Friday 22 January 2016

DEEP REVIEW: Airlift- A strong film with good ‘Political Message’

एयरलिफ्टः  गंभीर राजनीतिक संदेश वाली मजबूत फिल्म 

 RATING- 4*

अक्षय ‘भारत’ कुमार की नई फिल्म ‘एयरलिफ्ट’ जो काम सबसे बेहतर तरीके से करने में सफल हुई है वो है ‘राजनीतिक मैसेज’ देने का काम। पिछले कुछ समय में भारत सरकार ने कुछ अशांत देशों में फंसे भारतीयों को निकालने के काम तत्परता और प्राथमिकता से किए हैं। इस फिल्म को देखने के बाद आपको आभास हो जाएगा कि इस तरह के अभियानों में तेजी की जरूरत क्यों आवश्यक है।
 -मुसीबत में फंसे लोगों पर क्या गुजर रही है उसे भारत में बैठे हुक्मरान व डिप्लोमेट नहीं समझ पाते। ये फिल्म यही सिखाने का संदेश सबसे पहले देती है।
 -इसके अलावा ये फिल्म उन लोगों को भी मैसेज देती है जो भारत से दूसरे देशों में जाते हैं और वहां पैसा कमाकर अपने देश को भूल जाते हैं। वे भूल जाते हैं कि उनकी सबसे बड़ी पहचान भारतीय होना ही है।
-तीसरा सबसे अहम व बड़ा मैसेज ‘एयरलिफ्ट’ यह देती है कि भारत से ज्यादा शांत व सुरक्षित देश कोई दूसरा नहीं हो सकता।

फिल्म की कहानी सच्ची घटना पर आधारित है। 90 के दशक में कुवैत में फंसे डेढ़ लाख भारतीयों को निकालने के लिए वहां रहने वाले कुछ भारतीयों के प्रयासों को ये फिल्म सलाम करने की सफल कोशिश करती है। फिल्म की पटकथा कसी हुई है और आपको एक मिनट के लिए भी अपनी सीट से हिलने की इजाजत नहीं देती। एक के बाद एक घटनाएं होती रहती हैं और फिल्म कब खत्म हो जाती है पता ही नहीं चलता।

फिल्म में गीत-संगीत को जितना जरूरी है उतना ही स्थान दिया गया है। क्लाइमेक्स के सींस में बजने वाला गीत दिल में देश के प्रति सम्मान की भावनाएं जगाने में सफल रहता है। फिल्म में गीत संगीत पर ज्यादा फोकस न करके स्क्रीनप्ले को गतिमान बनाए रखने पर जोर रहता है और इसलिए फिल्म अपेक्षित प्रभाव छोड़ने में सफल रहती है।

अक्षय कुमार फिल्म की जान हैं। वे इस रोल के लिए एकदम परफेक्ट हैं। बढ़ती उम्र के साथ जिस तरह के रोल वे कर रहे हैं वे उन्हें बतौर अभिनेता स्थापित कर रहे हैं। ‘होलीडे’, ‘बेबी’ और ‘एयरलिफ्ट’, लगातार तीन अच्छी फिल्में करने वाले अक्षय कुमार अब ‘मिशन-आपरेशन टाइप’ की फिल्मों के स्पेशलिस्ट बनते जा रहे हैं। वे इन रोल्स में जमते हैं और कभी ये नहीं लगता कि उनके अलावा भी कोई ऐसे किरदार निभा सकता है।

फिल्म में सबसे ज्यादा चौंकाया है निमरत कौर ने। लग नहीं रहा था कि अक्षय कुमार की फिल्म में हिरोईन भी अपना प्रभाव जमा सकती है। मुसीबत के समय अपने पति व परिवार के लिए चिंतित हो जाने वाली महिला के किरदार को उन्होंने बखूबी निभाया है। वे परिपक्व नजर आती हैं और ऐसे रोल्स के लिए परफेक्ट हैं। इंटरवल के बाद, एक सीन में जब वे अक्षय के समर्थन में रिफ्यूजी कैंप में अपना मत जाहिर करती हैं तो छा जाती हैं। आप ताली भी बजा सकते हैं। बहरहाल वे बालीवुड की टिपिकल हिरोइन के खांचे में फिट हो पाएंगी या नहीं ये देखने वाली बात होगी। उन्हें रोल चुनते समय ध्यान रखना होगा कि वो उन्हें फबता है या नहीं। कुछ वैसे ही जैसे विद्या बालन को करना होता है।

