Sunday 29 July 2018

Career Review : Taapsee Pannu (Edited- 1, with more input)

बालीवुड का सबसे चमकता व चौंकाता चेहरा

अगर कोई मुझसे पूछे कि इस समय बालीवुड की सबसे संभावनाओं वाली अभिनेत्री कौन है तो मेरा जवाब होगा तापसी पन्नु। दिल्ली की इस लड़की का फिल्मों में संघर्ष वैसे तो 8 साल पुराना हो चुका है लेकिन बालीवुड से उनका परिचय पिछले दो तीन साल से ही हुआ है। वैसे तो उनकी एंट्री 2012 में ही गई थी 'चश्मे बद्दूर' के साथ लेकिन 2016 में आई 'पिंक' ने उन्हें पहचान दी और 2017 व 2018 में आई फिल्मों ने उनके नाम को बालीवुड में बड़ा बनाया। 2019 उनके लिए बहुत अहम साबित होगा। बस मुझे चिंता इस बात की है कि उनका फिल्मों का चयन कुछ हद तक सही नहीं हो पा रहा है। तापसी को मुख्य धारा में बने रहना है तो उन्हें जुड़वां 2 जैसी कम से कम एक फिल्म हर साल करनी चाहिए। 'जुड़वां 2' भले ही 'पिंक' की तरह से लोकप्रिय नहीं रही लेकिन बालीवुड में लंबे समय से तक टिके रहने के लिए इस तरह की फिल्में जरूरी हैं।


याद कीजिए जब 70 के दशक में शबाना आजमी 'अंकुर' व 'मंडी' कर रही थीं तो 'अमर अकबर एंथनी' व 'परवरिश' जैसी तमाम मसाला फिल्में भी वे करती रही। बालीवुड में आप एक ही दायरे में बंधकर नहीं चल सकते। अगर आप बड़े स्टार हैं तो आपको आफबीट फिल्में भी मिलेंगी लेकिन अगर आप केवल आफबीट फिल्में ही ज्यादा करेंगे तो कमर्शियल सिनेमा, जो कि बहुत ज्यादा कमजोर मानसिकता से काम करता है, आपसे दूर होता चला जाएगा। हालांकि तापसी पन्नु अभी उस स्थिति में नहीं पहुंची हैं कि वे बहुत ज्यादा चॉयस फिल्मों को लेकर कर सकें लेकिन उन्हें फिल्मों में अपने किरदार छांटने होंगे और यह भी सोचना है कि किस फिल्म को करने से उनकी पहचान ज्यादा बनेगी।

तापसी की मजबूती:
तापसी की सबसे खास बात यह है कि उनके चेहरे में नॉर्थ इंडियन लड़कियों वाली खूबसूरती है। उनकी बॉडी स्किन एक तरह की नजाकत लिए हुए है इसलिए वे टिपिकल बालीवुड हिरोईन की तरह से नजर आती हैं। जो आलिया भट्ट, श्रद्धा कपूर, जैकलिन फर्नांडीज आदि उनके दौर की दूसरी लड़कियां कर रही हैं वो वे भी कर सकती हैं। जैकलिन को तो हिंदी भी नहीं आती। तब भी उनके पास बड़ी फिल्में आसानी से आ जा रही हैं। भले ही उनके किरदार प्रभावशाली नहीं है लेकिन उनके नायक सलमान खान, रणबीर कपूर, सिद्धार्थ मल्होत्रा आदि रहे हैं। स्क्रीन पर बहुत ही बबली व सुंदर नजर आने वाली जैकलिन उम्र में तापसी से दो साल बड़ी हैं। उम्र का जिक्र यहां इसलिए किया क्योंकि बालीवुड में 30 साल की उम्र तक ज्यादातर हिरोईनें अपने मकाम का हासिल कर लेती हैं और अगले 8-10 साल उसे अच्छी तरह से आगे बढ़ा सकती हैं। जैसे ऐश्वर्या राय, प्रियंका चोपड़ा, करीना आदि ने किया और अब कैटरीना, दीपिका व अनुष्का कर रही हैं। इन सभी ने ग्लैमरस व मसाला फिल्में भी खूब की और आफबीट किरदार भी जब मिले तो लपक लिए। कैटरीना अपनी हिंदी की वजह से मात खा गई और इसलिए अभिनय में उतना प्रभाव नहीं छोड़ पाई जितना दीपिका या अनुष्का कमर्शियल सिनेमा करते हुए ही कर पा रही हैं। दीपिका को भंसाली ने तीन फिल्मों में ही कमर्शियल व आफबीट का स्वाद चखा दिया। जबकि अनुष्का ने खुद प्रोड्यूसर बनकर एनएच 10 से ऐसा कर लिया।

