Friday 16 March 2018

DEEP REVIEW : Raid


अजय देवगन की अच्छी फिल्में में से एक है 'रेड', जरूर देखें  

Rating 4*

अजय देवगन अपने कैरियर में दो तरह की फिल्में करते रहे हैं। एक तो हैं 'एक्शन जैक्सन', 'सिंघम', 'बादशाहो' और 'शिवाय' जैसी और दूसरी हैं 'जख्म', 'गंगाजल' और 'दृश्यम' जैसी। ये दूसरी वाली कैटेगरी की फिल्म है। 'रेड' में अजय देवगन ने एक परिपक्व रोल किया है जो उम्र के हिसाब से उन पर फिट बैठता है। फिल्म बांधकर रखती है। यदि आपको बेहतर कहानी, संवाद और थोड़ी सी यथार्थवादी फिल्में पंसद आती हैं तो यह आपके लिए है, लेकिन यदि आप वीकेंड पर फैमिली के साथ मनोरंजन से भरपूर मसला फिल्म देखने के मूड में रहते हैं तो फिर यह फिल्म आपके लिए नहीं है। बच्चों के लिए फिल्म में कुछ नहीं है। न गीत संगीत न कॉमेडी और न नाच गाना।
फिल्म जिस अंदाज में बनाई गई है यह आपको नीरज पांडे की 'स्पेशल 26' की याद दिलाती है। हालांकि यह उसके स्तर की फिल्म नहीं बन पाई। इसके बावजूद यह एक अच्छी फिल्म है। विषय एकदम नया है और इस तरह की कहानी अब तक हिंदी फिल्मों में नहीं दिखाई गई है। छोटे से घटनाक्रम को दो घंटे की फिल्म में बहुत ही संजीदा अंदाज में पेश किया गया है। जिन लोगों का देश की समस्याओं व ज्वलंत मुददों से सरोकार है उन्हें इसमें मजा आएगा।

कहानी 1981 की है जो लखनऊ में हुई एक सच्ची घटना पर आधारित है। अमय पटनायक (अजय देवगन) आयकर विभाग के अफसर हैं और ईमानदारी की वजह से बार-बार उनका तबादला होता रहता है। इस बात से उनकी पत्नी मालिनी (इलियाना डि क्रूज) परेशान भी रहती है। लखनऊ आकर वह एक दबंग सांसद रामेश्वर सिंह (सौरभ शुक्ला) से भिड़ जाते हैं। उन्हें गुप्त सूचना मिलती है कि सांसद महोदय के पास 400 करोड़ की ब्लैक मनी है। टैक्स चोरी व बेनामी संपत्ति भी है। अजय वहां रेड डालने की योजना बनाते हैं। पूरी फिल्म इसी रेड पर आधारित है। रेड चलती रहती है। अजय अपने फर्ज पर डटे रहते हैं। सौरभ रेड रुकवाने के लिए प्रधानमंत्री तक पहुंच जाते हैं, लेकिन अजय अपना फर्ज निभाते हैं और जान की बाजी लगाकर सच्चाई तक पहुंचने में सफल रहते हैं। फिल्म में अंत में उस सस्पेंस का भी खुलासा किया जाता है कि ये सूचना अजय को किसने दी थी।
फिल्म के निर्देशक राजकुमार गुप्ता ने इससे पहले नो वन किल्ड जेसिका, आमिर जैसी फिल्में बनाई हैं। इसलिए वे जानते हैं कि सत्य कहानी को कैसे फिल्माया जाता है। फिल्म कई हिस्सों में अपना प्रभाव छोड़ती है। फिल्म में पहले ही सीन में अजय देवगन व सौरभ की मुलाकात एक पार्टी में दिखाई गई है। इसमें अजय की ईमानदारी को जिस तरह से स्थापित किया गया है वह फिल्म का टेंपो सेट कर देता है। इसी सीन की वजह से अमय पटनायक का किरदार बड़ा व मजबूत लगने लगता है। एक अन्य सीन-जब अजय मंदिर जाने की बात कहते हैं तो इलियाना कहती हैं कि तुम तो नास्तिक हो, भारत माता के अलावा किसी को मानते ही नहीं? यह दृश्य फिल्म में अच्छे संवाद होने की गवाही देता है।
रेड के दौरान वैसे तो कई दिलचस्प मौके आते हैं लेकिन मुझे तो फिल्म में सबसे ज्यादातर मजेदार सीन वे लगे जिनमें सौरभ शुक्ला की बुजुर्ग मां आती हैं। इस रोल को निभानी वाली वृद्ध महिला ने कमाल कर दिया है। फिल्म में टर्निंग प्वाइंट लाने के साथ-साथ वे दर्शकों का अच्छा खासा मनोरंजन भी करती हैं। फिल्म का क्लाईमैक्स अच्छा फिल्माया गया है जिसमें सारी जनता सांसद के समर्थन में एकत्र होकर हमला बोल देती है और अजय अपने सभी साथी अफसरों को वहां से भगाकर खुद मुकाबला करने की ठान लेते हैं।
इलियाना डि क्रूज इससे पहले अजय के साथ बादशाहो में भी आई थी और बड़े ही ग्लैमरस अवतार में थी। रेड में वे एकदम साधारण महिला के रूप में आई हैं लेकिन बादशाहो से ज्यादा सुंदर लगी हैं। अभिनय भी उन्होंने ठीक-ठाक किया है। अजय और सौरभ तो हैं ही मंजे हुए कलाकार।

इस फिल्म को देखकर मेरा मन अजय देवगन को एक सलाह देने का भी हो रहा है। उनके बारे में अक्सर कहा जाता है कि उन्हें अच्छी कहानियों की समझ नहीं है। अगर वे इसी तरह की कुछ और फिल्में और कर लें तो लोगों की यह गलतफहमी दूर हो जाएगी। शाहरुख खान को भी कुछ ऐसी फिल्में करनी चाहिएं। आमिर व अक्षय तो लगातार ऐसा कर ही रहे हैं। 

-   हर्ष कुमार सिंह



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