अगर आप अच्छी फिल्म देखने ही थियेटर जाते हैं तो इस फिल्म को जरूर देखें। खासतौर से युवा पीढ़ी जो खाड़ी संकट के इतिहास से वाकिफ नहीं हैं उन्हें ये फिल्म देखनी चाहिए। वैसे फिल्म जिस ईमानदारी से बनाई गई है उसे देखते हुए इसके बाक्स आफिस पर पैसा बरसाने की संभावनाएं कम हैं पर तारीफ खूब मिलने वाली हैं।

- हर्ष कुमार 

Thursday 21 January 2016

Sunny Leone: Welcome to Bollywood

सनी लियोनी के पोर्न स्टार से बालीवुड स्टार बनने का सफर एक झटके में पूरा हो गया है। CNN-IBN के जिस इंटरव्यू के लिए भूपेंद्र चौबे नामक टीवी पत्रकार को तमाम आलोचनाओं का सामना करना पडा है असल में वह इंटरव्यू सनी लियोनी के लिए वरदान साबित हुआ है। अब इंतजार कीजिए सनी लियोनी की ऐसी फिल्म के ऐलान का जिसमें उनके नायक तुषार कपूर, सचिन जोशी, वीर दास जैसे नाम नहीं होंगे। उनकी अगली फिल्म ऐसी भी हो सकती है जिसमें शायद वे बिकिनी में नहीं बल्कि साड़ी में नजर आएं। वे ऐसे किरदार में भी नजर आ सकती हैं जो उनके शरीर को नहीं बल्कि अभिनय की बानगी भी पेश करने का प्रयास करे।


ये सब बातें बहुत ही अजीब लग रही हैं लेकिन ये सब सही साबित हो सकती हैं। जिस सनी लियोनी का नाम बालीवुड के नामचीन सितारे अपने मुंह से लेते हुए भी झिझक महसूस करते थे उसी सनी के बारे में सोशल मीडिया पर जमकर समर्तन जताया जा रहा है। ऐसा लगता है जैसे सारा बालीवुड सनी लियोनी के समर्थन में उठ खड़ा हुआ है। आमिर खान ने तो फेसबुक पर ये लिखकर फाइनल मुहर ही लगा दी कि उन्हें सनी लियोनी के साथ काम करने में कोई दिक्कत नहीं होगी और उनके अतीत से उन्हें कोई लेना देना नहीं है।

सब जानते हैं कि हाल ही में सनी को चौबे को दिए साक्षात्कार के दौरान अपने कैरियर को लेकर कई कठिन सवालों का सामना करना पड़ा था। सनी से सवाल किया गया कि वह आमिर खान के साथ काम करना चाहती हैं लेकिन आमिर उनके साथ काम करना नहीं चाहते तो उन्हें कैसा लगता है? इसके अलावा सनी से पूछा गया कि विवाहित महिलाएं सनी लियोनी को अपने पतियों के लिए चुनौती मानती हैं, क्या वह इसकी परवाह करती हैं? सनी ने साक्षात्कार में पूछे गए सवालों के जवाब बहुत ही साहस के साथ दिए थे। उन्होंने चेहरे पर जरा भी शिकन लाए बिना सब सवालों के जवाब दिए। सनी ने मासूमियत के साथ ये भी कहा था कि हो सकता है कि आमिर उनके साथ काम करना पसंद न करें लेकिन वे उन जैसे कलाकार के साथ काम करके बहुत ही गर्व महसूस करेंगी।

