सके। नागरे ने पुलिस के हाथों गिरफ्तार होने के बाद बटुक को अपनी बेटियों के साथ बचपन में ही लंदन भेज दिया था। वे तीनों बटुक को ही अपना पिता मानती थीं। अंत में नागरे जेल से छूटकर लंदन ही पहुंच जाता है। बटुक की पोल खुलती है और बाप को बेटियां व बेटियों को उनके प्रेमी मिल जाते हैं। इससे पहले बोमन का बेवकूफ बनाने के लिए तीनों हीरो उसकी बेटियों की सहमति से अंधा (रीतेश), लंगड़ा (अक्षय) और गूंगा (अभिषेक) बनकर आते हैं और खूब कॉमेडी होती है।
वैसे फिल्म कहानी के फ्रंट पर बहुत कमजोर है लेकिन फिल्म को संवाद अच्छे मिल गए हैं और सारी भरपाई हो जाती है। कुछ कमजोरियां भी हैं। जैसे- पहले ही सीन में तीन नकाबपोश लंदन में हीरों की चोरी करते हुए दिखाए जाते हैं। ये सीन काफी लंबा है और बहुत ही स्टाइलिश है। सब समझते हैं कि शायद ये तीनों नायक ही हैं लेकिन निकलते हैं बटुक के खलनायक टाइप बेटे। ये बात समझ में नहीं आती कि फिल्म के पहले ही सीन में इन तीनों को नायकों की तरह से क्यों दिखाया गया जबकि उन्हें इंटरवल के समय जेल से बाहर आते हुए ही वापस दिखाया जाना था। उन्हें जेल ही भेजा जाना था तो किसी भी मामले में भेजा जा सकता था, या पहले से ही जेल में दिखाया जा सकता था। केवल उन्हें खलनायक दिखाने के लिए शायद यह सीन क्रिएट किया गया।

फिल्म में जिस तरह से कलाकारों की भीड़ है उसमें सबके लिए करने को बहुत ही सीमित संभावनाएं थी। फिर भी जिस तरह से कलाकारों को मौके दिए गए हैं उससे लगता है कि अक्षय कुमार व जैकलीन की जोड़ी निर्माता-निर्देशक की फेवरेट रही। अक्षय तो खैर बड़े स्टार हैं ही, उन्हें ज्याादा स्पेस मिलना ही था। उनके किरदार को दो तरह की पर्सनेलिटी (सैंडी और सुंडी) में तब्दील करके उनके लिए गुंजाइश बढ़ा दी गई और अक्षय ने मौके का पूरा फायदा भी उठाया। खासतौर से सुंडी के किरदार में उन्होंने मजा लगा दिया।
हिरोईनों में जैकलीन को ज्यादा तवज्जो दी गई है। वह 'हाउसफुल' के हर भाग में रही हैं इसलिए उन्हें मेन रोल में रखा गया। वैसे जैकलीन ने मौके का फायदा भी खूब उठाया। वे तीनों हिरोइनों में सबसे ज्यादा आकर्षक भी लगी हैं। उन्होंने अपने अभिनय, नृत्य व हाव-भाव सभी में सुधार दिखाया है। वे आत्मविश्वास से लबरेज हैं और उनमें बड़ी स्टार बनने के तमाम गुण मौजूद हैं। फिल्म देखने के बाद ये साफ हो गया कि क्यों नरगिस फाखरी निर्माता से नाराज हो गई और प्रमोशन में बहुत कम नजर आई। उनका रोल बहुत ही कम है। गानों में भी जैकलीन को हाईलाइट किया गया है। दूसरे कलाकारों में अभिषेक व रीतेश ने अच्छी कॉमिक टाइमिंग दिखाई है। अभिषेक ने पहली बार कॉमेडी की कोशिश की है और वे अच्छी खासी कॉमेडी कर लेते हैं। नरगिस व लीजा के लिए करने को कुछ था ही नहीं और न ही उन्होंने कुछ करने की कोशिश की है। कुछ स्थानों पर हिरोइनों के मेकअप में खामियां नजर आती हैं। चेहरे पर पिंपल तक साफ नजर आ जाते हैं। लीजा के लिप कलर तक कई बार उड़े व खराब तरीके से लगे नजर आते हैं। ये कमियां मल्टीप्लैक्स आडियंस आसानी से पकड़ लेती है। 
गीत संगीत अच्छा है। कोई भी गीत बहुत बड़ा हिट नहीं है लेकिन दो गीत ठीक-ठाक हैं और देखते समय सुनने में भी अच्छे लगते हैं। फिल्म का मकसद सबको हंसाना था और इसमें ये सफल रहती है।  फिल्म में अगर रीतेश देशमुख के कुछ डबल मीनिंग संवादों को छोड़ दिया जाए तो ये एक फैमिली फिल्म है और एक बार परिवार के साथ वीकएंड पर देखी जा सकती है। 


- हर्ष कुमार सिंह