सजग रहने की जरूरत:
तापसी को आने वाले समय में अपने किरदारों को लेकर सजग रहना होगा। ग्लैमरस रोल, नाचना गाना, बिकिनी फोटो शूट आदि में कोई बुराई नहीं है और मौका मिले तो ये सब भी करना चाहिए। इससे पहचान बड़ी होती है और जब आप फिल्म में अच्छा करते हैं तो दर्शक चौंक जाते हैं। लगभग 10 हिंदी फिल्में कर चुकी तापसी ने लगभग इतनी ही फिल्में 2010 से 2012 के बीच में तेलुगु, तमिल व मलयालम भाषाओं में भी की और वहां उन्होंने ग्लैमरस रोल भी किए और आफबीट किरदार भी निभाए।

क्या करें तापसी-
- फिल्मों के चयन के समय उनमें आफर किए जा रहे रोल पर और अधिक सजग रहना होगा। फिल्म में ज्यादा दिखना भी जरूरी है।
- हीरो कौन है यह ज्यादा जरूरी नहीं है लेकिन निर्देशक कौन है यह जानना बहुत ही आवश्यक है। मसाला फिल्में बनाने के लिए मशहूर निर्देशक डेविड धवन आपके काम आ सकते हैं लेकिन अनुराग कश्यप जैसे निर्देशक आपको ज्यादा ऊंचाइयों पर पहुंचा सकते हैं।
- 'सूरमा' भले ही कमर्शियली उतनी बड़ी हिट नहीं बन सकी लेकिन फिर भी मेरे हिसाब से यह फिल्म तापसी के कैरियर में पिंक से कम महत्वपूर्ण नहीं है। ऐसी और भी फिल्में उन्हें करनी होंगी।
- फिल्मों में अपनी ड्रैसेज पर उन्हें सबसे ज्यादा ध्यान देना होगा। 'जुड़वां 2' में भले ही वे ग्लैमर की छटा बिखेर चुकी हैं लेकिन अपने ड्रैस डिजाइनर को और अधिक बेहतर तरीके से इस्तेमाल करना होगा। बालीवुड में जो अच्छा दिखता है वही बिकता है।

आने वाला साल-
- 'मुल्क' : यह फिल्म इसी सप्ताह रिलीज हो रही है। इसमें वे एक वकील के किरदार में हैं। देश के राजनीतिक माहौल को दिखाने वाली यह फिल्म उन्हें एक और अच्छा रोल तो दे सकती है लेकिन इसमें बालीवुड फतेह करने का मंत्रा मुझे नजर नहीं आता।
- 'मनमर्जियां' : पहली बार वे अनुराग कश्यप के साथ काम कर रही हैं। पंजाब की बैकग्राउंड पर बन रही इस फिल्म की कहानी के बारे में अभी ज्यादा आइडिया तो नहीं हो पा रहा है लेकिन फिल्म में चूंकि उनके नायक अभिषेक बच्चन हैं इसलिए प्रोजेक्ट कमर्शियल नजर आ रहा है। फिल्म में कहानी व संगीत अगर अच्छे हुए तो यह उनके लिए तो महत्वपूर्ण फिल्म साबित होगी। साथ ही अभिषेक का कैरियर भी फिर से पटरी पर आ सकता है।
- 'बदला': यह फिल्म अगले साल जनवरी में रिलीज होगी। इसमें वे एक बार फिर अमिताभ बच्चन के साथ काम कर रही हैं। सुजोय घोष निर्देशक हैं। यह फिल्म में उनके लिए 'पिंकÓ की तरह से ही बड़ी फिल्म साबित हो सकती है।

तापसी की यह शॉर्ट फिल्म जरूर देखें- 


तापसी की फिल्में-
2012- चश्मे बद्दूर
2014- बेबी
2016- पिंक
2017 - रनिंग शादी, द गाजी अटैक, नाम शबाना, जुड़वां 2
2018 - दिल जंगली, सूरमा व मुल्क ।


तापसी पन्नू के अनुपमा चोपड़ा के साथ इस इंटरव्यू को देखें, जान जाएंगे कि यह दिल्ली की यह लड़की कितनी सादी है और जीवन के बारे में उसके आदर्श कितने साफ हैं :-


तापसी के बारे में और अधिक जानने के लिए क्लिक करें -
अंत में तापसी पन्नू को जन्मदिन (1 अगस्त 1987) की बहुत सारी शुभकामनाएं।

- हर्ष कुमार सिंह 


Friday 27 July 2018

DEEP REVIEW : Saheb Biwi Aur Gangster 3

किरदारों की भीड़ में खो गई 'हरामी' लोगों की कहानी 
किरदारों की भीड़ के बीच अगर कुछ राहत मिलती है तो चित्रांगदा सिंह को देखने से मिलती है। वे सुंदर लगती हैं, एक्टिंग अच्छी करती हैं और उनका किरदार फिल्म में सबसे मासूम दिखाया गया है लेकिन धूलिया को अच्छे लोग कहां पसंद आते हैं। उन्हें भी मार दिया गया। फिल्म फिर से ऐसे मकाम पर खत्म की गई है जहां से पार्ट 4 का गुंजाइश बनी रहती है। 