चौबै ने उन पर बार-बार दबाव बनाया था कि वे किसी तरह अपने अतीत को लेकर नकारात्मक बात कहें या फिर ये ही कह दें कि अब उन्हें (सनी को) पोर्न स्टार होने पर शर्म आती है या पछतावा होता है, लेकिन सनी ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा और उनके सवालों को चेहरे पर अडिग भाव रखते हुए झेला। वैसे 20-21 मिनट का ये इंटरव्यू सनी के लिए किसी पुलिस थाने में हो रही पूछताछ से कम नहीं था लेकिन वे इसमें सफल रही और फिल्म इंडस्ट्री में उनके लिए लगाव उमड़ पड़ा। विद्या बालन, अनुष्का शर्मा, सुशांत सिंह, राधिका आप्टे, अर्जुन कपूर, शोभा डे, सुबी सैमुअल, शाहिद कपूर, अरशद वारसी, अदिति राव हैदरी, फराह खान, गीता बसरा, जेनिलिया देशमुख, अनिल कपूर, रीतेश देशमुख, श्रुति हसन समेत तमाम लोगों ने ट्वीट करके सनी के प्रति अपना समर्थन जाहिर किया और सनी ने सभी को थैंक्यू भी कहा।

आमिर ने अपने Facebook पेज पर लिखा, 'मुझे लगता है कि सनी बेहद शालीनता और गरिमा से पेश आईं। काश कि मैं साक्षात्कार लेने वाले के बारे में भी ऐसा कह पाता।‘ आमिर ने आगे लिखा, 'सनी मुझे तुम्हारे साथ काम करके खुशी होगी। मुझे तुम्हारे अतीत को लेकर किसी तरह की परेशानी नहीं है, जैसा कि साक्षात्कार लेने वाले ने कहा था। खुश रहो।‘ आमिर ने Twitter पर भी यह पोस्ट शेयर की। सनी ने आमिर के समर्थन पर आभार व्यक्त करते हुए जवाब में लिखा, 'यह देखकर मेरा दिल खुश हो गया। आपके समर्थन के लिए आपका बेहद आभार। यह मेरे लिए बेहद मायने रखता है। यह कहकर आपने मेरा पूरा साल बना दिया। आपका बेहद सम्मान करती हूं। मुझे यकीन नहीं हो रहा है। ‘
रियलिटी शो ‘बिग बास’ के जरिये हिंदुस्तान आने वाली पैंटहाउस की स्टार सनी को महेश भट्ट ने सबसे पहले पहचाना था और शो के दौरान घर में ही जाकर अपनी फिल्म ‘जिस्म 2’ के लिए साइन किया था। ‘जिस्म 2’ के पहले भाग में बिपाशा बसु थी और वे बड़ी स्टार बन गई थी लेकिन सनी के साथ ऐसा नहीं हुआ। उन्हें ‘रागिनी एमएमएस’, ‘लीला’, ‘जैकपाट’ जैसी बी ग्रेड फिल्में ही करने को मिली। इनमें उन्हें अपने शरीर को दिखाने के अलावा कुछ नहीं करना था। वे बार-बार कहती रही हैं कि वे अच्छे रोल करना चाहती हैं। उनके पास डायरेक्टर आते हैं ये कहकर वे उन्हें बहुत अच्छा रोल देंगे। उनकी इमेज को बदल देंगे लेकिन (हंसकर कहती हैं) सब वो ही सब चीजें कराने लगते हैं।
पर अब ऐसा नहीं होगा। बहुत संभव है कि इस बार डायरेक्टर उनके पास आएं एक अच्छी स्क्रिप्ट लेकर और शायद उनसे वो भी न करवाएं जो वे अब तक करती रही हैं और करना नहीं चाहती हैं।
 

Big Welcome to Bollywood Sunny
- हर्ष कुमार




Friday 15 January 2016

Inside Story: Break up of Ranbeer Kapoor and Katrina Kaif

रनबीर कपूर और कैटरीना कैफ के ब्रेकअप की खबर शुक्रवार को जंगल की आग की तरह फैल गई। शुक्रवार की रात को मुंबई में हुए ‘फिल्मफेयर अवार्ड्स समारोह’ के दौरान बस यही चर्चा होती देखी गई। मीडिया से लेकर स्टार तक इस बारे में बात करते सुने गए। सोशल मीडिया पर ये खबर दोपहर बाद ब्रेक हुई और रात तक सुर्खी बन गई। सबकी जुबान पर सवाल एक ही था कि दोनों अलग हो गए हैं ये कैसे पता चला ? पूरी तरह से पड़ताल की गई तो पता चला कि दरअसल रनबीर ने एक अलग घर ले लिया है और वहीं से ये खबर चली कि दोनों ने अलग होने का फैसला कर लिया है।

