Friday 15 June 2018

DEEP REVIEW : Race 3

सलमान खान के जबर्दस्त फैन हैं तो देख लीजिए, वर्ना जाने दीजिए 

फ्रेंचाइजी फिल्मों को बनाने वालों को न जाने किसने कह दिया है कि ये फिल्में अपने नामों की वजह से हिट हो रही हैं। यही कारण है कि 'हाउसफुल' और 'हेट स्टोरी' के नाम से 4-4, 'धूम', 'दबंग' और 'रेस' के नाम से 3-3 फिल्में बन चुकी हैं। और भी बहुत सी फिल्में इस तरह बनाई जा रही हैं। हकीकत यह है कि फिल्में कहानी से चलती हैं और जिसकी कहानी अच्छी होगी उसे देखने के लिए लोग किसी भी नाम से आएंगे। हालीवुड में यह चलन था जहां एक ही नाम से सीरीज चलती हैं और 20-20 फिल्में तक बन चुकी हैं।


'रेस 3' का दुर्भाग्य यह है कि इसकी कहानी 80 के दशक में आने वाले वेदप्रकाश शर्मा व सुरेंद्र मोहन पाठक के जासूसी उपन्यासों की तरह है। यानी कभी भी कहीं भी कहानी में कोई नया पेंच ला दीजिए और फिर एक फ्लैशबैक दिखाकर उसे साबित कर दीजिए। इस फिल्म में भी ऐसा कई बार किया गया है। बल्कि मैं तो यह कहूंगा कि इतनी बार किया गया है कि दर्शक कंफ्यूज हो जाता है कि जैकलीन फर्नांडीज किसकी तरफ है और बॉबी देयोल किसका बेटा है।
ईद पर हर साल आने वाली सलमान खान की फिल्में बिजनेस तो बढिय़ा कर ही लेती हैं लेकिन कुछ ऐसी होती हैं जो यादगार बन जाती हैं। उनकी 'बजरंगी भाईजान', 'सुल्तान' जैसी फिल्मों को आप कितनी बार देख लीजिए मजा आएगा लेकिन 'ट्यूबलाइट', 'जय हो', 'दबंग 2' आदि एक बार भी नहीं झेली जाती। 'रेस 3' भी दूसरी श्रेणी की फिल्मों में है। यानी वन टाइम मूूवी। 'रेस 2' भी खराब थी लेकिन 'रेस 3' तो सबसे ज्यादा खराब है। पूरी फिल्म में या तो पार्टी चलती रहती है या फिर एक्शन होता रहता है। एक्शन सीन इतने लंबे-लंबे हैं कि अगर इन्हें फिल्म से हटा दें तो फिल्म 40 मिनट की ही रह जाएगी।

कहानी आधा दर्जन किरदारों के ईर्द गिर्द घूमती है। शमशेर सिंह (अनिल कपूर) भारत का भगौड़ा है और अल शिफा नाम के एक काल्पनिक देश में रहता है। सूरज (शाकिब सलीम) व संजना (डेजी शाह) शमशेर के जुड़वां बच्चे हैं और सिकंदर (सलमान खान) उनका सौतेला भाई है। यश (बॉबी देयोल) भी शमशेर की टीम का हिस्सा है। जेसिका (जैकलीन) एक जासूस है और राना (फ्रेडी दारूवाला) व शमशेर के पीछे लगी है। सूरज व संजना को सिकंदर नहीं जरा नहीं भाता जबकि शमशेर उस पर भरोसा करता है। सब मिलकर साजिश करते हैं सिकंदर को रास्ते से हटाने की क्योंकि वह उनकी आधी जायदाद का वारिस है। कई रहस्यों से परदा उठने के बाद कहानी अंत तक पहुंचती है। अंत में शमशेर व यश जेल में पहुंच जाते हैं और सिकंदर, सूरज व संजना मिल जाते हैं। इससे ज्यादा बताऊंगा तो आप फिल्म को एक बार भी नहीं झेल पाएंगे।
फिल्म से सलमान खान को अगर हटा दें तो आप इसे एक बार देखने लायक भी नहीं पाएंगे। सलमान आते हैं तो फिल्म में कुछ करंट आता है नहीं तो फिल्म बहुत सुस्त बनी रहती है। असली बात यह है कि कहानी कुछ इस तरह से अनफोल्ड की गई है कि सब कुछ इंटरवल के बाद ही घटता है। जैसे ही रहस्य पर से परदा उठता है वैसे ही फिल्म का दि एंड हो जाता है।