Rating : 2*


निर्देशक तिगमांशु धूलिया की अपनी अलग ही दुनिया है। वे बहुत डार्क सोचते हैं और उसी के हिसाब से कहानी रचते हैं। उनकी फिल्मों में सारे किरदार अव्वल दर्जे के हरामी होते हैं। किसी साले का कोई दीन ईमान नहीं होता। अरे, ये क्या हो गया, मैं भी उनके किरदारों की तरह ही हो गया? भूल के लिए माफी लेकिन क्या करूं उनकी फिल्म देखने के बाद तो ऐसा लगता है कि दुनिया में किसी आदमी पर भरोसा नहीं करना चाहिए। तीन भागों की इस फिल्म को देखने के बाद तो यह लगने लगा है कि संसार में मां, बेटा, बीवी, बाप, भाई कोई अपना नहीं होता। धूलिया की फिल्म में साहिब (जिमी शेरगिल) व बीवी (माही गिल) के किरदार स्थायी हैं जबकि गैंगस्टर बदलते रहते हैं।

पहले दो भागों में रणदीप हुड्डा व इरफान खान थे तो इस भाग को बड़ा बनाने के लिए संजय दत्त को ले लिया गया। पर यकीन मानिए संजय दत्त अब स्क्रीन पर अच्छे नहीं लगते। जब से वे जेल से छूटकर आए हैं लगता है ज्यादा पीने लगे हैं। पेट बाहर आ गया है और चेहरा बहुत ही डरावना हो गया है। अगर फिल्म में कबीर बेदी (जिनका चेहरा भी बुरी तरह से बिगड़ गया है) न होते तो संजय दत्त ही सबसे खराब लगते। संजय को अपनी बॉडी का ख्याल रखना चाहिए। गाने गाते हुए वे बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगते।

वैसे कई बेहतरीन फिल्में बना चुके धूलिया को उम्र में बड़े, अधेड़ टाइप के कलाकार भाते हैं। माही गिल, जिमी शेरगिल, चित्रांगदा सिंह, सोहा अली खान आदि 40 पार हैं। अन्य कलाकारों का भी यही हाल है। लंबे अरसे बाद दीपक तिजोरी नजर आए हैं और वे भी बूढ़े, मोटे व थके हुए लगे हैं। किरदारों की भीड़ के बीच अगर कुछ राहत मिलती है तो चित्रांगदा सिंह को देखने से मिलती है। वे सुंदर लगती हैं, एक्टिंग अच्छी करती हैं और उनका किरदार फिल्म में सबसे मासूम दिखाया गया है लेकिन धूलिया को अच्छे लोग कहां पसंद आते हैं। उन्हें भी मार दिया गया। फिल्म फिर से ऐसे मकाम पर खत्म की गई है जहां से पार्ट 4 का गुंजाइश बनी रहती है। इस पार्ट में साहिब व बीवी को ही पूरी तरह से भिड़ा दिया गया है। शायद अगले पार्ट में दोनों के बीच कहानी अंजाम तक पहुंचे?

कहानी पिछले पार्ट से ही आगे बढ़ती है। माधवी (माही) विधायक बन चुकी है। साहिब आदित्य प्रताप सिंह (जिमी) जेल में ही हैं। माधवी ने सारा साम्राज्य कब्जा लिया है। लोग आदित्य को भूलने लगे हैं। माधवी भी इसी कोशिश में है कि वह किसी तरह बाहर न आए। साहिब की दूसरी बीवी रंजना (सोहा) शराब के नशे में डूब चुकी है। रंजना का पिता साहिब को बचाने की कोशिश करता है तो माधवी रंजना को ही गोली मार देती है और वह कोमा में चली जाती है। पैसे की कमी के कारण साहिब बाहर नहीं आ पा रहे हैं। उसका खासमखास कन्हैया (दीपक राणा) अपनी वफादारी दिखाता है और साहिब की जमानत करा देता है। साहिब फिर से सारी कमान हाथ में लेने की कोशिश शुरू कर देते हैं। अब तक पूरी तरह चरित्रहीन हो चुकी माधवी गर्भवती हो जाती है। साहिब इसलिए उसकी जान बख्श देते हैं क्योंकि बच्चा उनका था। माधवी लंदन जाती है तो वहां अपना मौत के खेल का कारोबार चलाने वाले उदय (संजय दत्त) से मिलती है। उदय भी भारत के ही रजवाड़ों के खानदान से ताल्लुक रखता है। वह किसी केस में फंस जाने के कारण भाग गया था। उदय फिर से भारत जाना चाहता है। जहां उसके भाई (दीपक तिजोरी) व पिता (कबीर बेदी) व मां (नफीसा अली) रहते हैं। माधवी को लगता है कि साहिब को मारने में उदय उसकी मदद कर सकता है। वह उदय से करीबी बढ़ाती है और उसे आदित्य को मारने के लिए तैयार करती है। अंत में षडय़ंत्रों का खूनी खेल होता है और सब मारे जाते हैं। बचते हैं साहिब व बीवी। साहिब समझ जाते हैं कि सब खेल माधवी ने रचा था। वह माधवी को चेतावनी देते हैं कि जिस दिन वह मां बनेगी उस दिन वे अपने बच्चे के सामने उसकी हत्या करेंगे। पर माधवी यहां भी चालकी से बच निकलती है।