दरअसल कई साल से रनबीर और कैटरीना ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में थे और कार्टर रोड स्थित घर पर रह रहे थे। पता चला है कि रनबीर ने विल्सन अपार्टमेंट्स में शिफ्ट कर लिया है जबकि कैटरीना सिल्वर स्टैंड्स वाले घर में रहेंगी। रनबीर अपने नए घर में मां-बाप के साथ रहने की योजना बना रहे हैं। मुंबई से प्रकाशित अंग्रेजी के प्रमुख अखबार DNA ने इस बारे में एक बड़ी स्टोरी भी दी है। स्टोरी में इस बात का भी आकलन करने का प्रयास किया गया है कि दोनों के बीच क्यों नहीं बन पाई। हालांकि इनमें से कोई भी तर्क गले नहीं उतर रहा है। फिर भी ये खबर सही है कि दोनों ने अलग होने का फैसला कर लिया है।
रनबीर व कैटरीना की ये सैर सपाटे वाली फोटो कुछ साल पहले खूब वायरल हुई थी।

फिल्म स्टार्स की सोशल व फैशन लाइफ को कवर करने वाली वेबसाइट ‘मिस मालिनी’ ने भी दोनों के ब्रेक अप की खबर को कंफर्म किया है। इस साइट के स्टार्स में अच्छे सोर्स बताए जाते हैं। DNA का कहना है कि रनबीर की मां नीतू सिंह कभी भी कैटरीना को स्वीकार करने के मूड में नहीं नजर आई। इंस्टाग्राम पर नीतू ने कभी कैट की अपने परिवार के साथ फोटो शेयर नहीं की। जब कभी ग्रुप फोटो शेयर करने की बारी आई तो नीतू ने हमेशा ही कैटरीना को उसमें से क्राप कर दिया।
गौर से देखिये ये फोटो। जिसमें कैट को कट कर दिया गया।
कुछ समय पहले खबर चली थी कि ऋषि कपूर को कैटरीना ने पापा कहना शुरू कर दिया है। एक इंटरव्यू में जब ऋषि कपूर से ये सवाल किया गया तो वे भड़क गए थे। चिंटू ने कहा था- ये क्या बकवास है। मैं किसी को इतनी लिबर्टी नहीं देता हूं कि वह मेरे इतने नजदीक आ जाए। मैंने कैटरीना के साथ ‘नमस्ते लंदन’ व ‘जब तक है जान’ में काम किया है वह अच्छी लड़की है लेकिन उसके मुझे पापा कहने वाली बात सही नहीं है।

ये बात सब जानते हैं कि दीपिका व रनबीर की जोड़ी घर में सबको पसंद थी लेकिन दोनों का रिश्ता आगे नहीं बढ़ सका। रनबीर की जगह रणवीर ले चुके हैं लेकिन इसमें जरा भी शक नहीं है कि दीपिका की जोड़ी आज भी रनबीर के साथ गजब ढाती है। ‘ये जवानी है दीवानी’ में दोनों ने बड़ी सफलता हासिल की थी। कहा गया था कि इस फिल्म को अच्छा रिस्पांस इसलिए मिला क्योंकि इसमें रनबीर व दीपिका की जोड़ी थी। दोनों की कैमिस्ट्री ही गजब है। ‘तमाशा’ में भी दोनों की कैमिस्ट्री शानदार थी। दोनों के रोमांटिक सीन बेहद ही रीयल नजर आते थे।
हालांकि रनबीर की बहनें करीना व करिश्मा कैटरीना का पसंद करती हैं। दोनों के साथ वे अक्सर पार्टी करती नजर आती थी लेकिन जब तक ऋषि व नीतू की ओर से हरी झंडी नहीं मिलती तब तक दोनों का रिश्ता आगे बढ़ पाना संभव नहीं था। इंतजार कीजिए दूसरी खबर का।

