Friday 22 January 2016

DEEP REVIEW: Airlift- A strong film with good ‘Political Message’

एयरलिफ्टः  गंभीर राजनीतिक संदेश वाली मजबूत फिल्म 

 RATING- 4*

अक्षय ‘भारत’ कुमार की नई फिल्म ‘एयरलिफ्ट’ जो काम सबसे बेहतर तरीके से करने में सफल हुई है वो है ‘राजनीतिक मैसेज’ देने का काम। पिछले कुछ समय में भारत सरकार ने कुछ अशांत देशों में फंसे भारतीयों को निकालने के काम तत्परता और प्राथमिकता से किए हैं। इस फिल्म को देखने के बाद आपको आभास हो जाएगा कि इस तरह के अभियानों में तेजी की जरूरत क्यों आवश्यक है।
 -मुसीबत में फंसे लोगों पर क्या गुजर रही है उसे भारत में बैठे हुक्मरान व डिप्लोमेट नहीं समझ पाते। ये फिल्म यही सिखाने का संदेश सबसे पहले देती है।
 -इसके अलावा ये फिल्म उन लोगों को भी मैसेज देती है जो भारत से दूसरे देशों में जाते हैं और वहां पैसा कमाकर अपने देश को भूल जाते हैं। वे भूल जाते हैं कि उनकी सबसे बड़ी पहचान भारतीय होना ही है।
-तीसरा सबसे अहम व बड़ा मैसेज ‘एयरलिफ्ट’ यह देती है कि भारत से ज्यादा शांत व सुरक्षित देश कोई दूसरा नहीं हो सकता।

फिल्म की कहानी सच्ची घटना पर आधारित है। 90 के दशक में कुवैत में फंसे डेढ़ लाख भारतीयों को निकालने के लिए वहां रहने वाले कुछ भारतीयों के प्रयासों को ये फिल्म सलाम करने की सफल कोशिश करती है। फिल्म की पटकथा कसी हुई है और आपको एक मिनट के लिए भी अपनी सीट से हिलने की इजाजत नहीं देती। एक के बाद एक घटनाएं होती रहती हैं और फिल्म कब खत्म हो जाती है पता ही नहीं चलता।

फिल्म में गीत-संगीत को जितना जरूरी है उतना ही स्थान दिया गया है। क्लाइमेक्स के सींस में बजने वाला गीत दिल में देश के प्रति सम्मान की भावनाएं जगाने में सफल रहता है। फिल्म में गीत संगीत पर ज्यादा फोकस न करके स्क्रीनप्ले को गतिमान बनाए रखने पर जोर रहता है और इसलिए फिल्म अपेक्षित प्रभाव छोड़ने में सफल रहती है।

अक्षय कुमार फिल्म की जान हैं। वे इस रोल के लिए एकदम परफेक्ट हैं। बढ़ती उम्र के साथ जिस तरह के रोल वे कर रहे हैं वे उन्हें बतौर अभिनेता स्थापित कर रहे हैं। ‘होलीडे’, ‘बेबी’ और ‘एयरलिफ्ट’, लगातार तीन अच्छी फिल्में करने वाले अक्षय कुमार अब ‘मिशन-आपरेशन टाइप’ की फिल्मों के स्पेशलिस्ट बनते जा रहे हैं। वे इन रोल्स में जमते हैं और कभी ये नहीं लगता कि उनके अलावा भी कोई ऐसे किरदार निभा सकता है।

फिल्म में सबसे ज्यादा चौंकाया है निमरत कौर ने। लग नहीं रहा था कि अक्षय कुमार की फिल्म में हिरोईन भी अपना प्रभाव जमा सकती है। मुसीबत के समय अपने पति व परिवार के लिए चिंतित हो जाने वाली महिला के किरदार को उन्होंने बखूबी निभाया है। वे परिपक्व नजर आती हैं और ऐसे रोल्स के लिए परफेक्ट हैं। इंटरवल के बाद, एक सीन में जब वे अक्षय के समर्थन में रिफ्यूजी कैंप में अपना मत जाहिर करती हैं तो छा जाती हैं। आप ताली भी बजा सकते हैं। बहरहाल वे बालीवुड की टिपिकल हिरोइन के खांचे में फिट हो पाएंगी या नहीं ये देखने वाली बात होगी। उन्हें रोल चुनते समय ध्यान रखना होगा कि वो उन्हें फबता है या नहीं। कुछ वैसे ही जैसे विद्या बालन को करना होता है।

अगर आप अच्छी फिल्म देखने ही थियेटर जाते हैं तो इस फिल्म को जरूर देखें। खासतौर से युवा पीढ़ी जो खाड़ी संकट के इतिहास से वाकिफ नहीं हैं उन्हें ये फिल्म देखनी चाहिए। वैसे फिल्म जिस ईमानदारी से बनाई गई है उसे देखते हुए इसके बाक्स आफिस पर पैसा बरसाने की संभावनाएं कम हैं पर तारीफ खूब मिलने वाली हैं।

- हर्ष कुमार 

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