फिल्म में इतने किरदार हैं कि उन्हें रचने में ही फिल्म उलझ जाती है। कौन किरदार क्या कर रहा है यह किसी के ध्यान नहीं रहता। सब गड्ड मड्ड हो जाता है। बस इतना पता रहता है कि साहिब व बीवी दुश्मन बन चुके हैं। धूलिया कल्पना तो बढिय़ा करते हैं लेकिन इस बार उनकी लेखनी किरदारों के बोझ में दब गई है। इसलिए कोई भी चरित्र आपको पसंद नहीं आएगा। मैंने पहले भी कहा कि चित्रांगदा के अलावा कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
जिमी शेरगिल तो पूरी तरह से साहिब ही बन चुके हैं। वे जंचते हैं लेकिन माही गिल पर उम्र का प्रभाव बुरी तरह से पड़ा है। वे खुद को मेंटेन नहीं कर पाई हैं। चेहरे की झुर्रियां नजर आती हैं और उनका मेकअप बहुत ही खराब तरीके से किया गया है। अभिनय के लिहाज से माही व जिमी नंबर वन रहे हैं। बढ़ती उम्र के साहिब व बीवी के रोल में दोनों ने पूरा न्याय किया है। बाकी सभी कलाकार औसत हैं।


फिल्म को लोकेशंस बढिय़ा हैं। ज्यादातर शूटिंग राजस्थान में हुई है और वहीं के रजवाड़े दिखाए गए हैं लेकिन सब गाडिय़ों के नंबर यूपी के दिखते हैं। यह गलती है। इसके अलावा जब जिमी जेल से बाहर आते हैं तो पोस्टर लगे थे विधायक माधवी के समर्थन में लेकिन जब कबीर बेदी अपने मेहमानों से उन्हें मिलवाते हैं तो मेंबर आफ पार्लियामेंट बताते हैं। ये भी गलती है। संगीत बेकार हैं। लता जी के प्रसिद्ध गीत 'लग जा गले' को कई बार बजाया गया है। बाकी कौन सा गाना था फिल्म में यह मुझे याद नहीं रहा। बैकग्राउंड म्यूजिक तगड़ा है। फिल्म चूंकि हरामी किरदारों से भरी है इसलिए आप फैमिली के साथ घुसने की हिम्मत मत कर बैठिए। अकेले देखें तो वन टाइम मूवी है।

- हर्ष कुमार सिंह 

रीव्यू की वीडियो ब्लॉग - 


Friday 20 July 2018

DEEP REVIEW : Dhadak

जहानवी कल की सुपर स्टार, पर पहली फिल्म का चुनाव सही नहीं
जहानवी व ईशान को भविष्य उज्जवल है। ईशान नेचुरल हैं वे बियोंड द क्लाउड्स में पहले ही खुद को साबित कर चुके हैं। और जहानवी तो पैदाईशी स्टार हैं ही। आज नहीं तो कल वे अपना स्थान बना ही लेंगी। पर मेरा मानना है कि उन्हें लांच करने के लिए यह कहानी सही नहीं थी। एक दो फिल्में करने के बाद वे इस तरह का रोल करती तो बेहतर होता।  
Rating: 2*

अगर आपने 'सैराट' देखी है तो यह फिल्म आपके लिए नहीं है। जिन लोगों ने मराठी भाषा की वह सुपर हिट फिल्म देख ली है उन्हें 'धड़क' नहीं धड़काएगी। यह बात शायद करण जौहर व शशांक खेतान भी जानते थे और इसलिए उन्होंने फिल्म के क्लाइमैक्स में बदलाव कर दिया। पर मेरा मानना है कि 'धड़क' का क्लाइमैक्स हिंदी भाषी दर्शकों को नहीं पसंद आएगा। अगर 'सैराट' वाले क्लाइमैक्स को ही रिपीट कर दिया जाता तो ज्यादा सही रहता। 'धड़क' का क्लाइमैक्स बिल्कुल भी हजम नहीं होता है। जहां 'सैराट' में लोग सन्न रह जाते थे वहीं 'धड़क' में वे निराश व ठगा हुआ महसूस करते हैं।


