Friday 20 July 2018

DEEP REVIEW : Dhadak

जहानवी कल की सुपर स्टार, पर पहली फिल्म का चुनाव सही नहीं
जहानवी व ईशान को भविष्य उज्जवल है। ईशान नेचुरल हैं वे बियोंड द क्लाउड्स में पहले ही खुद को साबित कर चुके हैं। और जहानवी तो पैदाईशी स्टार हैं ही। आज नहीं तो कल वे अपना स्थान बना ही लेंगी। पर मेरा मानना है कि उन्हें लांच करने के लिए यह कहानी सही नहीं थी। एक दो फिल्में करने के बाद वे इस तरह का रोल करती तो बेहतर होता।  
Rating: 2*

अगर आपने 'सैराट' देखी है तो यह फिल्म आपके लिए नहीं है। जिन लोगों ने मराठी भाषा की वह सुपर हिट फिल्म देख ली है उन्हें 'धड़क' नहीं धड़काएगी। यह बात शायद करण जौहर व शशांक खेतान भी जानते थे और इसलिए उन्होंने फिल्म के क्लाइमैक्स में बदलाव कर दिया। पर मेरा मानना है कि 'धड़क' का क्लाइमैक्स हिंदी भाषी दर्शकों को नहीं पसंद आएगा। अगर 'सैराट' वाले क्लाइमैक्स को ही रिपीट कर दिया जाता तो ज्यादा सही रहता। 'धड़क' का क्लाइमैक्स बिल्कुल भी हजम नहीं होता है। जहां 'सैराट' में लोग सन्न रह जाते थे वहीं 'धड़क' में वे निराश व ठगा हुआ महसूस करते हैं।


यहां एक सवाल बोनी कपूर से पूछना चाहूंगा कि उन्होंने जहानवी को लांच करने के लिए 'सैराट' का रीमेक क्यों चुना? जहानवी में ग्लैमर है और वे स्टार मैटीरियल है। जबकि 'सैराट' की हिरोईन एक साधारण घरेलू लड़की थी। जहानवी चूंकि सुपर स्टार मां श्रीदेवी की बेटी है तो उनके लिए पूरी टीम तैयार थी। मेकअप से लेकर उनकी कास्ट्यूम तक में स्टारडम नजर आता है। लीड स्टार के रूप में ईशान खट्टर तो एकदम सही चुनाव हैं, क्योंकि वे साधारण गली ब्वॉय नजर आते हैं, लेकिन जहानवी बिल्कुल भी एक आम लड़की नहीं लगती। जहानवी के लिए तो 'स्टूडेंट आफ द ईयर' या फिर 'जब वी मेट' जैसी कोई रोमांटिक फिल्म बनाई जानी चाहिए थी। दिल की बात कहूं तो जहानवी के साथ अन्याय हुआ है। करण को उनके लिए कोई मॉडर्न लव स्टोरी बनानी चाहिए थी, आलिया भट्ट की तरह। ग्लैमरस रोल मिलता तो जहानवी हंगामा कर देती। अब तक जहानवी को सोशल मीडिया पर लोगों ने जिम में आते-जाते खूब देखा था। जिम आउटफिट में वे बेहद आकर्षक नजर आती थी लेकिन 'धड़क' में वे 'गर्ल टू नेक्स्ट डोर' बना दी गई। राजस्थानी भाषा बोलते हुए वे अजीब लगती है। उनके मुकाबले ईशान सहज रहे।
फिल्म की कहानी तो आप जानते ही होंगे। पार्थवी (जहानवी) बड़े घर व ऊंची जाति की लड़की है और मधुकर (ईशान) छोटी जाति व साधारण घर का लड़का। दोनों में प्यार हो जाता है जो पार्थवी के परिवार को मंजूर नहीं। दोनों विरोध के बीच घर से भाग जाते हैं ओर कोलकाता जाकर घर बसा लेते हैं। बाकी फिल्म का अंत आपको बता दूंगा तो फिल्म एक बार देखने के लायक भी नहीं रहेगी।
फिल्म में एक नहीं कई खामियां हैं। फिल्म लगभग 5 साल का पीरियड कवर करती है। जहानवी के पिता रतन सिंह (आशुतोष राणा) चुनाव जीतते हैं और फिर अगला चुनाव हार जाते हैं। यानी कम से कम पांच साल बीतते हैं। जहानवी को पांच साल पहले आईफोन के बड़े मॉडल (जो 6 प्लस के बाद शुरू हुए) को यूज करते हुए दिखाया गया है जबकि उस समय आईफोन 5 ही आता था (छोटे साइज वाला)। शायद जहानवी को बड़े घर की बेटी दिखाने के चक्कर में निर्देशक इस बात को भूल गए। जहानवी को सुजुकी बाइक का आधुनिक मॉडल चलाते दिखाया गया जो पांच साल पहले लांच भी नहीं हुआ था।


शशांक खेतान का निर्देशन बहुत कमजोर है। फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी इसका संगीत है। सैराट के संगीत ने धूम मचा दी थी लेकिन 'धड़क' में तो हू ब हू कॉपी किया गया 'जिंगाट' गीत भी उत्तेजना नहीं पैदा कर पाया।
फिल्म की शुरुआत में जहानवी व ईशान के बीच रोमांस पनपने के जो सीन बनाए गए हैं वे बहुत ही बनावटी लगते हैं। (नोट: हो सकता है मुझसे उम्र में 20-25 साल छोटे युवाओं को वे अच्छे लगें। उम्र का फर्क हो सकता है।) फिल्म का टीनएज रोमांस दिल को नहीं छू पाया।



मुख्य कलाकारों के लिए मैं पहले ही काफी बता चुका हूं। जहानवी व ईशान को भविष्य उज्जवल है। ईशान नेचुरल हैं वे 'बियोंड द क्लाउड्स' में पहले ही खुद को साबित कर चुके हैं। और जहानवी तो पैदाईशी स्टार हैं ही। आज नहीं तो कल वे अपना स्थान बना ही लेंगी। पर मेरा मानना है कि उन्हें लांच करने के लिए यह कहानी सही नहीं थी। एक दो फिल्में करने के बाद वे इस तरह का रोल करती तो बेहतर होता।

वीकेंड में अगर आप फिल्म देखने के शौकीन हैं तो यह फिल्म आप एक बार देख सकते हैं और अगर नहीं देख पाते हैं तो अफसोस न करें, यह एक महान फिल्म नहीं है। केवल साधारण फिल्म है।

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- हर्ष कुमार सिंह

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