Friday 1 June 2018

Deep Review : Veere Di Wedding

Rating- 2*
‘वीरे दि वेडिंग’ के रिलीज होने से पहले ही इसकी तारीफों का सिलसिला शुरू हो गया था। बालीवुड की नामचीन हस्तियों ने इस फिल्म को देखने के बाद सोशल मीडिया के माध्यम से इसकी तारीफ करनी शुरू कर दी थी। फिर सोनम कपूर की ही शादी हो गई। फिल्म को रिलीज से पहले ही इतना हाइप मिल गया था कि इसकी बंपर ओपनिंग लगनी तय थी। इस फिल्म को बिंदास महिलाओं की फिल्म के रूप में प्रचारित किया जा रहा था, तो जाहिर है आज के जमाने की महिलाएं तो इसे देखेंगी। यही हो भी रहा है।

जिस शो में मैंने यह फिल्म देखी उसमें 90 प्रतिशत महिलाएं थी। मैट्रो शहरों की आधुनिक महिलाएं अपनी दोस्तों के साथ फिल्म देखने आई हुई थी। कुछ के साथ उनके पति थे कुछ के साथ उनके पुरुष दोस्त। गौर से देखा तो बहुत कम महिलाएं ऐसी थी जो अपने व्यस्क बच्चों के साथ थी। चूंकि फिल्म को ए सर्टिफिकेट मिला है तो छोटे बच्चे तो जा ही नहीं सकते। फिल्म में बीच-बीच में महिलाओं के ठहाके भी चल रहे थे क्योंकि फिल्म की चार मुख्य पात्रों को खुलकर बोल्ड डायलाग दिए गए है। जिन गालियों को हम गलियों, बस या ट्रेन की भीड़ में किसी के मुंह से सुनकर शर्मिंदा या नाराज हो जाया करते हैं उन्हें यहां लीड कलाकारों के मुंह से बोलते हुए सुनकर हंसी छूट रही थी। यही तो आधुनिकता है। सार्वजनिक स्थान पर आप सुसंस्कृत व सभ्य हो जाते हैं लेकिन जैसे ही निजी मनोरंजन की बात आती है तो हम यह आवरण उतार फेंकते हैं।
सुमित व्यास आपको पसंद आएंगे
इस फिल्म में कई अनूठे प्रयोग किए गए हैं। हिंदी सिनेमा के इतिहास में शायद यह पहला मौका होगा जब female masturbation को खुलेआम स्क्रीन पर दिखाया गया है। स्वरा भास्कर को अपने बिस्तर पर पति के सामने ऐसा करते हुए दिखाया गया है। भले ही सीन उतनी गंभीरता से नहीं फिल्माया गया है लेकिन दिखाया तो masturbation ही है। शायद निर्देशक की यह सोच रही होगी कि अगर वे महिलाओं को लेकर एक बोल्ड फिल्म बना रहे हैं तो यह भी दिखा सकते हैं। वे जानते थे कि फिल्म को ए सर्टीफिकेट मिलना तय है। इसलिए जितनी भी गालियां दिलवानी हैं, जितने भी कपड़े उतरवाने हैं उतरवा लो लड़कियों से। चारों ही हिरोइनों ने इसमें कोई कसर नहीं छोड़ी है। बेड से लेकर बिकिनी, सिगरेट से लेकर दारू तक सब कुछ दिखा दिया गया है। किस भी हद तक चले गए हों लेकिन निर्देशक शशांक घोष फिल्म स्वरा भास्कर के masturbation सीन के अलावा कुछ भी ऐसा नहीं दिखा सके हैं जो पहले आपने नहीं देखा हो। सब कुछ देखा हुआ लगता है।