यहां एक सवाल बोनी कपूर से पूछना चाहूंगा कि उन्होंने जहानवी को लांच करने के लिए 'सैराट' का रीमेक क्यों चुना? जहानवी में ग्लैमर है और वे स्टार मैटीरियल है। जबकि 'सैराट' की हिरोईन एक साधारण घरेलू लड़की थी। जहानवी चूंकि सुपर स्टार मां श्रीदेवी की बेटी है तो उनके लिए पूरी टीम तैयार थी। मेकअप से लेकर उनकी कास्ट्यूम तक में स्टारडम नजर आता है। लीड स्टार के रूप में ईशान खट्टर तो एकदम सही चुनाव हैं, क्योंकि वे साधारण गली ब्वॉय नजर आते हैं, लेकिन जहानवी बिल्कुल भी एक आम लड़की नहीं लगती। जहानवी के लिए तो 'स्टूडेंट आफ द ईयर' या फिर 'जब वी मेट' जैसी कोई रोमांटिक फिल्म बनाई जानी चाहिए थी। दिल की बात कहूं तो जहानवी के साथ अन्याय हुआ है। करण को उनके लिए कोई मॉडर्न लव स्टोरी बनानी चाहिए थी, आलिया भट्ट की तरह। ग्लैमरस रोल मिलता तो जहानवी हंगामा कर देती। अब तक जहानवी को सोशल मीडिया पर लोगों ने जिम में आते-जाते खूब देखा था। जिम आउटफिट में वे बेहद आकर्षक नजर आती थी लेकिन 'धड़क' में वे 'गर्ल टू नेक्स्ट डोर' बना दी गई। राजस्थानी भाषा बोलते हुए वे अजीब लगती है। उनके मुकाबले ईशान सहज रहे।
फिल्म की कहानी तो आप जानते ही होंगे। पार्थवी (जहानवी) बड़े घर व ऊंची जाति की लड़की है और मधुकर (ईशान) छोटी जाति व साधारण घर का लड़का। दोनों में प्यार हो जाता है जो पार्थवी के परिवार को मंजूर नहीं। दोनों विरोध के बीच घर से भाग जाते हैं ओर कोलकाता जाकर घर बसा लेते हैं। बाकी फिल्म का अंत आपको बता दूंगा तो फिल्म एक बार देखने के लायक भी नहीं रहेगी।
फिल्म में एक नहीं कई खामियां हैं। फिल्म लगभग 5 साल का पीरियड कवर करती है। जहानवी के पिता रतन सिंह (आशुतोष राणा) चुनाव जीतते हैं और फिर अगला चुनाव हार जाते हैं। यानी कम से कम पांच साल बीतते हैं। जहानवी को पांच साल पहले आईफोन के बड़े मॉडल (जो 6 प्लस के बाद शुरू हुए) को यूज करते हुए दिखाया गया है जबकि उस समय आईफोन 5 ही आता था (छोटे साइज वाला)। शायद जहानवी को बड़े घर की बेटी दिखाने के चक्कर में निर्देशक इस बात को भूल गए। जहानवी को सुजुकी बाइक का आधुनिक मॉडल चलाते दिखाया गया जो पांच साल पहले लांच भी नहीं हुआ था।


शशांक खेतान का निर्देशन बहुत कमजोर है। फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी इसका संगीत है। सैराट के संगीत ने धूम मचा दी थी लेकिन 'धड़क' में तो हू ब हू कॉपी किया गया 'जिंगाट' गीत भी उत्तेजना नहीं पैदा कर पाया।
फिल्म की शुरुआत में जहानवी व ईशान के बीच रोमांस पनपने के जो सीन बनाए गए हैं वे बहुत ही बनावटी लगते हैं। (नोट: हो सकता है मुझसे उम्र में 20-25 साल छोटे युवाओं को वे अच्छे लगें। उम्र का फर्क हो सकता है।) फिल्म का टीनएज रोमांस दिल को नहीं छू पाया।



मुख्य कलाकारों के लिए मैं पहले ही काफी बता चुका हूं। जहानवी व ईशान को भविष्य उज्जवल है। ईशान नेचुरल हैं वे 'बियोंड द क्लाउड्स' में पहले ही खुद को साबित कर चुके हैं। और जहानवी तो पैदाईशी स्टार हैं ही। आज नहीं तो कल वे अपना स्थान बना ही लेंगी। पर मेरा मानना है कि उन्हें लांच करने के लिए यह कहानी सही नहीं थी। एक दो फिल्में करने के बाद वे इस तरह का रोल करती तो बेहतर होता।

वीकेंड में अगर आप फिल्म देखने के शौकीन हैं तो यह फिल्म आप एक बार देख सकते हैं और अगर नहीं देख पाते हैं तो अफसोस न करें, यह एक महान फिल्म नहीं है। केवल साधारण फिल्म है।

रीव्यू का वीडियो ब्लॉग भी देखेंः-


- हर्ष कुमार सिंह

Friday 13 July 2018

DEEP REVIEW : Soorma

बच्चों के साथ देखें ये फिल्म, आपको गर्व महसूस होगा

  • दिलजीत दोसांझ संदीप के रोल में एकदम परफेक्ट लगे हैं। अंगद बेदी तो कमाल ही कर देते हैं। अंगद लंबी रेस का घोड़ा हैं बस उन्हें रोल अच्छे नहीं मिल रहे। तापसी पन्नू तो जैसे ऐसे किरदारों के लिए ही बनी हैं। वे जो भी करती हैं वही अच्छा लगता है। खूबसूरत तो वे हैं ही साथ ही जिस तरह से वे रोल में घुसती हैं वो कमाल है

