'निर्माता रनबीर कपूर' के कैरियर की 'मेरा नाम जोकर'
1. बतौर निर्माता रनबीर कपूर की यह पहली फिल्म है। सिद्धार्थ राय कपूर व अनुराग बसु भी सहयोगी निर्माता हैं। उनके साथ रनबीर पहले भी काम करते रहे हैं और इसलिए तीनों ने यह ज्वाइंट वेंचर बनाया है।
2. अनुराग बसु ने रनबीर के कैरियर की सबसे बेहतर फिल्म 'बर्फी' उन्हें दी थी। रनबीर उनके साथ एक और फिल्म करने के लिए बेताब थे भले ही वे कुछ भी बना दें। 'बर्फी' में अनुराग ने उन्हें गूंगा-बहरा बनाया था तो यहां हकला बना दिया।
3. फिल्म में कैटरीना कैफ केवल इसलिए हैं क्योंकि वे रनबीर की गर्लफ्रेंड हैं, नहीं तो कोई भी हिरोईन इस फिल्म को करने के लिए तैयार नहीं होती। यह कैटरीना की भूल है। उनके लिए फिल्म में कुछ था ही नहीं।
रनबीर कपूर इस दौर के सबसे बेहतरीन अभिनेता हैं इसमें कोई दोराय नहीं। वे कुछ भी करते हैं वो अलग ही होता है। अमिताभ बच्चन ने कहा था कि रनबीर बिना चेहरे पर हावभाव लिए एकटक देखते भी रहते हैं तो उसमें भी उनका अभिनय होता है। यह बात बिल्कुल सही भी है। वे स्ट्रेट फेस से भी अपनी बात कह देते हैं। उनमें ये मासूमियत भरी प्रतिभा अपने दादा राज कपूर से आई है। भोले आदमी के किरदार वे बखूबी निभाते थे और हसोड़ भी थे। बस गंभीरता के मामले में वे मात खा जाते थे। रनबीर ने 'पिक्चर शुरू' के नाम से अपना बैनर बनाया है और पहली फिल्म प्रोड्यूस की है और यकीन मानिए उन्होंने शुरू में ही 'मेरा नाम जोकर' बना दी है। फिल्म देखकर लगता है कि उन्होंने एक बेहद प्रयोगधर्मी फिल्म बनाने का फैसला किया, पर गच्चा खा गए। फर्क केवल इतना है कि 'मेरा नाम जोकर' को सब आज भी याद करते हैं लेकिन आने वाले समय में 'जग्गा जासूस' को कोई पूछेगा भी नहीं। जब राज कपूर ने चार घंटे की दो इंटरवल वाली 'मेरा नाम जोकर' बनाई थी तो उस समय के लिहाज से वह बहुत लंबी फिल्म थी। आज जबकि दो घंटे से भी कम समय में फिल्में निपट जाती हैं तो रनबीर ने तीन घंटे के करीब की फिल्म बना दी। इतिहास रिपीट होगा। 'मेरा नाम जोकर' भी नहीं फ्लाप रही थी और 'जग्गा जासूस' का भी हश्र वही होगा। शायद दादा जी की तरह रनबीर भी इस फिल्म को सबसे पसंदीदा बताते रहें लेकिन यह फिल्म देखने लायक नहीं बन पाई है।
'जग्गा जासूस' को देखने के बाद केवल दो लोगों की ही तारीफ की जा सकती है। एक तो संवाद लेखक की और दूसरे कैमरामेन की। बाकी फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे पसंद किया जा सके या फिर जिसकी वजह से मैं यह फिल्म देखने की सिफारिश कर दूं। कहानी एक हकले लड़के की है जिसे अपने पिता की तलाश है। जासूसी का शौक है। बीच-बीच में अपने हुनर से वह कुछ मिस्ट्री भी हल करता जाता है। बस यही कहानी है और इसे ही खींचतान कर तीन घंटे के करीब का कर दिया गया है। संवाद कभी-कभी अच्छे हैं लेकिन कहानी इतनी पेचिदा और स्क्रीनप्ले इतना उलझा हुआ है कि कब क्या हुआ था इसे याद करने के लिए आपको बार-बार दिमाग पर जोर डालना पड़ता है। अगला सीन देखने के चक्कर में आप यह भूल ही जाते हैं कि आप क्या याद करने की कोशिश कर रहे थे। फिल्म की शुरूआत 1995 में नार्थ ईस्ट के पुरुलिया में हथियार गिराए जाने की घटना से होती है तो लगता है कि फिल्म में कुछ बहुत ही दिलचस्प देखने को मिलेगा लेकिन कहानी उट पटांग तरीके से आगे बढ़ती है और जमकर पकाती है। अंत में जरूर यह मैसेज देने की कोशिश करती है कि कुछ ताकतें हथियारों के जरिये किस तरह आतंकवाद को बढावा दे रही हैंं, लेकिन लोग फिल्म देखते समय इतना पक चुके होते हैं कि यह उन्हें बेमानी और फिजूल नजर आएगा।