Friday 8 January 2016

DEEP REVIEW : Wazir – A Farhan Akhtar movie with Big B in lead role

वजीरः एक भटकी हुई, कमजोर बदले की कहानी
REVIEW RATING - 2*

अमिताभ का किरदार फिल्म की जान है। 
पिछले कुछ सालों में कई बार ऐसा हुआ है जब फिल्मकारों ने मेगा स्टार अमिताभ बच्चन को लेकर प्रयोग किए हैं। कुछ सफल (पा व पीकू) हुए हैं तो कुछ विफल (शामिताभ), लेकिन एक बात सत्य है कि अमिताभ की फिल्म में उनके किरदार से ज्यादा पसंदीदा और कुछ नहीं होता। लोग अमिताभ को देखने जाते हैं। यही वजह है कि जब लोग ‘पीकू’ देखने जाते हैं तो उन्हें दीपिका से ज्यादा अमिताभ के किरदार से लगाव हो जाता है। कुछ ऐसा ही ‘वजीर’ के साथ भी है। फिल्म शुरू भी फरहान अख्तर पर होती है और खत्म भी फरहान पर लेकिन बीच में अमिताभ का पात्र सबके दिलो-दिमाग पर छा जाता है। ऐसा लगने लगता है कि अमिताभ बच्चन और फरहान अख्तर की जोड़ी कुछ ऐसा कमाल करेगी जो चौंका देगा, हिला देगा। पर ऐसा कुछ नहीं होता और एक धमाके के साथ अमिताभ का किरदार खत्म हो जाता है और फिल्म वहीं चार्म खो देती है।

DEEP REVIEW में डालते हैं फिल्म के प्लस व माइनस प्वाइंट्स पर नजरः-
1. ये जान लेना जरूरी है कि यह न तो एक्शन फिल्म है, न थ्रिलर, न दो दोस्तों की कहानी और न ही इमोशनल ड्रामा। ये एक साधारण रिवेंज यानी बदले की कहानी है। फरहान अख्तर अपनी बेटी के हत्यारों से बदला शुरू में ही ले लेते हैं और अमिताभ बच्चन बाद में। फिल्म के बारे में शुरू से ही प्रचारित किया जा रहा है कि ये दोस्ती की कहानी है लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। अमिताभ बच्चन अपनी बेटी की हत्या का बदला लेने के लिए फरहान अख्तर को मोहरे की तरह यूज करते हैं और यही फिल्म की कहानी है।
फरहान ने एटीएस अफसर का रोल बखूबी निभाया। 
2. एक बात समझ से बाहर है कि अमिताभ बच्चन को एक व्हील चेयर पर बैठा रहने वाला इंसान क्यों बनाया गया है ? क्या केवल इसलिए कि फरहान अख्तर को फिल्म में मुख्य नायक के रूप में पेश किया जा सके? अगर ऐसा ही करना था तो फिर इसमें अमिताभ बच्चन की जगह किसी भी कलाकार को लिया जा सकता था। अमिताभ बच्चन को अत्याधुनिक व्हील चेयर पर बैठे हुए देखकर दर्शक ये अंदाजा लगाने लगते हैं कि जो व्यक्ति खुद ही गाड़ी में बैठकर उसे चलाकार कहीं भी जा सकता है उसे अपना बदला लेने के लिए फरहान को यूज करने की क्या जरूरत थी?

3. फिल्म का क्लाइमेक्स बहुत ही कमजोर तरीके से शूट किया गया है। फरहान अख्तर जिस तरह से एक मिनिस्टर को कश्मीर में मारने के लिए जाते हैं उसमें कुछ भी नया नहीं था। न उसमें कोई प्लानिंग नजर आती है और न ही कोई रोमांच बाकी रह जाता है। मंत्री जी खुलेआम घूम रहे थे और उन्हें कोई भी आसानी से मार सकता था।