Rating 3*
खेल-खिलाडिय़ों पर जब भी कोई फिल्म बनती है तो बहुत अच्छा लगता है। लगता है कि कोई नया करने का प्रयास कर रहा है। नहीं तो हमारे देश में भेड़चाल में फार्मूला फिल्में बनाने का चलन तो बरसों बरस चलता रहा है। अब तो फिल्मकार नए नाम ढूंढने का भी कष्ट नहीं करते। पार्ट 1, 2 व 3 आदि बनाए जा रहे हैं। इनमें स्टारकास्ट पहले तय की जाती है और कहानी बाद में गढ़ी जाती है। खिलाडिय़ों के जीवन पर फिल्में बनाने का काम चुनौतीपूर्ण भी है और आसान भी है। इनमें सबसे बड़ी चुनौती होती है यथार्थ के ज्यादा से ज्यादा करीब जाने की और आसानी है जनता का दल जीतने की। क्योंकि खिलाडिय़ों के जीवन में सबसे बड़ी बात होती है एक हीरोइज्म, जो आम दर्शकों से बड़ी आसानी से कनेक्ट हो जाता है। यही कारण है कि हाल के सालों में 'मैरीकॉम', 'एमएस धोनी', 'दंगल' जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्में बनी हैं। और शायद जल्द ही कुछ और बनें भी। इससे पहले लगभग एक दशक पूर्व शाहरुख खान की 'चक दे इंडिया' व श्रेयस तलपड़े की 'इकबाल' आई थी, जो भले ही सच्ची कहानियों पर नहीं थी लेकिन खेलों की दुनिया को ग्लोरीफाई करती थी और सुपर हिट रही थी।
'सूरमा' की कहानी इन सबसे अलग है। यह संदीप सिंह नामक पंजाब के एक ऐसे हॉकी खिलाड़ी पर आधारित है जो दस साल पहले ही भारतीय हॉकी टीम का कप्तान होने के बाद भी गुमनामी के अंधेरे में खोकर रह गया। अर्जुन अवार्डी संदीप सिंह को जब हॉकी टीम की कप्तानी सौंपी गई थी तो मुझे खूब याद है कि भारी बवाल हुआ था। वे कई साल टर्फ पर वापसी कर रहे थे और उन्हें सीधे ही कप्तान बना दिया गया था। इसकी आलोचना भी हुई थी। बाद में संदीप ने सबको गलत साबित किया और भारत को न केवल कई टूर्नामेंट जिताए बल्कि उनके नाम पर सबसे ज्यादा गोल करने का रिकॉर्ड भी है। उन्हें फ्लिकर किंग भी कहा जाता है।
सूरमा का ट्रेलर देखें-


इस कहानी को सोनी पिक्चर्स व चित्रांगदा सिंह ने फिल्म बनाने के लिए चुना यह बहुत बड़ी बात है और दोनों ही निर्माताओं को इसके लिए दिल से बधाई। चित्रांगदा तो पहली फिल्म बना रही थी और उनका इस विषय को चुनना दिखाता है कि वे खूबसूरत व प्रतिभाशाली कलाकार ही नहीं है बल्कि एक जहीन दिमाग की भी मालिक हैं। उनके दौर की कई हिरोईन के पास इसकी कमी है। फिल्म बढिय़ा बनी है, और बढिय़ा बनाई जा सकती थी लेकिन जैसी भी बनी है परिवार के साथ देखने लायक है। कम से कम हाल ही के हफ्तों में आई 'रेस 3' व 'धड़क' जैसी फिल्मों से तो कई गुना बेहतर है। मुझे खुद अफसोस है कि एक सप्ताह देरी से इसे देख पाया और देरी से ही रिव्यू कर रहा हूं। पर आप देरी न करें और तुरंत देखकर आएं।
 संदीप सिंह की कहानी जानें-
संदीप सिंह (दिलजीत दोसांझ) बचपन में स्कूल कोच की पिटाई के डर से हॉकी खेलना बंद कर देता है। उसका बड़ा भाई बिक्रमजीत सिंह (अंगद बेदी) अच्छा खिलाड़ी होने के बाद भी भारतीय टीम के लिए नहीं चुना जाता। संदीप को अपने कस्बे की एक हॉकी खिलाड़ी प्रीति (तापसी पन्नू) से प्यार हो जाता है। प्रीति कहती है कि अगर वह हॉकी खेलेगा तो ही उनकी बात बनेगी। प्रीति का दिल जीतने के लिए संदीप फिर से हॉकी खेलने लगता है। खेतों में चिडिय़ों को उड़ाने के लिए वह हॉकी से पत्थर उड़ाया करता था। उसका यह कारनामा देख बिक्रम दंग रह जाता है। बिक्रम कहता है कि इसे हॉकी की भाषा में ड्रैग फ्लिक कहा जाता है और बरसों लग जाते हैं इसे सीखने में। बिक्रम संदीप का अपने कोच हैरी (विजय राज) से मिलवाता है और उसकी किस्मत चमक उठती है। संदीप जल्द ही भारतीय टीम का स्टार खिलाड़ी बन जाता है। प्रीति और संदीप का प्यार परवान चढऩे ही लगता है कि अचानक एक हादसा दोनों के जीवन को झकझोर कर रख जाता है।