अबू जानी-संदीप खोसला की एक खूबसूरत ड्रैस में करीना।

कहानी में कुछ भी ऐसा नहीं है जो लिखा जा सके। या यूं कहूं कि कहानी जीरो है तो गलत नहीं होगा। कुछ साल पहले आई जोया अख्तर की फिल्म ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबरा’ को देखने के बाद ही शायद शशांक को इस फिल्म को बनाने की प्रेरणा मिली होगी। कालिंदी (करीना कपूर), अवनी (सोनम कपूर), साक्षी (स्वरा भास्कर) व मीरा (शिखा तलसानिया) स्कूल से ही पक्की दोस्त हैं। पहले सीन में वे स्कूल की घंटी बजाकर छुट्टी कर शरारती होने की सबूत देती हैं और फिर फिल्म दस साल आगे चली जाती है। दिखाया जाता है कि सबकी जिंदगी में कुछ न कुछ समस्या है। साक्षी का तलाक होने वाला है, मीरा ने घरवालों से छिपकर विदेश में शादी कर ली है बच्चा भी है, अवनी की शादी नहीं हो रही और कालिंदी की होने वाली है। कालिंदी की शादी के लिए ही चारों फिर से मिलती हैं और फिर वही धमाल मचाती हैं।

निर्देशक ने फिल्म को बोल्ड बनाने के लिए चारों को खूब दारू व सिगरेट पिलाई हैं। पर कोई भी हिरोइन उन सींस में सहज नहीं लगती। करीना कपूर शानदार काम करती रही हैं और यहां भी वे अपना रोल बखूबी निभा ले गई हैं। स्वरा को तो किरदार ही ऐसा मिला है जो सबको पसंद आएगा। अगर ये कह दूं कि इस फिल्म से सबसे ज्यादा फायदा स्वरा को ही होगा तो गलत नहीं होगा। सोनम कपूर पता नहीं क्यों इस फिल्म में बहुत ही खराब लगी हैं। कई बार तो कैमरा इतने गंदे तरीके से उनके चेहरे पर फोकस किया गया है कि वे बेहद कमजोर व बीमार नजर आती हैं। सोनम की तो होम प्रोडक्शन है। पिता अनिल कपूर के नाम पर उनकी बहन रिया कपूर ने फिल्म का निर्माण किया है। एकता कपूर तो को-प्रोड्यूसर हैं। उन पर तो विशेष फोकस किया जाना चाहिए था। नीना गुप्ता, विवेक मुश्रान आदि साथी कलाकार छोटे-छोटे रोल में ठीक हैं। प्रमुख कलाकारों में सबसे ज्यादा प्रभावित किया सुमित व्यास ने। वे थोड़े मैच्योर लगते हैं और हल्के फुल्के किरदारों की भीड़ में बहुत ही सहज नजर आते हैं।

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फिल्म का संगीत अच्छा है। बादशाह का गाया गीत ‘तारीफें’ अंत में आता है लेकिन लोग उसे देखने के लिए सिनेमा में बैठे रहते हैं। इसके अलावा ‘लाज शरम’, ‘वीरे’, ‘आ जाओ ना’ भी अच्छे हैं। संगीत के लिए शाश्वत सचदेव व विशाल मिश्रा की तारीफ की जानी चाहिए। अबु जानी- संदीप खोसला ने लंबे समय बाद किसी फिल्म के लिए कास्ट्यूम डिजाइन किए हैं और शानदार तरीके से किए हैं। यह फिल्म की सबसे बड़ी खासियतों में से एक है। लोकेशन अच्छी हैं और दिल्ली वालों को पसंद आएंगी। बाराखंबा रोड का बंगला, ग्रेटर कैलाश की कोठियां, सरोजिनी नगर की मार्किट आपको जाने पहचाने लगेंगे।

अगर आप फिल्में मनोरंजन के लिए देखते हैं तो यह आपको अच्छी लग सकती है लेकिन अगर आप कुछ गंभीर व अच्छा काम देखने के शौकीन हैं तो यह फिल्म आपके लिए नहीं है। फैमिली एंटरटेनमेंट तो यह नहीं है। मां-बहन की गालियां, एफ शब्द का हर बात में इस्तेमाल आपको कोफ्त पैदा कर देगा।

- हर्ष कुमार सिंह

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