4. फिल्म पहले हाफ में कई अच्छे प्रभावशाली संवादों के व सींस के जरिये दर्शकों को बांधने में सफल रहती है। फिल्म के पहले ही सीन में ‘तेरे बिन’ गीत आ जाता है। जिसमें फरहान व खूबसूरत अदिति की पूरी कहानी दिखा दी जाती है। इससे संकेत मिलते हैं कि निर्देशक उनकी प्रेम कहानी आदि पर ज्यादा समय न खर्च करके अमिताभ बच्चन व फरहान पर फोकस करने जा रहा है। ऐसा ही होता भी है। फरहान और अमिताभ के बीच कई अच्छे सीन क्रिएट किए गए हैं। खासतौर से प्यादों को प्यालो में भरी वोदका में डुबोकर शतरंज खेलने वाला सीन तो बहुत बेहतरीन लिखा गया है। इस सीन में शर्त ये थी कि जिसके प्यादे मरते जाएंगे वो उन प्यालों को पीता रहेगा। बच्चन जान बूझकर हार रहे थे और पी रहे थे, और सब जानते हैं कि शराब पीकर संवाद बोलने का अंदाज अमिताभ बच्चन का कुछ और ही होता है। उनके कुछ संवादों पर आप अनायास ही ताली बजा उठेंगे।

5. अमिताभ बच्चन जिस समय अपनी पुरानी व्हील चेयर जल जाने के बाद दूसरी व पहली से ज्यादा आधुनिक चेयर लेते हैं तो दर्शकों को यकीन हो जाता है कि वे कुछ बड़ा करने की योजना बना रहे हैं। ये उत्सुकता उस समय और अधिक बढ़ जाती है जब वे फरहान को बिना बताए कश्मीर के लिए रवाना हो जाते हैं लेकिन जब एक ही धमाके में वे खत्म हो जाते हैं तो ऐसा लगता है कि फिल्म अपने मकसद से भटक गई। जो दर्शक बंधकर पहले हाफ को देख रहे थे वे दूसरे हाफ में खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं।
सबसे पापुलर 'अतरंगी' गीत क्लाइमेक्स में आता है 
6. फिल्म का संगीत इसका सबसे मजबूत पक्ष है। सारे गीत बैकग्राउंड में बजते है और अच्छे लगते हैं। इसके लिए कई संगीतकारों का प्रयोग किया गया है जिससे विविधता का आभास होता है, लेकिन संगीत के मामले में निर्देशक ने एक बड़ी भारी गलती की है। अमिताभ व फरहान अख्तर का गाया गीत ‘अतरंगी यारी’ फिल्म के एंड में टाइटल्स के साथ प्रयोग किया गया है जबकि इसे मुख्य फिल्म में यूज किया जाता तो ये ज्यादा प्रभावशाली साबित होता। अंत में दर्शक केवल थियेटर से बाहर निकलने की सोचने लगता है और एक गीत के लिए सिनेमा में बैठे रहना बोझ लगता है। गीत बहुत ही अच्छा है और इसे कैश करने के लिए इसे फिल्म में बीच में कहीं यूज किया जाता तो बेहतर होता।
अदिति सजल आंखों से दिल को छू लेती हैं। 