सूरमा के गीत देखें- 
 


ट्रेन में सफर के दौरान एक पुलिसवाले की गोली गलती से संदीप की पीठ में जा घुसती है। संदीप को कई महीने अस्पताल में गुजारने पड़ते हैं। उसके शरीर का निचली हिस्सा लकवाग्रस्त हो जाता है। प्रीति, जो अब भारत के लिए खेल रही थी, संदीप से मिलने अस्पताल आती है तो देखती है कि अब उसके मन में हॉकी में वापस आने की तमन्ना ही खत्म हो चुकी है। बस प्रीति उसके पास है वो यही सोचकर खुश है। प्रीति को लगता है कि अगर वह उसके जीवन में आ गई तो फिर वह कभी खड़ा नहीं हो पाएगा। प्रीति उसे छोड़कर लंदन चली जाती है। उससे फोन पर भी बात नहीं करती। संदीप हिल जाता है और नई जिंदगी जीने की ठान लेता है। हॉकी फेडरेशन के चेयरमैन (कुलभूषण खरबंदा) की वजह से उसे 35 लाख रुपये मंजूर किए जाते हैं, जिससे वह इलाज के लिए हॉलैंड जा सके । संदीप छह महीने में पूरी तरह से फिट होकर वापसी करता है और इस बार प्रीति के लिए नहीं भारत के लिए हॉकी खेलता है और कामनवेल्थ गेम्स में टीम को गोल्ड दिलाता है।
सूरमा के गीत देखें-  

मुझे नहीं मालूम की प्रीति और संदीप का लव एंगल कितना सही और कितना काल्पनिक है लेकिन फिल्म बेहतरीन बनी है। फिल्म को सत्यता के नजदीक रखने के लिए ज्यादातर शूटिंग पंजाब की ओरिजनल लोकेशंस पर की गई है और इसलिए फिल्म दिल को छू जाती है। कभी 'साथिया' व 'बंटी और बबली' जैसी फिल्में दे चुके शाद अली का निर्देशन अच्छा है लेकिन उतना अच्छा नहीं जितना उन दो फिल्मों में था। पता नहीं शाद को क्या हो गया है? कुछ सीन कच्चे लगते हैं। थोड़ा जल्दी में शूट किए गए लगते हैं। अगर और तफ्सील में जाते तो फिल्म और मजबूत बन सकती थी। संगीत ठीक-ठाक है। गीत फिल्म में बहुत शानदार लगते हैं लेकिन बाद में याद नहीं रहते। गुलजार ने लिखे हैं तो शब्द तो बेहतरीन होने ही थे।
 क्या है ड्रैग फ्लिक, जानें संदीप सिंह से 


दिलजीत दोसांझ संदीप के रोल में एकदम फिट हैं। हालांकि उनकी उम्र थोड़ी ज्यादा लगती है लेकिन फिर भी सिख होने के कारण वे इस रोल में एकदम परफेक्ट लगे हैं। अंगद बेदी तो कमाल ही कर देते हैं। अंगद लंबी रेस का घोड़ा हैं बस उन्हें रोल अच्छे नहीं मिल रहे। तापसी पन्नू तो जैसे ऐसे किरदारों के लिए ही बनी हैं। वे जो भी करती हैं वही अच्छा लगता है। खूबसूरत तो वे हैं ही साथ ही जिस तरह से वे रोल में घुसती हैं वो कमाल है। बाकी कलाकारों में विजय राज, सतीश कौशिक भी प्रभाव छोडऩे में सफल रहे हैं। विजय राज तो जब भी आते हैं छा जाते हैं।
 भाइयों की कहानी जानें-


'सूरमा' उस श्रेणी की फिल्म है जो न केवल आपको रूलाती है, हंसाती है या फिर मनोरंजन देती है बल्कि आपको जीवन जीने की प्रेरणा देती है। खासतौर से युवा पीढ़ी और बच्चों के लिए तो ऐसी फिल्में पथप्रदर्शक बन सकती हैं। आप भी देखिए और हां बच्चों को साथ लेकर जाईये। आपको बहुत कुछ हासिल होगा। आप महसूस करेंगे कि आपने अपने बच्चों के लिए कुछ अच्छा किया।

