Friday 13 April 2018

DEEP REVIEW : October

इमोशंस से भरी 'अक्टूबर' में चमके वरुण धवन

Rating- 5*
वरुण धवन एक अच्छे अभिनेता हैं इससे तो किसी को इंकार नहीं था लेकिन वे इतने अच्छे अभिनेता हैं यह किसी को यकीन नहीं था। धवन ने ‘अक्टूबर’ में कमाल कर दिया है। मनोरंजन के तमाम तत्वों- नाच गाना, कॉमेडी, एक्शन आदि से दूर यह फिल्म आपको एक सेकेंड के लिए भी बोर नहीं होने देगी। अगर आप मानवीय संवेदनाओं और इमोशंस वाली फिल्में देखने के शौकीन हैं तो यह फिल्म आपके लिए है। छोटी सी कहानी को शूजीत सरकार ने जिस तरह से पेश किया है वह दिल को छू जाता है। सब कुछ बहुत ही वास्तविक लगता है। ऐसा लगता ही नहीं कि आप फिल्म देख रहे हैं। आपको लगेगा कि आप उन लम्हों को जी रहे हैं जो फिल्म के कलाकारों के साथ गुजर रहे हैं। 

कहानी को अगर मैं पूरी तरह से रोमांटिक ही कहूं तो गलत नहीं होगा। यह ऐसा रोमांस है जो संवेदना से जन्म लेता है, भावनाओं से आगे बढ़ता है और फिर भावनाओं में ही सिमटकर रह जाता है। दानिश वालिया उर्फ डेन (वरुण धवन) दिल्ली के द्वारका में मौजूद रेडिसन ब्लू होटल में इंटर्न है। होटल मैनेजमेंट का कोर्स करने के बाद जरूरी ट्रेनिंग कर रहा है और रोजाना कोई न कोई गलती करता रहता है। लापरवाही भी करता है और बदतमीजी भी करता है। उसके तमाम साथी उसे बचाते रहते हैं। शिवली (बनीता संधू) भी साथ ही इंटर्न है और डेन से सहानुभूति रखती है। नए साल की रात में सारे इंटर्न होटल की छत पर पार्टी कर रहे थे कि अचानक शिवली फिसलकर नीचे गिर जाती है। शिवली गंभीर रूप से घायल हो जाती है। उसे एक बड़े महंगे अस्पताल में भर्ती कराया जाता है। डेन दो दिन बाद लौटकर आता है तो उसे पता चलता है कि ऐसा हादसा हो गया। शिवली कोमा में जा चुकी थी। उसका बचना मुश्किल था। डेन उसका हाल पूछने जाता है तो उसे पता चलता है कि छत से गिरने से पहले शिवली ने साथियों से डेन के बारे में पूछा था कि वह कहां है? यहीं से डेन के मन में शिवली के प्यार का अंकुर फूटता है। वह दिन रात अस्पताल के चक्कर लगाने लगता है। शिवली अचेत पड़ी हुई है लेकिन डेन उसकी छोटी-छोटी हरकतों में अपने प्रति प्यार के संकेत ढूंढने लगता है। डेन जब शिवली के पसंदीदा फूल बाग से उठाकर लाता है तो उसके अचेत शरीर में हरकत होती है। यहां से डेन के यकीन हो जाता है कि शिवली भी उसे प्यार करती है। अस्पताल में ही शिवली को महीनों गुजर जाते हैं। इस बीच अपनी हरकतों की वजह से डेन को होटल से निकाल दिया जाता है। डेन की मां को यह पता चलता है कि उनका बेटा एक बीमार लड़की से प्यार करने लगा है तो वह परेशान हो जाती हैं और शिवली से मिलने अस्पताल में आती हैं। शिवली की मां को लगता है कि डेन, जो अब तक उनके परिवार से घुलमिल चुका था, का कैरियर उनकी बेटी की वजह से बरबाद हो रहा है। वह उसे चले जाने के लिए कहती हैं। डेन वहां से चला जाता है और हिमाचल प्रदेश में किसी होटल में नौकरी करने लगता है। महीनों गुजर जाते हैं। एक दिन फोन पर शिवली की मां बताती है कि उसकी तबीयत और बिगड़ गई है तो डेन फिर वापस आ जाता है। अंत में शिवली दुनिया से चली जाती है। शिवली की मां दिल्ली छोड़कर जाने लगती है तो शिवली के पसंदीदा फूल के पेड़ का जिम्मा डेन पर छोड़ जाती है। यहीं से डेन को अपने प्यार को पाने का नया मकसद मिल जाता है। 

हालांकि फिल्म का अंत बताना नहीं चाहता था लेकिन फिल्म की कहानी ही इतनी दिल को छू जाने वाली है कि बताए बिना नहीं रहा गया। यह फिल्म बताने या सुनने वाली नहीं बल्कि देखने वाली है। वरुण धवन की तारीफ जितनी भी की जाए कम है। वरुण धवन तो फिल्म की जान हैं। अपने कैरियर की शुरूआत में ही वरुण ने ऐसी फिल्म चुनकर खुद को रणवीर सिंह व रनबीर कपूर की क्लास में ला खड़ा किया है। अब आप उनकी तुलना उनकी उम्र के दूसरे अभिनेताओं से नहीं कर सकते। लेखिका जूही चतुर्वेदी की भी तारीफ करना चाहूंगा। उन्होंने ‘पीकू’ के बाद एक और शानदार फिल्म लिखी है। फिल्म का एक एक सीन दिल को छू जाता है। आप फिल्म में खो जाते हैं और कब आपकी आंखों में आंसू तैर आएंगे आपको पता ही नहीं चलेगा। बनीता संधू सारे समय बिस्तर पर पड़ी रहती हैं और उन्होंने अपने रोल को बखूबी निभाया है। बनीता की मां के रोल में स्टेज कलाकार गीतांजलि राव ने जान डाल दी है। वे जोरदार अदाकारा हैं। संगीत नहीं है लेकिन शांतुन मित्रा ने बैकग्राउंड संगीत से फिल्म को बांधे रखा है। लोकेशंस एकदम ओरिजनल हैं और फोटोग्राफर ने उन्हें खूबसूरती से कैद किया है। दिल्ली की मैट्रो, सर्दियों की रातों को सुंदरता से शूट किया गया है। 

कुल मिलाकर यह फिल्म देखने लायक है इसे जरूर देखें। ऐसी फिल्में रोज-रोज नहीं बनती। 

- हर्ष कुमार सिंह