7. अभिनय के लिहाज से अमिताभ बच्चन व फरहान अख्तर बेजोड़ हैं। भले ही निर्देशक कितना भी कमजोर हो ये दोनों ही अपने पात्र को उठा देने में सक्षम हैं और दोनों ने यही किया भी है। अमिताभ जिस तरह से संवाद बोलते हैं वो अद्भुत है। उनका किरदार बेहद जिंदादिल है और दर्शकों पर छा जाता है। एटीएस आफिसर के रोल में फरहान अख्तर एकदम फिट नजर आते हैं। उनमें वो परिपक्वता नजर आती है जो इस तरह के रोल निभाते समय दिखाई जानी चाहिए। अदिति राव हैदरी नेचुरल ब्यूटी हैं और वे हर समय सुंदर लगती हैं। उनके कास्ट्यूम बेहतरीन तरीके से डिजाइन किए गए हैं जो उनके मुस्लिम किरदार को उभारकर सामने लाते हैं। अभिनय करने के नाम पर उन्हें ज्यादातर समय रोना ही था बस। एक धूर्त राजनीतिक का रोल मानव कौल ने शानदार निभाया है। कश्मीरी होने का लाभ भी उन्हें मिला है।
मानव कौल सबको चौंका देते हैं। 
8. फिल्म का कहानी में बहुत ही झोल हैं। अमिताभ बच्चन शुरू से ही कहते हैं कि उनकी बेटी की मौत हादसे में नहीं हुई बल्कि मर्डर किया गया है। पर किस आधार पर? केवल मानव कौल की आंखों से उन्होंने ये कैसे जान लिया कि उसने उनकी बेटी की हत्या की थी। मानव कौल की बेटी फरहान के पूछने पर कुछ नहीं बोलती लेकिन जब फरहान अख्तर मानव की हत्या करने के लिए आते हैं तो सब कुछ उगल देती है। वह इतने बड़े रहस्य से पर्दा उठाती है जो अविश्वनीय है। एक आतंकी हमले में सारे गांव के पचास से ज्यादा लोग मार दिए गए और किसी को मानव कौल पर शक नहीं हुआ ? मानवकौल आतंकी था तो उसने गांव की ही एक बच्ची को अपनी बेटी कैसे दिखा दिया? एक आतंकी का चंद साल में ही केंद्र सरकार में मंत्री बन जाना भी एक अविश्सनीय बात नजर आती है। इसी तरह से अमिताभ बच्चन का दिल्ली के राष्ट्रपति भवन की ओर से आने वाली रोड से गुजर रहे मंत्री की कार पर जूता फेंकने वाला सीन हजम नहीं होता। इसे कहीं सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान भी दिखाया जा सकता था। इसी तरह के अनगिनत झोल पूरी फिल्म में हैं।
बेहतरीन सीन को कमजोर फिल्मांकन। 
9. फरहान अख्तर बेहतरीन कलाकार हैं लेकिन ये जान लेना भी जरूरी है कि अगर आप अमिताभ बच्चन को मुख्य किरदार में ले रहे हैं तो उनके सामने किसी दूसरे कलाकार को जबरन मुख्य किरदार में स्थापित करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। ‘शामिताभ’ पूरी तरह से अमिताभ की फिल्म थी लेकिन उसमें धनुष को जरूरत से ज्यादा फुटेज देकर आर बाल्की जैसे डायरेक्टर भी मात खा गए थे। यहां भी यही होता नजर आता है।

10. फिल्म में रिपीट वैल्यू का अभाव है। आप इसे एक बार देख सकते हैं लेकिन दोबारा देखने के लिए इसमें कुछ नहीं है। शतरंज की बाजी में बादशाह के बाद सबसे ताकतवर वजीर होता है पर यहां फिल्म का टाइटल वजीर होने के बावजूद अंत तक ये स्थापित नहीं हो पाता कि वजीर अमिताभ बच्चन का किरदार है या फिर फरहान अख्तर का ? अगर आप अमिताभ के फैन हैं तो इसे जरूर देख ही लेंगे और अगर आपको फरहान अख्तर पसंद हैं तो उनके लिए भी ये फिल्म देखी जा सकती है। वे यहां अब तक अपने सबसे अलग रोल में नजर आए हैं और उनके लिए एक बार तो फिल्म देखी ही जा सकती है।

- हर्ष कुमार













Wednesday 6 January 2016

Farhan Akhtar: A versatile personality...more than a film artist

फरहान अख्तरः कलाकार ही नहीं एक बेहतरीन बौद्धिक व्यक्तित्व भी
हिंदी सिनेमा के सबसे प्रतिभाशाली कलाकारों में से एक फरहान अख्तर का मानना है कि फिल्म इंडस्ट्री लोगों का मनोरंजन करके देश के प्रति अपने योगदान को भली भांति निभा रही है। इसके अलावा फिल्म इंडस्ट्री के लोग कुछ इस तरह से भी देश के लिए अपना योगदान कर रहे हैं जिसका बखान करने की वे (योदगान करने वाले कलाकार) जरूरत नहीं समझते।

फरहान अपनी फिल्म ‘वजीर’ के प्रमोशन के सिलसिले में मंगलवार को दिल्ली में थे और अपने निर्माता विधु विनोद चोपड़ा, निर्देशक बिजॉय नांबियार व फिल्म में अपनी नायिका अदिति राव हैदरी के साथ ‘पंजाब केसरी (जालंधर)/नवोदय टाइम्स’ के दफ्तर आए थे। फरहान के साथ बातचीत से ये साफ नजर आया कि वे जितने बेहतरीन निर्माता, निर्देशक, लेखक, गायक व अभिनेता हैं उससे भी बेहतरीन वे इंसान के तौर पर हैं। दूसरी फिल्मी हस्तियों से बिल्कुल अलग फरहान देश, समाज और अपनी फिल्म बिरादरी के बारे में बहुत सजग व सतर्क नजर आते हैं और चीजों को बहुत ही गंभीरता से लेते हैं।