वर्तमान दौर के सबसे प्रतिभाशाली संगीतकार प्रीतम चक्रवर्ती ने संगीत दिया है जो उनकी अन्य फिल्मों के मुकाबले बेहद कमजोर है। 'उल्ला का पट्ठा' व 'मिस्टेक' गीत फिल्म में इसलिए अच्छे लगते हैं क्योंकि वे टीवी और यूट्यूब पर हम अनगिनत बार देख चुके हैं अन्यथा फिल्म का संगीत पक्ष बेहद कमजोर है। अनुराग बसु ने यह फिल्म काव्यात्मक संवादों में संगीत से सजाने की कोशिश की है और इस प्रयोग में वे बुरी तरह से फेल रहे हैं। पांच दशक पहले इसी तर्ज पर चेतन आनंद ने 'हीर रांझा' बनाई थी जिसने बाक्स आफिस पर इतिहास रचा था। लेकिन उस फिल्म की कहानी और मिजाज कुछ और था। उसमें मदन मोहन ने यादगार संगीत दिया था।
इस फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे याद रखा जा सके। रनबीर ने एक्टिंग बेहतरीन की है और वे हर फिल्म में बेहतरीन ही करते हैं। हां, ये भी बता दूं कि नवाजुद्दीन सिद्दीकी कुछ सेकेंड के लिए इसमें भी जाते हैं। इन दिनों नवाज हर फिल्म में नजर आ रहे हैं। उन्हें आइटम सांग की तरह यूज किया जाने लगा है। वैसे उनके होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। कैटरीना कैफ के लिए भी यह फिल्म नुकसान देह ही साबित होगी। इसे रनबीर के कैरियर के दूसरी 'बॉम्बे वेलवेट' कह दूं कोई गलत नहीं होगा।
आपको सलाह देना चाहूंगा कि इसे बिल्कुल मत देखें। समय व पैसा बरबाद होगा। अगर आप बच्चों को इसलिए लेकर जा रहे हैं कि शायद यह बच्चों की फिल्म है तो बहुत बड़ी गलती करेंगे। बच्चे आपको कभी माफ नहीं करेंगे इस सजा के लिए।
Rating: 1*
कहानियों से भरी इस फिल्म की समीक्षा के पहले ये तीन कहानियां जरूर पढ़ लें:-1. बतौर निर्माता रनबीर कपूर की यह पहली फिल्म है। सिद्धार्थ राय कपूर व अनुराग बसु भी सहयोगी निर्माता हैं। उनके साथ रनबीर पहले भी काम करते रहे हैं और इसलिए तीनों ने यह ज्वाइंट वेंचर बनाया है।
2. अनुराग बसु ने रनबीर के कैरियर की सबसे बेहतर फिल्म 'बर्फी' उन्हें दी थी। रनबीर उनके साथ एक और फिल्म करने के लिए बेताब थे भले ही वे कुछ भी बना दें। 'बर्फी' में अनुराग ने उन्हें गूंगा-बहरा बनाया था तो यहां हकला बना दिया।
3. फिल्म में कैटरीना कैफ केवल इसलिए हैं क्योंकि वे रनबीर की गर्लफ्रेंड हैं, नहीं तो कोई भी हिरोईन इस फिल्म को करने के लिए तैयार नहीं होती। यह कैटरीना की भूल है। उनके लिए फिल्म में कुछ था ही नहीं।
रनबीर कपूर इस दौर के सबसे बेहतरीन अभिनेता हैं इसमें कोई दोराय नहीं। वे कुछ भी करते हैं वो अलग ही होता है। अमिताभ बच्चन ने कहा था कि रनबीर बिना चेहरे पर हावभाव लिए एकटक देखते भी रहते हैं तो उसमें भी उनका अभिनय होता है। यह बात बिल्कुल सही भी है। वे स्ट्रेट फेस से भी अपनी बात कह देते हैं। उनमें ये मासूमियत भरी प्रतिभा अपने दादा राज कपूर से आई है। भोले आदमी के किरदार वे बखूबी निभाते थे और हसोड़ भी थे। बस गंभीरता के मामले में वे मात खा जाते थे। रनबीर ने 'पिक्चर शुरू' के नाम से अपना बैनर बनाया है और पहली फिल्म प्रोड्यूस की है और यकीन मानिए उन्होंने शुरू में ही 'मेरा नाम जोकर' बना दी है। फिल्म देखकर लगता है कि उन्होंने एक बेहद प्रयोगधर्मी फिल्म बनाने का फैसला किया, पर गच्चा खा गए। फर्क केवल इतना है कि 'मेरा नाम जोकर' को सब आज भी याद करते हैं लेकिन आने वाले समय में 'जग्गा जासूस' को कोई पूछेगा भी नहीं। जब राज कपूर ने चार घंटे की दो इंटरवल वाली 'मेरा नाम जोकर' बनाई थी तो उस समय के लिहाज से वह बहुत लंबी फिल्म थी। आज जबकि दो घंटे से भी कम समय में फिल्में निपट जाती हैं तो रनबीर ने तीन घंटे के करीब की फिल्म बना दी। इतिहास रिपीट होगा। 