- हर्ष कुमार सिंह 

Friday 6 July 2018

DEEP PreVIEW : Fanney Khan

खूबसूरत ऐश्वर्या, इमोशंस और संगीत रहेंगे फिल्म की हाईलाइट

लगता है कि 'सीक्रेट सुपरस्टार' का एक और वर्जन आ रहा है। सपनों को जीने की कला, सफलता की ऊंचाइयां छूने को तमन्ना, गिरकर उठने की कहानी को दिखाने वाली ही एक फिल्म नजर आ रही है 'फन्ने खां'।
ट्रेलर से ही पूरी कहानी साफ है। टैक्सी चालक फन्ने खां (अनिल कपूर) की बेटी लता शर्मा (पीहू सैंड) सिंगर बनना चाहती है। गाती अच्छा है लेकिन शरीर से मोटी है। अनिल भी कभी मो. रफी की तरह सिंगर बनना चाहते थे लेकिन ऐसा कर नहीं सके। बेटी का नाम लता रखा और अपने अरमान पूरा करने का  ख्वाब देखने लगे।

पत्नी कविता शर्मा (दिव्या दत्ता) को अनिल की इस योजना में कोई यकीन नहीं है लेकिन फन्ने खां तो ठहरे फन्ने खां। अनिल बेटी को लता मंगेशकर के पुराने गानों की तरह गाने की कहते हैं लेकिन बेटी का मानना है कि आज के मॉडर्न दौर में पॉप संगीत की ज्यादा डिमांड है। कालेज में हूटिंग होने के बाद बेटी मशहूर पॉप सिंगर बेबी सिंह (ऐश्वर्या राय) की तरह दिखना-गाना चाहती है। फन्ने खां इससे सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि असली संगीत लता जी का ही था।
हालांकि फिल्म में बेबी सिंह को लता जी के पुराने गीतों को ही रिमिक्स करके गाते हुए दिखाया गया है। निर्देशक अतुल मंजरेकर ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि फन्ने खां का तर्क सही है। पुराने गीतों में जो बात थी वो आज के संगीत में नहीं। फिल्म में अधीर (राजकुमार राव) का भी दिलचस्प किरदार है। अधीर और फन्ने खां मिलकर बेबी सिंह का अपहरण करते हैं। योजना बनाते हैं कि फिरौती से जो पैसा आएगा उससे वे लता के सपनों को साकार बना सकेंगे। यानी फिल्म में कॉमेडी की भी भरपूर गुंजाइश है।
ट्रेलर देखने के बाद इमोशंस की इसमें भरमार नजर आती हैं। 'सीक्रेट सुपरस्टार' की तरह का ही क्लाइमैक्स मुझे इसमें नजर आ रहा है। संगीत दिया है प्रतिभाशाली अमित त्रिवेदी ने। संगीत अच्छा लग रहा है। पुराने गीतों को री-क्रिएट किया गया है जो देखने में अच्छा लग रहा है।

फिल्म पूरी तरह अनिल कपूर पर ही फोकस नजर आ रही है। वे इसके सहनिर्माता भी हैं। ऐश का रोल छोटा ही लग रहा है। फिर भी उनकी उपस्थिति फिल्म के स्टैंडर्ड को एकदम से उठा देती है। ऐश को इसमें से अलग करके देखें तो यह एक साधारण सा प्रोजेक्ट नजर आएगी। देखते हैं बाक्स आफिस पर जनता का रिस्पांस कैसा रहता है।



फिल्म का पहला गीत भी रिलीज हो गया है आनलाइन। आप भी देखिए। ऐश्वर्या क्या कमाल लग रही हैं-


International choreographer Frank Gatson Jr, who choreographs for Beyoncé and Usher, choreographs a song for #FanneyKhan... Here's #Mohabbat, featuring Aishwarya Rai Bachchan... Link:


- हर्ष कुमार सिंह 

(फिल्म 3 अगस्त 2018 को रिलीज हो रही है)

Thursday 5 July 2018

जानिएः Sanju में क्या दिखाया क्या छिपाया

हाल में रिलीज हुई संजय दत्त का बायोपिक 'संजू' में उनके जीवन के कुछ खास हिस्से तो दिखाए गए लेकिन कुछ को बिल्कुल भी नहीं छुआ गया। जो दिखाया गया उसे भी काफी हद तक मनमाफिक दिखाया गया। उनकी पहली गर्लफ्रेंड को दिखाया लेकिन उसका नाम व किरदार बदल दिया गया। कौन थी उनकी पहली गर्लफ्रेंड, क्यों नहीं खोली गई उसकी हकीकत ? कौन था वह नेता जो बात सुनते-सुनते ही सो जाता था ? अगर उसकी हकीकत खोली जाती तो शायद फिल्म ही रिलीज नहीं हो पाती। 

कुछ ऐसी सनसनीखेज जानकारियों को देने का प्रयास मैंने किया है अपने इस वीडियो में - 
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  • संजू का ये क्लाइमैक्स गीत पूरा देखें , मजा आएगा-