सवाल जवाब का सिलसिला चला तो फरहान से सवाल उनकी फिल्म ‘वजीर’ के बारे में कम और दूसरे विषयों पर ज्यादा हो रहे थे। दरअसल फरहान में ये गुण अपने पिता जावेद अख्तर से आया है। जावेद साहब भी समाज के बारे में अपना एक नजरिया रखते हैं और ये उनकी बातों व शायरी में भी झलकता है। फरहान का कहना था कि फिल्म कलाकारों से लोगों की आशाएं बहुत होती हैं। हर विषय पर लोग हम लोगों का व्यू जानना चाहते हैं। ऐसे में हम लोग कई बार निशाने पर भी आ जाते हैं। सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि अगर आप किसी विषय पर अपना कोई स्टैंड रखते हैं तो फिर आपको इसे निभाना भी चाहिए। ऐसे में हम लोग कुछ ऐसे मुद्दों पर बात करने से बचते हैं जिन पर बाद में चलकर कायम रह पाना मुमकिन न हो पाए। वैसे लोग हमसे तो अपेक्षा रखते हैं कि हम हर विषय पर बोलें लेकिन क्या आपने कभी डाक्टर्स को किसानों के आत्महत्या के मसले पर बोलते या धरना प्रदर्शन करते देखा है ? मैंन तो दूसरे वर्गों के लोगों को इस तरह के मुद्दों पर आवाज उठाते बहुत कम देखा है। जब हमें लगता है कि किसी मुद्दे पर बोलना जरूरी है तो हम बोलते भी हैं और अपना पक्ष भी रखते हैं। कभी इसे पॉजिटिव तरीके से देखा जाता है तो कभी निगेटिव।

‘वजीर’ के बारे में फरहान का कहना था कि ये फिल्म उनकी अब तक बतौर अभिनेता की गई दूसरी फिल्मों से बिल्कुल अलग है। इसमें वे एक एटीएस अफसर की भूमिका में है जिसके लिए एक अलग तरह की मनःस्थिति की जरूरत होती है। इसके लिए उन्होंने काफी मेहनत भी की है। पिछले काफी समय से फरहान बतौर अभिनेता (जिंदगी ना मिलेगी दोबारा, भाग मिल्खा भाग, दिल धड़कने दो) ही नजर आ रहे हैं। जबकि डायरेक्टर के रूप में उनकी अंतिम फिल्म ‘डॉन 2’ थी जिसे आए कई साल बीत चुके हैं। इस बारे में उनसे सवाल किया तो फरहान का कहना था कि अभी डायरेक्शन से उन्होंने ब्रेक लिया हुआ है। अभिनय व गायकी को वे काफी इंजॉय करते हैं और फिलहाल इसी पर फोकस कर रहे हैं। डायरेक्शन के बारे में उनका कहना था कि जब उन्हें लगेगा कि उनके पास कोई ऐसी कहानी आ गई है जिसे डायरेक्ट किया जाना चाहिए तो वे जरूर करेंगे। अपनी आने वाले फिल्म ‘रॉक आन2’ को लेकर भी फरहान काफी उत्साहित हैं और उन्हें उम्मीद है कि वे इस फिल्म से भी सबका दिल जीत सकेंगे जैसा कि उन्होंने ‘रॉक आन’ में किया था।
‘वजीर’ में मेगा स्टार अमिताभ बच्चन के साथ काम करने के अनुभव को भी उन्होंने अद्भुत बताया। फरहान का कहना है कि अमित जी बतौर साथी कलाकार व बतौर निर्देशक उन्हें अलग-अलग रूप में नजर आए। ‘वजीर’ में उनके साथ गीत भी गाने का मौका मिला और ये अनुभव भी लाइफ टाइम रहा।

- हर्ष कुमार