'मेरा नाम जोकर' भी नहीं फ्लाप रही थी और 'जग्गा जासूस' का भी हश्र वही होगा। शायद दादा जी की तरह रनबीर भी इस फिल्म को सबसे पसंदीदा बताते रहें लेकिन यह फिल्म देखने लायक नहीं बन पाई है।
'जग्गा जासूस' को देखने के बाद केवल दो लोगों की ही तारीफ की जा सकती है। एक तो संवाद लेखक की और दूसरे कैमरामेन की। बाकी फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे पसंद किया जा सके या फिर जिसकी वजह से मैं यह फिल्म देखने की सिफारिश कर दूं। कहानी एक हकले लड़के की है जिसे अपने पिता की तलाश है। जासूसी का शौक है। बीच-बीच में अपने हुनर से वह कुछ मिस्ट्री भी हल करता जाता है। बस यही कहानी है और इसे ही खींचतान कर तीन घंटे के करीब का कर दिया गया है। संवाद कभी-कभी अच्छे हैं लेकिन कहानी इतनी पेचिदा और स्क्रीनप्ले इतना उलझा हुआ है कि कब क्या हुआ था इसे याद करने के लिए आपको बार-बार दिमाग पर जोर डालना पड़ता है। अगला सीन देखने के चक्कर में आप यह भूल ही जाते हैं कि आप क्या याद करने की कोशिश कर रहे थे। फिल्म की शुरूआत 1995 में नार्थ ईस्ट के पुरुलिया में हथियार गिराए जाने की घटना से होती है तो लगता है कि फिल्म में कुछ बहुत ही दिलचस्प देखने को मिलेगा लेकिन कहानी उट पटांग तरीके से आगे बढ़ती है और जमकर पकाती है। अंत में जरूर यह मैसेज देने की कोशिश करती है कि कुछ ताकतें हथियारों के जरिये किस तरह आतंकवाद को बढावा दे रही हैंं, लेकिन लोग फिल्म देखते समय इतना पक चुके होते हैं कि यह उन्हें बेमानी और फिजूल नजर आएगा।
वर्तमान दौर के सबसे प्रतिभाशाली संगीतकार प्रीतम चक्रवर्ती ने संगीत दिया है जो उनकी अन्य फिल्मों के मुकाबले बेहद कमजोर है। 'उल्ला का पट्ठा' व 'मिस्टेक' गीत फिल्म में इसलिए अच्छे लगते हैं क्योंकि वे टीवी और यूट्यूब पर हम अनगिनत बार देख चुके हैं अन्यथा फिल्म का संगीत पक्ष बेहद कमजोर है। अनुराग बसु ने यह फिल्म काव्यात्मक संवादों में संगीत से सजाने की कोशिश की है और इस प्रयोग में वे बुरी तरह से फेल रहे हैं। पांच दशक पहले इसी तर्ज पर चेतन आनंद ने 'हीर रांझा' बनाई थी जिसने बाक्स आफिस पर इतिहास रचा था। लेकिन उस फिल्म की कहानी और मिजाज कुछ और था। उसमें मदन मोहन ने यादगार संगीत दिया था।
इस फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे याद रखा जा सके। रनबीर ने एक्टिंग बेहतरीन की है और वे हर फिल्म में बेहतरीन ही करते हैं। हां, ये भी बता दूं कि नवाजुद्दीन सिद्दीकी कुछ सेकेंड के लिए इसमें भी जाते हैं। इन दिनों नवाज हर फिल्म में नजर आ रहे हैं। उन्हें आइटम सांग की तरह यूज किया जाने लगा है। वैसे उनके होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। कैटरीना कैफ के लिए भी यह फिल्म नुकसान देह ही साबित होगी। इसे रनबीर के कैरियर के दूसरी 'बॉम्बे वेलवेट' कह दूं कोई गलत नहीं होगा।
आपको सलाह देना चाहूंगा कि इसे बिल्कुल मत देखें। समय व पैसा बरबाद होगा। अगर आप बच्चों को इसलिए लेकर जा रहे हैं कि शायद यह बच्चों की फिल्म है तो बहुत बड़ी गलती करेंगे। बच्चे आपको कभी माफ नहीं करेंगे इस सजा के लिए।