खूबसूरत नुसरत भरूचा के लिए देख सकते हैं 'सोनू के टीटू की स्वीटी'
Rating - 2*
मेरी आदत है कि जो फिल्म देखने के लायक लगती है वही देखने जाता हूं। कहने का मतलब यह है कि फिल्म की प्रोडक्शन वैल्यू आदि ऐसी लगनी चाहिए कि वह कुछ अलग है या फिर बड़ी फिल्म है, स्टार कास्ट व निर्देशक के लिहाज से। इसके अलावा कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जिन्हें उनके बाक्स आफिस पर अनपेक्षित रूप से सफल हो जाने के बाद देखता हूं। पहले भी कई बार ऐसा हुआ है। एक या दो हफ्ते बाद रीव्यू करने का कोई मतलब नहीं रह जाता इसलिए समीक्षा नहीं करता हूं। ऐसा कई बार हुआ है जैसे- ‘गोलमाल अगेन’, ‘करीब करीब सिंगल’, ‘सीक्रेट सुपर स्टार’ आदि फिल्में बाद में देखीं लेकिन ऐसा कुछ नहीं लगा कि उनकी समीक्षा करूं। दो साल पहले ‘की एंड का’ को भी दो सप्ताह बाद देखा था और समीक्षा करने से रह नहीं पाया था। फिल्म कामयाब भी थी और बेहतरीन भी। ‘की एंड का’ के रीव्यू को हजारों लोगों ने पढ़ा था दो सप्ताह बाद भी।पिछले हफ्ते रिलीज हुई ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ की जहां भी देख रहा था तारीफ हो रही थी। रीव्यू भी अच्छे-अच्छे आ रहे हैं। बाक्स आफिस पर दो हफ्ते का कलेक्शन शानदार हुआ है सोचा देख ही लूं कहीं अच्छी फिल्म मिस न कर दूं। इस फिल्म को अब तक न देखने के पीछे एक वजह यह भी थी कि ‘प्यार का पंचनामा’ की टीम की फिल्म थी यह। ‘प्यार का पंचनामा’ को जरा भी झेल नहीं पाया था। कुल मिलाकर फिल्म देखने की बिल्कुल मन नहीं था। केवल इसकी बाक्स आफिस सफलता की वजह से देखा और पाया कि फिल्म को एक बार देखने में कोई बुराई नहीं है।
इस फिल्म के सफल होने की सबसे बड़ी वजह यह नजर आ रही है कि इस समय बाजार में आ रही फिल्मों का स्तर बहुत ही खराब है। फिल्मों में कहानी और अभिनय का अभाव है। संगीत का स्तर बेहद खराब हो गया है। ऐसे में थोड़ी सी काम चलाऊ फिल्म भी आ जाती है तो वीकेंड पर फिल्म देखने के आदि हो चुके मल्टीप्लेक्स के दर्शक उसे देख ही लेते हैं। कुछ ऐसा ही ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ के साथ भी हुआ है। फिल्म अपने हास्य के कारण दर्शकों को गुदगुदा रही है और इसलिए पसंद की जा रही है।
कहानी तो इसकी एक लाइन की है। सोनू (कार्तिक आर्यन) का दोस्त टीटू (सन्नी सिंह) जिस लड़की स्वीटी (नुसरत भरूचा) के साथ शादी करने वाला है उसे सोनू बिल्कुल पसंद नहीं करता। सोनू को लगता है कि लड़की कुछ ज्यादा ही परफेक्ट बनने की कोशिश कर रही है इसलिए वह ठीक नहीं है । बस सोनू और स्वीटी में ठन जाती है दोनों में जंग शुरू हो जाती है। जीत किसकी होती है यह फिल्म में देखिए। हालांकि यह कहीं भी तार्किक रूप से स्थापित नहीं हो सका कि आखिर स्वीटी में खराबी क्या थी ? निर्देशक ने स्वीटी को गलत दिखाने के लिए इंटरवल से ठीक पहले उसी के मुंह से कहलवाया कि वह चालू है। लेकिन चालू कैसे है यह कहीं साबित नहीं हो पाया।
कार्तिक औसत अभिनेता हैं लेकिन स्क्रीन पर हैंडसम नजर आते हैं। उनके डायलाग बहुत ही चुटीले हैं इसलिए वे सबको पसंद आते हैं। सन्नी साधारण हैं और ऐसा ही रोल उनको मिला है। अलबत्ता नुसरत में बड़ी स्टार बनने के तमाम लक्षण मौजूद हैं। वे बेहद खूबसूरत नजर आती हैं और उन्हें स्क्रीन पर देखना अच्छा लगता है। अगर उन्हें अच्छा ब्रेक मिला तो वे कैटरीना कैफ को पानी पिला सकती हैं। संगीत तो ऐसा है कि सिनेमा से बाहर निकलते ही भूल जाता है। हंस राज हंस के हिट गीत ‘दिल चोरी साड्डा हो गया’ को नए अवतार में पेश किया गया है जो अच्छा लगता है इसके अलावा संगीत के नाम पर कुछ खास नहीं है। हमेशा शराब पीते रहने वाले जीजा-साले के रोल में आलोकनाथ व वीरेंद्र सक्सेना खूब जमते हैं। बाकी कलाकारों का काम भी ठीक ठाक है।
फिल्म का पहला काम मनोरंजन देना होता है और यह फिल्म कम से कम एक बार तो ऐसा करने में सफल रहती ही है। आप इसे परिवार के साथ देख सकते हैं। ज्यादा दिमाग लगाना नहीं है बस फिल्म देखकर घर आ जाना है।
- हर्ष कुमार सिंह
Waah Sir....Is review ke baad ek baar film dekhni toh banti hi hai :)
ReplyDeleteOh yes
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