एक और बहुत खराब चीज है इस फिल्म में। इसका संगीत किसी काम का नहीं है। 'रेस' व 'रेस 2' का संगीत अच्छा था लेकिन इसमें एक भी गीत ऐसा नहीं है जिसे आप याद रख सकें या गुनगुना सकें। जबकि सलमान की फिल्मों के गीत बहुत हिट होते हैं। जग घुमेया, बेबी को बेस पसंद है, मुन्नी बदनाम हुई, तेरी-मेरी प्रेम कहानी, स्वैग से करेंगे सबका स्वागत, को कौन भूल सकता है? पर 'रेस 3' में कोई गीत थियेटर से बाहर निकलने के बाद याद नहीं रहा। विशाल मिश्रा, मीत ब्रदर्स व सलीम-सुलेमान ने मिलकर गीत गढ़े हैं और सब कबाड़ा हो गया है। गीतकारों की लिस्ट में सलमान खान का नाम देखकर ही लग गया था कि संगीत को लेकर निर्माता कितने गंभीर थे।

 'रेस' व 'रेस 2' का निर्देशन अब्बास-मस्तान की जोड़ी ने किया था और सस्पेंस थ्रिलर बनाने में उनका कोई सानी नहीं। रेमो डिसूजा नृत्य निर्देशक अच्छे होंगे लेकिन मजेदार व जीवंत फिल्म बनाने की कला उन्हें नहीं आती। गीतों का फिल्मांकन वे अच्छा कर लेते हैं पर उनके भीतर का डांस डायरेक्टर बार-बार बाहर आ जाता है। तभी तो लद्दाख में रोमांटिक गीत के दौरान डेजी शाह हवा में झूल-झूलकर डांस करने लगती हैं। यही नहीं जब डेजी व जैकलीन में फाइट होती है तो लगता है कि डांस कंपीटिशन चल रहा है। रेमो के निर्देशन में दम नहीं है। वे 'एबीसीडी' जैसी फिल्में ही बना सकते हैं।


अभिनय में किसी को कुछ करने का मौका ही नहीं था। अनिल कपूर ने साधारण काम किया है। सलमान पर कुछ ज्यााद फोकस किया गया तो वे सही लगे हैं। बॉबी देयोल इसमें अच्छे लगे हैं लेकिन अंत में उन्हें विलेन दिखा दिया गया। उन्हें इस फिल्म से कुछ फायदा नहीं होने वाला है। शाकिब ठीक-ठाक हैं। डेजी शाह की कद काठी ऐसी है कि कभी कभी तो वे सलमान पर भी भारी पड़ती हैं। जैकलीन का काम ग्लैमर परोसना था और यही उन्होंने किया है। वे सुंदर लगती हैं और जब भी स्क्रीन पर आती हैं तो अच्छी लगती हैं। अभिनय करने के लिए तो उनसे कभी कहा ही नहीं जाता है शायद।

फिल्म देखने के बाद दर्शकों की प्रतिक्रिया बहुत खराब थी। उन्हें लग रहा था कि शायद वे ठगे गए। मुझे भी ऐसा लगा। इसलिए मैं गुस्से में थ्री डी चश्मा ही लेता आया। कुछ तो भरपाई होगी। वैसे आप वीकेंड पर इसे देखने की योजना बना रहे हैं तो मत देखिए। पछताएंगे और चश्मा लेकर आने का मौका भी सबको नहीं मिलता है।

Rating 1*

- हर्ष कुमार सिंह 

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